पीएम मोदी को भाया छत्तीसगढ़ का गार्बेज कैफे, मन की बात में की तारीफ, यहां कचरे के बदले मिलता है खाना

भारत में प्लास्टिक प्रदूषण के खिलाफ़, छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर का 'गार्बेज कैफे' एक अनोखी मिसाल है। यहां प्लास्टिक कचरा देने पर जरूरतमंदों को खाना मिलता है। नगर निगम द्वारा संचालित इस पहल की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने "मन की बात" में जमकर तारीफ की।

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Sanjay Dhiman
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Photograph: (the sootr)

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RAIPUR. भारत समेत पूरी दुनिया में प्लास्टिक प्रदूषण एक बड़ा खतरा बनता जा रहा है। शहरों में हर दिन लाखों टन कचरा निकलता है। इस कचरे का सही निपटान नहीं हो पाता। ऐसे में छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर में शुरू किया गया गार्बेज कैफे (Garbage Café) नई मिसाल बना है। कैफे न सिर्फ प्लास्टिक कचरे को रीसाइकलिंग की ओर बढ़ाता है, बल्कि जरूरतमंदों का पेट भरने का भी काम कर रहा है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज रविवार को  "मन की बात" में इस पहल की सराहना की। उन्होंने इस कैफे को पूरे देश के लिए मिसाल बताया। इस गार्बेज कैफे का संचालन अंबिकापुर नगर निगम करता है।

गार्बेज कैफे पर क्या बोले पीएम मोदी

मन की बात के 127वें एपिसोड में रविवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, "छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर में गार्बेज कैफ़े है। इस कैफ़ में प्लास्टिक कचरे के बदले आपको भरपेट खाना मिलता है। 

अगर कोई एक किलो से ज़्यादा प्लास्टिक लाता है, तो उसे दोपहर या रात का खाना दिया जाता है। आधा किलो प्लास्टिक के बदले उसे नाश्ता मिलता है। इस पहल से जहां सड़कों से कचरा खत्म हो रहा है, वहीं गरीब वर्ग को भोजन भी मिल रहा है। पीएम मोदी ने ऐसे कैफे को दूसरे राज्यों के लिए प्रेरणादायक व फायदेमंद बताया।  

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गार्बेज कैफे (Garbage Café) क्या है?

गार्बेज कैफे (Garbage Café) अंबिकापुर नगर निगम द्वारा 2019 में शुरू की गई एक अभिनव पहल है। इस कैफे में प्लास्टिक कचरा लेकर आने वालों को बदले में निशुल्क भोजन दिया जाता है। यानी, यहां “कचरा दीजिए, भोजन पाइए” की सोच पर काम किया जा रहा है।

यहां कैसे मिलता है भोजन?

प्लास्टिक का वजनक्या मिलता है
1 किलो प्लास्टिकभरपेट पौष्टिक भोजन (थाली)
500 ग्राम प्लास्टिकनाश्ता (जैसे वड़ापाव या समोसा)

शुरुआत कैसे हुई?

इस पहल की नींव स्वच्छ भारत मिशन से प्रेरित होकर रखी गई। अंबिकापुर नगर निगम पहले ही देश के सबसे स्वच्छ शहरों की सूची में शामिल रहा है। यहां का जीरो वेस्ट मॉडल (Zero Waste Model) पूरे देश में उदाहरण के तौर पर देखा जाता है।
बेघर, फुटपाथ पर रहने वाले मजदूर, कचरा बीनने वाले, बच्चे और शहरी गरीब रोज इस कैफ़े तक प्लास्टिक लाकर अपना पेट भरते हैं। 

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गार्बेज कैफ़े क्यों है खास?

पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा

प्लास्टिक कचरा जमा कर नगर निगम इसे रीसाइक्लिंग प्लांट तक पहुंचाता है। इस तरह यह पहल सर्कुलर इकोनॉमी को बढ़ावा देती है।

भूख और गरीबी से लड़ाई

सैकड़ों ऐसे लोग है जिन्हें रोजाना भोजन का इंतजाम करना मुश्किल होता है। यह लोग आज इस कैफ़े की वजह से भरपेट भोजन पा रहे हैं।

कई अन्य राज्य कर अपना रहे यह मॉडल

अंबिकापुर का यह गार्बेज कैफे अब दूसरे राज्यों के लिए भी मॉडल बन गया है। पड़ोसी राज्य मध्य प्रदेश, बिहार और महाराष्ट्र सहित अन्य राज्यों में भी इसे अपनाने पर विचार किया जा रहा है। यह सिर्फ एक फूड बैंक नहीं बल्कि एक सोशल इनोवेशन है जिसने प्लास्टिक से निपटने की नई दिशा दिखाई है।

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