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छत्तीसगढ़ की जेलों से कोरोना महामारी के दौरान अस्थायी रूप से रिहा किए गए 70 बंदी अब भी फरार हैं। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने इस मामले पर स्वतः संज्ञान लिया है। जेल के डीजी की रिपोर्ट के अनुसार, छत्तीसगढ़ की पांच सेन्ट्रल जेलों रायपुर, दुर्ग, बिलासपुर, जगदलपुर और अंबिकापुर से 83 बंदियों को अंतरिम जमानत पर छोड़ा गया था, इनमें से 10 कैदियों को गिरफ्तार कर लिया गया है, और 3 की मौत हो गई है। लगभग 70 बंदी अब भी वापस नहीं लौटे हैं। बिलासपुर की जेल से 22 और राजधानी की जेल से 7 बंदी अब तक फरार हैं। इनकी खोजबीन की जारी है और इस सम्बन्ध में थानों में प्राथमिकी भी दर्ज की गई है।
महामारी की भीषणता को देखते हुए 2020-2021 के दौरान जेलों की भीड़ कम करने के उद्देश्य से इन कैदियों को अच्छे आचरण के आधार पर पैरोल पर छोड़ा गया था। अब जबकि महामारी का दौर खत्म हो चुका है और सामान्य स्थिति बहाल हो गई है, तब भी कई बंदी न्यायिक आदेशों के बावजूद वापस नहीं लौटे हैं।
कोरोना काल में की गई थी रिहाई
कोविड-19 की पहली और दूसरी लहर के दौरान संक्रमण के तेजी से फैलने और जेलों में भीड़भाड़ की स्थिति को ध्यान में रखते हुए सुप्रीम कोर्ट और राज्य सरकारों ने आदेश जारी किए थे कि ऐसे कैदियों को अस्थायी रूप से रिहा किया जाए जो गैर-गंभीर अपराधों में बंद हों और जिनका आचरण अच्छा हो। छत्तीसगढ़ में इसी आधार पर सैकड़ों कैदियों को पैरोल या जमानत पर छोड़ा गया था।
अब तक नहीं लौटे कई कैदी
रिहाई की समयसीमा पूरी होने के बाद भी कई बंदी जानबूझकर जेल में वापस नहीं लौटे हैं। जेल प्रशासन ने नोटिस और वारंट जारी किए हैं, लेकिन इनमें से कई के स्थायी पते गलत हैं। इसके चलते जेल प्रशासन के सामने एक बड़ी प्रशासनिक चुनौती खड़ी हो गई है।
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हाईकोर्ट ने लिया संज्ञान
इस मामले की गंभीरता को देखते हुए छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने स्वतः संज्ञान लिया है और डीजी (जेल) को शपथ-पत्र के माध्यम से विस्तृत रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने यह जानना चाहा है कि:
कुल कितने कैदियों को रिहा किया गया था?
उनमें से कितने अब तक वापस नहीं लौटे हैं?
जेल प्रशासन ने अब तक क्या कदम उठाए हैं?
और आगे क्या योजना है?
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प्रशासनिक प्रतिक्रिया
सूत्रों के अनुसार, जेल प्रशासन ने उन बंदियों की सूची तैयार कर ली है जो अब तक फरार हैं। संबंधित जिलों की पुलिस को इनकी गिरफ्तारी के लिए निर्देश दिए जा चुके हैं। साथ ही, कुछ कैदियों के खिलाफ गैर-जमानती वारंट भी जारी किए गए हैं।
न्यायिक दृष्टिकोण और संभावित सख्त कार्रवाई
विधि विशेषज्ञों के अनुसार, यह न केवल न्यायिक आदेशों की अवहेलना है बल्कि आपराधिक अवज्ञा (Contempt of Court) का भी मामला बन सकता है। यदि कैदी निर्धारित समयसीमा में वापस नहीं आते तो उनके खिलाफ नई एफआईआर, सख्त कानूनी कार्रवाई और सजा बढ़ने की संभावना बन सकती है।
कोरोना संकट के दौरान मानवीय दृष्टिकोण से लिए गए निर्णयों का दुरुपयोग, अब प्रशासन के लिए सिरदर्द बन चुका है। हाईकोर्ट के हस्तक्षेप से उम्मीद है कि इस दिशा में सख्त कार्रवाई होगी और फरार कैदियों की वापसी सुनिश्चित की जा सकेगी।
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