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छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले के चारामा निवासी एक वृद्ध जंगल में भालू के हमले में बुरी तरह घायल हो गए। उनका चेहरा बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया। भालू ने उनकी नाक को पूरी तरह से नोच दिया था, लेकिन डीकेएस सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल, रायपुर के डॉक्टरों ने न केवल उन्हें शारीरिक रूप से स्वस्थ किया, बल्कि मानसिक संबल देकर उनका आत्मविश्वास भी लौटाया।
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भालू का हमला
यह हृदयविदारक घटना तब घटी, जब वृद्ध जंगल में किसी कार्य से गए थे। अचानक एक जंगली भालू ने उन पर हमला कर दिया। मौके पर मौजूद लोगों के चिल्लाने पर भालू तो भाग गया, लेकिन वृद्ध का चेहरा और नाक बुरी तरह से नोच डाली गई थी। ग्रामीणों ने तत्काल उन्हें प्राथमिक उपचार के बाद रायपुर लाकर एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया, लेकिन वहां जख्म की गंभीरता को देखते हुए डॉक्टरों ने ऑपरेशन से इनकार कर दिया।
डीकेएस हॉस्पिटल बना सहारा
स्थानीय जनप्रतिनिधियों की सलाह पर मरीज को डीकेएस सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल लाया गया। यहां कास्मेटिक और प्लास्टिक सर्जरी विभाग के डॉक्टरों की टीम ने केस की गंभीरता को समझते हुए इलाज की सहमति दी। विशेषज्ञों की देखरेख में इलाज की लंबी और जटिल प्रक्रिया शुरू की गई।
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माथे की त्वचा और कान की हड्डी से बनी नाक
प्लास्टिक एंड कास्मेटिक सर्जन डॉ. कृष्णानंद ध्रुव के नेतृत्व में डॉक्टरों की टीम ने तीन महीनों में तीन चरणों में सर्जरी की। इस जटिल प्रक्रिया के तहत मरीज की नाक को फिर से आकार देने के लिए माथे की त्वचा और कान की उप-हड्डी का उपयोग किया गया। साथ ही, चेहरे पर बने घाव के आसपास की त्वचा का भी उपयोग कर नए नाक की बनावट को चेहरे के अनुरूप बनाया गया।
डॉ. ध्रुव ने बताया कि, “यह तकनीकी रूप से बहुत ही जटिल सर्जरी थी। हमारा उद्देश्य केवल नाक की बनावट लौटाना नहीं था, बल्कि उसकी कार्यक्षमता और सौंदर्य को भी बनाए रखना था।”
टीम वर्क
इस सर्जरी में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. प्रीति पांडे, एसआर डॉ. संगीता, और एनेस्थीसिया टीम से डॉ. मेघना मिश्रा और डॉ. लोकेश नेटी ने अहम भूमिका निभाई। इलाज के दौरान मरीज की मानसिक स्थिति को भी गंभीरता से लिया गया। लम्बे समय तक निगरानी में रखे गए मरीज को मानसिक तनाव और निराशा से उबारने के लिए विशेष काउंसलिंग दी गई।
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आयुष्मान भारत योजना से मुफ्त इलाज
इस संपूर्ण इलाज की सबसे उल्लेखनीय बात यह रही कि मरीज को यह सब उपचार आयुष्मान भारत योजना के तहत निशुल्क उपलब्ध कराया गया। जबकि निजी अस्पताल में इस प्रकार की सर्जरी का अनुमानित खर्च 3 से 4 लाख रुपये तक होता।
समय पर इलाज से बच सकती है क्षतिग्रस्त अंग
अस्पताल अधीक्षक डॉ. शिप्रा शर्मा और उप अधीक्षक डॉ. हेमंत शर्मा ने बताया कि, “ऐसे हादसों में अगर समय पर उपचार मिल जाए, तो क्षतिग्रस्त अंगों को फिर से जोड़ा जा सकता है। हमारे अस्पताल में अत्याधुनिक प्लास्टिक और कास्मेटिक सर्जरी सुविधाएं उपलब्ध हैं, जिनसे गंभीर रूप से घायल मरीजों का सफलतापूर्वक इलाज किया जा रहा है।”
अब वृद्ध पूरी तरह स्वस्थ
तीन महीने की चिकित्सा, तीन जटिल सर्जरियों और चिकित्सकीय टीम के अथक प्रयासों के बाद वृद्ध अब पूरी तरह स्वस्थ हैं। न केवल उनका चेहरा फिर से सामान्य दिखने लगा है, बल्कि उन्होंने मानसिक रूप से भी खुद को मजबूत पाया है। अब वे अपने घर लौट चुके हैं और सामान्य जीवन की ओर अग्रसर हैं।
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