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छत्तीसगढ़ में पिछले सरकार के कार्यकाल के दौरान एंटी टेररिज्म स्क्वाड का जो हाल हुआ, वह अब तक नहीं सुधरा। हाल यह है कि स्क्वाड के पास ना तो संसाधन है और ना ही फील्ड स्टाफ। ऐसे में अधिकारियों की चिंता है कि बिना संसाधन आतंकवादियों या उसे सपोर्ट करने वाले क्राइम के खिलाफ क्या कार्रवाई कर सकेंगे? जबकि विशेषज्ञ छत्तीसगढ़ में एंटी टेररिज्म स्क्वाड यानी एटीएस को बेहद जरूरी बता रहे हैं।
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सभी राज्यों में एटीएस का गठन
मुंबई में हुए आतंकी हमले के बाद केंद्र सरकार द्वारा देश के सभी राज्यों में आतंक विरोधी गतिविधियों पर लगाम लगाने के लिए एटीएस यानी एंटी टेररिज्म स्क्वाड का गठन किया गया। रायपुर में मुख्यालय बनाने के अलावा गरियाबंद में तीसरी बटालियन को एटीएस के रूप में तब्दील किया गया लेकिन, बीती सरकार के द्वारा एटीएस चीफ रजनेश सिंह पर फोन टैपिंग के आरोप लगाए गए। इसके बाद न केवल रजनेश सिंह पर जांच बैठा दी गई बल्कि गरियाबंद स्थित एटीएस बटालियन को तीसरी पुलिस बटालियन में तब्दील कर दिया गया।
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साल 2024 के बाद छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकार आई। जांच के बाद रजनेश सिंह अपने खिलाफ लगे आरोप से बरी हो गए लेकिन एटीएस को जस का तस छोड़ दिया गया। आलम यह है कि मुख्यालय के 30 अधिकारी कर्मचारियों के सेटअप में आधे से ज्यादा पद खाली हैं। काम करने के लिए कंप्यूटर सहित अन्य उपकरण नहीं है। यहां तक की सबसे जरूरी फील्ड के कर्मचारी तक नहीं है। जिसके जरिए मुख्यालय में आतंक विरोधी गतिविधि की इनपुट मिल सके।
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250 के सेटअप को भी नहीं मिली अनुमति
सरकार बदलने के बाद एटीएस के अधिकारियों में उम्मीद जगी कि अब कार्रवाई करने की छूट के साथ संसाधन मिलेंगे। इसी विश्वास से अधिकारियों ने सरकार को 250 अधिकारी कर्मचारियों की जरूरत बताते हुए नए सेटअप का प्रस्ताव भेजा।जिससे कैबिनेट में स्वीकृति दी जा सके। लेकिन, ऐसा ना हो सका। जबकि छत्तीसगढ़ राज्य के साथ अलग हुए झारखंड और उत्तराखंड में क्रमशः 400 और 250 अधिकारी कर्मचारियों का सेटअप काम कर रहा है।
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यह है एटीएस का काम
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार छत्तीसगढ़ में बड़ी संख्या में हवाला का कारोबार, नारकोटिक्स, फेक करंसी, साइबर मामले, ह्यूमन ट्रैफिकिंग जैसे क्राइम बड़ी तेजी से हो रहे हैं। इतना ही नहीं एटीएस ने कुछ साल पहले रायपुर से सिमी से जुड़े आतंकवादी को गिरफ्तार किया था। वह रायपुर में छिपकर आतंकी ट्रेनिंग सेंटर चल रहा था। कुछ साल पहले नक्सलियों के पास विदेशी हथियार भी मिलने का खुलासा हो चुका है। जो गुजरात, आंध्रप्रदेश के रास्ते छत्तीसगढ़ तक पहुंचा था। इसके अलावा ATS के प्रमुख कामों में फेंक पासपोर्ट, बड़ी डकैती, साइबर मामले, मवेशी तस्कर भी शामिल है।
छत्तीसगढ़ में बेहद जरूरी है एटीएस
छत्तीसगढ़ के पूर्व डीजीपी एसके पासवान के अनुसार, प्रदेश में मौजूद स्लीपर सेल न केवल आतंकवाद को सपोर्ट करने वाली गतिविधि को अंजाम देने में लगे रहते हैं।बल्कि वे युवाओं को भी बरगलाने का काम कर रहे हैं।उनका टारगेट खासकर कम उम्र की लड़कियां रहती हैं। नक्सलियों के पास विदेशी हथियार कैसे पहुंचते हैं, इसकी जांच भी जरूरी है। नारकोटिक्स, हवाला, ह्यूमन ट्रैफिकिंग, साइबर मामले भी छग में हो रहे। कई बार कार्रवाई होती है लेकिन एटीएस जैसी फोकस्ड और ट्रेंड यूनिट रहने से ऐसे अपराध पर लगाम लगाने पर बहुत सहायता मिलेगी।
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