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रायपुर : पूरा देश आजादी का जश्न मना रहा है क्योंकि यह आजादी का स्वर्णिम काल चल रहा है। 15 अगस्त के पहले 13 अगस्त की तारीख को भारत छोड़ो आंदोलन की वर्षगांठ थी। यह आंदोलन आजादी के लिए बहुत अहम माना जाता है। हम इसका जिक्र इसलिए कर रहे हैं क्योंकि छत्तीसगढ़ में भी इसी की तर्ज पर इसी तरह का आंदोलन शुरु हो गया है।
यह आंदोलन है अडानी भगाओ - छत्तीसगढ़ बचाओ। यह आंदोलन छत्तीसगढ़ बचाओ अभियान समेत ऐसे कई सामाजिक संगठनों ने शुरु किया है जो सालों से यहां के पर्यावरण को बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। इस आंदोलन में सीएम विष्णुदेव साय समेत सभी जनप्रतिनिधि और प्रशासनिक अधिकारियों को एक मांग पत्र सौंपा जा रहा है।
इस बार इस मांग पत्र में एक नई और बड़ी परेशानी का जिक्र किया गया है। इसमें कहा गया है कि यदि कोल ब्लॉक के लिए हसदेव को काटा गया तो इसका मतलब यह होगा कि आदिवासी सीधे हाथी के सामने आ जाएंगे।
अडानी भगाओ - छत्तीसगढ़ बचाओ
हसदेव के जंगल को कटने से बचाने और कोयला खदानों के आवंटन को रद्द करवाने के लिए छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन,संयुक्त किसान मोर्चा समेत दो दर्जन सामाजिक संगठनों ने बड़ा आंदोलन शुरु किया है। भारत छोड़ो आंदोलन की तर्ज पर ये सामाजिक संगठन अडानी भगाओ,छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन चला रहे हैं।
इसके तहत पूरे प्रदेश में धरना प्रदर्शन के साथ ही सीएम विष्णुदेव साय समेत सभी जन प्रतिनिधियों को मांग पत्र सौंपा जा रहा है। इन संगठनों के लोगों ने कहा कि छत्तीसगढ़ को अडानी कंपनी की लूट का चारागाह बना दिया गया है।
पेसा और वनाधिकार अधिनियम और सभी संवैधानिक प्रावधानों का खुला उल्लंघन करते हुए यहां जल, जंगल, जमीन और पर्यावरण का विनाश किया जा रहा है। छत्तीसगढ़ बचाने के लिए अडानी समेत सभी कॉर्पोरेट कंपनियों को छत्तीसगढ़ से भगाने की जरूरत है।
पेड़ कटेंगे तो हाथी से कैसे बचेंगे
छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के मांग पत्र में एक बड़ी और अहम समस्या का जिक्र किया गया है। यह समस्या है हाथी के कोप से बचने की। इसमें एक बात बहुत अहम है। भारतीय जीव संस्थान ने चेतावनी जारी की है कि यदि हसदेव में खनन की अनुमति दी गई या हसदेव से पेड़ कटे तो छत्तीसगढ़ में मानव-हाथी संघर्ष इतना विकराल रुप लेगा कि उसे सरकार भी नहीं संभाल पाएगी।
यानी मतलब साफ है कि इसका खामियाजा आदिवासी ही उठाएंगे जिनके उपर हाथी का खतरा मंडरा रहा है। केते एक्सटेंशन कोल ब्लॉक का यह क्षेत्र हाथियों का प्रमुख कॉरिडोर है। यह परियोजना लेमरु हाथी रिजर्व से महज 3 किलोमीटर दूर है। इस क्षेत्र में हाथियों के बड़े समूह (herd) निवास करते हैं। यह प्राचीन धरोहर स्थल रामगढ़ पहाड़ के काफ़ी नज़दीक है।
इस संबंध में पूर्ववर्ती सरकार ने वन्यजीव संरक्षण विभाग और वन विभाग को 13 अगस्त 2020 और 19 जनवरी 2021 को पत्र जारी कर इस परियोजना पर आपत्ति दर्ज की थी। खास कर के हाथी मानव दखल रोकने और छत्तीसगढ़ को बचाने के लिए केते एक्सटेंशन खनन परियोजना की वन स्वीकृति की अनुशंसा को वापस लेने को कहा गया था।
इस कोल ब्लॉक में 97 फीसदी जंगल
केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय की विशेष मूल्यांकन समिति (EAC) ने इस परियोजना को पर्यावरण स्वीकृति की अनुशंसा की है। यह केते एक्सटेंशन कोल ब्लॉक है। यह खदान भी राजस्थान की है और एमडीओ अनुबंध अडानी का है। इस खदान का 97 प्रतिशत क्षेत्र जंगल है।
इसमें 1742 हेक्टेयर वन भूमि में 5 लाख से अधिक पेड़ काटे जाएँगे । यह खदान सरगुजा के प्रसिद्ध रामगढ़ पहाड़ का भी विनाश करेगा । यह वही खदान है जिसके लिए तमनार से पेड़ कटना चालू हो गए हैं। और अडानी ने अड़ीबाजी कर आदिवासियों की जमीन पर भी बिना मुआवजा कब्जा कर लिया है।
छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के कार्यकर्ता कहते हैं कि सरकार ने तय कर लिया है कि अदानी की लूट के लिए छत्तीसगढ़ का विनाश करके ही छोड़ेंगे । क्या राजस्थान के मुख्यमंत्री सार्वजनिक रूप से यह बता सकते हैं कि हसदेव की वर्तमान संचालित खदानों का कितना कोयला राजस्थान के प्लांटों में और कितना अदानी के प्लांटों में जा रहा है। इस खदान की स्वीकृति निरस्त की जानी चाहिए।
न मंत्रालय सुन रहा और न राजभवन
आंदोलन के कार्यकर्ता कहते हैं कि यह बात साबित हो चुकी है कि इन कोल ब्लॉक की अनुमति ग्राम सभा ने नहीं दी और फर्जी अनुमति से ही इन खदानों को मंजूरी दी गई है। इसके बाद भी न तो सरकार सुन रही है और न ही राजभवन में सुनवाई हुई। वे कहते हैं कि उनकी आजीविका को छीना जा रहा है।
गाँव का विस्थापन हमारे अस्तित्व को ही ख़त्म कर रहा है। जंगलों का विनाश करना पूरे छत्तीसगढ़ के पर्यावरण का विनाश है। इससे जल संकट और मानव जीवन संबंधी सभी समस्याओं में भी वृद्धि हो रही है। इसलिए हसदेव क्षेत्र में जंगलों की कटाई और कोयला उत्खनन पर प्रतिबंध लगाने के निवेदन के साथ यह आंदोलन किया जा रहा है।
छत्तीसगढ़ हसदेव आंदोलन | अदानी कोयला खदान | अदानी ग्रुप की नियुक्ति