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तलाक की खबरें अक्सर अलगाव और दूरी की कहानियां लाती हैं, लेकिन एक पति-पत्नी ने अपने अनोखे फैसले से सबको चौंका दिया है। पति-पत्नी ने आपसी सहमति से तलाक तो लिया, लेकिन दोनों ने एक ही छत के नीचे रहने का फैसला भी किया है। इस तलाकसुदा दंपत्ति का कहना है कि भले ही उनका वैवाहिक रिश्ता खत्म हो गया हो, लेकिन वे दोस्ती और पारिवारिक जिम्मेदारियों को निभाने के लिए एक ही घर में अलग-अलग जिंदगी जिएंगे।
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विवाद के बाद परिवार न्यायालय पहुंचा मामला
छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले में एक पति-पत्नी ने लंबे समय तक चले आपसी विवाद के बाद तलाक लेने का फैसला लिया। इसके बाद यह मामला परिवार न्यायालय पहुंचा। परिवार न्यायालय ने इस मामले में 9 मई 2024 को अपना निर्णय सुनाया। परिवार न्यायालय ने हिंदू विवाह अधिनियम के तहत तलाक की डिक्री मंजूर कर ली। मगर, पत्नी परिवार न्यायालय के इस निर्णय से सहमत नहीं थी और उसने हाईकोर्ट में अपील की। मामला हाईकोर्ट तक तो पहुंच गया, लेकिन इस बीच दोनों ने आपस में समझौता कर लिया।
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हाईकोर्ट की पहल पर पति-पत्नी में समझौता
विवाद के बावजूद दोनों इस बात पर सहमत हुए कि तलाक लेकर अलग-अलग तो लेकिन छत एक ही होगी। पति घर के ग्राउंड फ्लोर और पत्नी को फर्स्ट फ्लोर में रहने के लिए सहमत हो गए। दरअसल, परिवार न्यायालय के तलाक के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर हाईकोर्ट की पहल के बाद पति-पत्नी ने सुलह का रास्ता अपना लिया। दोनों के बीच छह बिंदुओं पर सहमति बन गई है। सहमित के मुताबिक उन्हें घर के खर्च में बराबर का हिस्सा देना होगा। दोनों में यह सहमति गवाहों की मौजूदगी में हुई। इसके बाद हाईकोट में समझौते की कापी पेश की गई।
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हाईकोर्ट ने शर्तों के साथ मंजूर किया तलाक
पति-पत्नी के बीच समझौते की कापी मिलने के बाद जस्टिस रजनी दुबे और जस्टिस सचिन सिंह राजपूत की डिवीजन बेंच ने अपना निर्णय सुनाया। हाईकोर्ट ने अपने निर्णय में कहा कि इस तरह का कदम तलाक के आदेश को रद्द करने और विवाह में एकता और संबंधों में स्वतंत्रता बनाए रखने के लिए उद्देश्य से किया गया है। सुनवाई के दौरान ही दंपति ने आपस में समझौता करके विवाद सुलझा लिया।
इसके बाद दोनों ने 28 अप्रैल 2025 को गवाहों की मौजूदगी में समझौते का दस्तावेज तैयार किया। समझौते के दस्तावेज पहली मई 2025 को हाईकोर्ट में पेश किया गया। हाईकोर्ट ने समझौते को दर्ज कर अपील स्वीकार की और परिवार न्यायालय के आदेश और डिक्री को रद्द दिया। हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि समझौते की शर्तों को दोनों को ही मानना होगा। समझौता तोड़ने पर दोनों में से कोई भी दोबारा कोर्ट आ सकते हैं।
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