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Dantewada. सरकारी उदासीनता और वर्षों से अधूरी पड़ी उम्मीदों के बीच अबूझमाड़ से सटे जंगल और पहाड़ी इलाके में ग्रामीणों ने ऐसी पहल की है, जो पूरे प्रदेश के लिए प्रेरणा बन सकती है। बड़ेकरका से कोशलनार टू तक 12 किलोमीटर लंबी सड़क ग्रामीणों ने अपने दम पर श्रमदान करके तैयार कर दी। यह सड़क कोशलनार 1, कोशलनार 2 और हांदावाड़ा पंचायत के कुरसिंग बाहार के लोगों ने मिलकर बनाई।
वर्षों से नजरअंदाज होती रही मांग, ग्रामीणों ने खुद बनाई सड़क
ग्रामीणों का कहना है कि वे कई वर्षों से विधायक, कलेक्टर और अन्य जनप्रतिनिधियों से सड़क निर्माण की मांग कर रहे थे। लेकिन हर बार उन्हें सिर्फ आश्वासन मिला, काम नहीं। इसी निराशा ने उन्हें मजबूर कर दिया कि अब वे खुद ही सड़क बनाएं। नक्सल गतिविधियों में कमी आने के बावजूद शासन-प्रशासन ने सड़क निर्माण की दिशा में कोई कदम नहीं उठाया, जबकि ग्रामीण लगातार परेशानी झेल रहे थे।
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12 किलोमीटर पैदल चलना पड़ता था, बरसात में रास्ता ठप
घने जंगल, पहाड़ी रास्तों और पगडंडियों से होकर लोगों को जिला मुख्यालय, स्कूल, अस्पताल और राशन दुकान तक जाना पड़ता था। बरसात के समय हालात और खराब हो जाते थे रास्ते बंद, पानी से कटाव, फिसलन, मरीजों को अस्पताल तक ले जाना लगभग असंभव, बारिश में तो कई बार लोगों को खाने-पीने और दवाइयों की किल्लत भी झेलनी पड़ती थी।
भाजपा का “दिन चौगुनी, रात चौगुनी” वाला विकास!
— INC Chhattisgarh (@INCChhattisgarh) November 9, 2025
दंतेवाड़ा के अबूझमाड़ में 5 पंचायतों के ग्रामीणों ने 13 किमी सड़क अपने दम पर बना डाली वो भी वहाँ, जहाँ अब तक पहुँच मार्ग तक नहीं था।
सालों से गाँव वाले सड़क की माँग करते रहे, पर भाजपा सरकार ने बस कागज़ों और भाषणों में विकास दिखाया। pic.twitter.com/rTt4j2VEk7
तीन पंचायतों ने मिलाया हाथ - ‘अपनी सड़क खुद’ का अभियान
कोशलनार 1, कोशलनार 2 और कुरसिंग बाहार पंचायत के युवाओं और बुजुर्गों ने मिलकर 12 किलोमीटर सड़क निर्माण का बीड़ा उठाया। ग्रामीणों का कहना है कि वे लगातार सामूहिक श्रमदान कर रहे हैं और तीन दिनों में सड़क पूरी तरह तैयार हो जाएगी।
इस सड़क के बनने से—
एंबुलेंस और स्वास्थ्य सेवाएं गांव तक पहुंच सकेंगी
बच्चों को स्कूल जाने में आसानी होगी
राशन वितरण नियमित रूप से हो सकेगा
गाँव का बाकी हिस्सों से संपर्क सुधरेगा
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ग्रामीणों ने क्या कहा?
जीला राम तोली, ग्रामीण (कोशलनार वन):“हमने बहुत बार अधिकारियों से मांग की, लेकिन किसी ने सुनवाई नहीं की। इसलिए हमने खुद ही सड़क बनानी शुरू की।”
माहीराम लेखाम, सरपंच पति (कोशलनार टू): “अब सड़क बन जाने से एंबुलेंस और जरूरी सेवाएं गांव तक पहुंच पाएंगी। लंबे समय से लोग परेशान थे।”
विकास की राह, जो जनता ने खुद बनाई
अबूझमाड़ जैसे दूर-दराज और नक्सल प्रभावित इलाके में इस तरह की पहल बेहद दुर्लभ है। ग्रामीणों ने अपने सामूहिक प्रयास से साबित कर दिया है कि इच्छाशक्ति हो तो विकास की राह खुद तैयार की जा सकती है- भले ही सरकार ने साथ न दिया हो।
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