छत्तीसगढ़ के मुंगेली जिले के सरगांव क्षेत्र के बड़ियाडीह गांव में प्रस्तावित 700 करोड़ रूपए के स्टील प्लांट प्रोजेक्ट को लेकर विरोध लगातार तेज होता जा रहा है। जहां एक ओर ग्रामीण इस उद्योग के संभावित दुष्प्रभावों को लेकर मुखर हैं, वहीं अब सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक वर्ग भी विरोध के स्वर में शामिल हो चुके हैं।
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मदकूद्वीप की जैव विविधता पर संकट
मदकूद्वीप के प्रमुख संत रामरूपदास महात्यागी ने इस प्रोजेक्ट के खिलाफ खुलकर बयान दिया है। उनका कहना है कि स्टील प्लांट लगने से न केवल नदी का जल प्रदूषित होगा, बल्कि इससे मदकूद्वीप की जैव विविधता और पर्यावरण संतुलन भी प्रभावित होगा।
उन्होंने यह भी कहा कि, "मदकूद्वीप सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि वह भूमि है जहां ‘सत्यमेव जयते’ जैसे आदर्श वाक्य की उद्घोषणा हुई थी। यहां सालभर लाखों सनातन धर्मावलंबी पहुंचते हैं। प्लांट की निकटता से इस पवित्र स्थल का वातावरण दूषित होगा।”
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कांग्रेस ने भी जताया विरोध
फैक्ट्री को लेकर राजनीतिक विरोध भी सामने आने लगा है। कांग्रेस के जिला अध्यक्ष घनश्याम वर्मा ने पार्टी के लेटरहेड पर लिखित रूप से आपत्ति दर्ज कराते हुए प्रस्तावित M/S SLN Steel and Alloys Pvt. Ltd. के निर्माण का विरोध किया है। उन्होंने कहा कि, “इस परियोजना से जल, वायु और भूमि प्रदूषण की गंभीर आशंका है। साथ ही गांव के कुएं, तालाब और अन्य जल स्रोतों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा, जिससे स्वास्थ्य संबंधी खतरे बढ़ सकते हैं।”
उन्होंने यह भी जोड़ा कि रासायनिक अपशिष्ट और धुएं से लोगों में सांस, त्वचा और अन्य बीमारियों का खतरा कई गुना बढ़ जाएगा।
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विधायक और डिप्टी सीएम ने लिया संज्ञान
क्षेत्रीय विधायक धरमलाल कौशिक और डिप्टी सीएम अरुण साव ने भी मामले को संज्ञान में लेने की बात कही है। दोनों नेताओं ने आश्वासन दिया है कि इस मुद्दे को गंभीरता से देखा जा रहा है और जनता की भावनाओं और पर्यावरणीय संतुलन को ध्यान में रखते हुए आगे की कार्यवाही की जाएगी।
तेज हो रहा है विरोध
स्थानीय लोग दावा कर रहे हैं कि उन्हें इस परियोजना के पर्यावरणीय असर के बारे में कोई स्पष्ट जानकारी नहीं दी गई। ग्रामीणों का कहना है कि यदि यह प्लांट बड़ियाडीह में स्थापित होता है, तो उनके आजीविका स्रोत, पारंपरिक जल स्रोत और स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव पड़ेगा।
बड़ियाडीह में प्रस्तावित स्टील प्लांट को लेकर अब एक व्यापक जनआंदोलन का रूप लेता जा रहा है। धार्मिक आस्था, पर्यावरणीय खतरे और राजनीतिक समर्थन के बीच यह मुद्दा अब केवल औद्योगिक विकास तक सीमित नहीं रह गया है — बल्कि यह जनता के जीवन, आस्था और अधिकारों से भी जुड़ गया है।
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