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बस्तर में मनाए जाने वाले विश्व प्रसिद्ध दशहरे में रावण दहन नहीं होता है। यहां पर मनाया जाने वाला बस्तर दशहरा सालों पुरानी परंपरा के अनुसार मनाया जाता है। पिछले 617 - सालों से मनाया जाने वाले इस पर्व की शुरूआत इस साल 23 जुलाई से होगी जो 7 अक्टूबर तक चलेगा।
इस साल का बस्तर दशहरा 75 दिनों तक मनाया जाएगा। इस महापर्व को मनाने के लिए दंतेश्वरी मंदिर के पुजारियों ने इस दौरान होने वाले विधानों की जानकारी राजस्व विभाग को दे दी है। जिसके आधार पर बस्तर दशहरा समिति और राजस्व विभाग के कर्मचारी आगे कार्यक्रमों की रूप रेखा तैयार करेंगे।
बस्तर दशहरा की पहली रस्म पाट जात्रादंतेश्वरी मंदिर के प्रधान पुजारी कृष्ण कुमारी पाढ़ी ने बताया कि बस्तर दशहरा में होने वाले विधान राजा पुरुषोत्तम देव के समय बनाए गए थे। उसी के अनुसार इस परंपरा का पालन आज भी किया जा रहा है। 24 जुलाई को बस्तर दशहरा की पहली रस्म पाट जात्रा विधान पूरा किया जाएगा।
इस विधान को पूरा करने के लिए बिलोरी के जंगल से साल की लकड़ी लाई जाएगी। उम्मीद की जा रही है यह लकड़ी 23 जुलाई तक जगदलपुर आ जाएगी। बस्तर दशहरा में हर साल एक दर्जन से अधिक विधानों को समय समय पर पूरा किया जाता रहा है।
रावण दहन नहीं होता- बस्तर दशहरे में रावण दहन की परंपरा नहीं है, यह पर्व देवी दंतेश्वरी को समर्पित है। 75 दिन चलेगा उत्सव- इस बार दशहरा 23 जुलाई से शुरू होकर 7 अक्टूबर तक 75 दिनों तक मनाया जाएगा। पाट जात्रा से होगी शुरुआत- दशहरे की शुरुआत 24 जुलाई को पाट जात्रा रस्म से होगी, जिसमें साल की लकड़ी की पूजा होगी। 1408 से जारी परंपरा- काकतीय शासक पुरुषोत्तम देव द्वारा शुरू की गई यह परंपरा 617 वर्षों से निभाई जा रही है। दंतेश्वरी मंदिर की महत्वपूर्ण भूमिका- पूरे आयोजन की रूपरेखा दंतेश्वरी मंदिर के पुजारियों द्वारा तैयार की जाती है, जिसे प्रशासनिक सहयोग मिलता है। |
कई सालों से चली आ रही परंपरा
यह विधान सालों बाद भी उसकी आस्था और परंपरा के अनुसार मनाया जा रहा है। पुजारी पाढ़ी ने बताया कि बस्तर दशहरा की शुरआत राजा पुरुषोत्तम देव के समय शुरू हुई थी। उन्होंने ही इतने लंबे समय तक चलने वाले विधान को लेकर एक रूपरेखा तैयार की थी।
यह विधान आज भी उसी के अनुसार पूरा किया जा रहा है। इधर दूसरी ओर मंदिर के अन्य पुजारी उदय चंद पाणिग्रही ने बताया हरेली अमावस्या के मौके पर लकड़ी की पूजा की जाती है। उस दिन किसान अपने खेतों में नागर नहीं चलाते हैं। इसकी आधार पर मानकर बस्तर दशहरा में पाट जात्रा विधान मनाया जाता है।
साल 1408 में पुरुषोत्तम देव को स्थपति उपाधि मिली थी
बस्तर दशहरा मनाने को लेकर टेंपल कमेटी और दंतेश्वरी मंदिर के पुजारियों ने बताया कि वर्ष 1408 में बस्तर के काकलीय शासक पुरुषोत्तम देव को जगन्नाथपुरी में स्थपति की उपाधि दी गई थी तथा उन्हें 16 पहियों वाला एक विशाल रथ भेंट किया था। इस तरह बस्तर में 617 सालों से बस्तर दशहरा मनाया जा रहा है।
राजा पुरुषोत्तम देव ने जगन्नाथ पुरी से वरदान में मिले 16 चक्कों के रथ को बांट दिया था। उन्होंने सबसे पहले रथ के चार चक्कों को भगवान जगन्नाथ को समर्पित किया और बाकी के बचे हुए 12 चक्कों को दंतेश्वरी माई को अर्पित कर बस्तर दशहरा व बस्तर गोंचा पर्व मनाने की परंपरा को शुरू किया था। तब से लेकर अब तक बस्तर दशहरा की यह परंपरा चली आ रही है।
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