रावतपुरा से इंडेक्स तक के करोड़ों के घूसकांड में CBI की बड़ी कार्रवाई, रविशंकर महाराज, डीपी सिंह और भदौरिया कसा शिकंजा

छत्तीसगढ़ के रावतपुरा इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज में हुए घूसकांड में CBI ने सख्ती दिखाते हुए रविशंकर महाराज, डीपी सिंह और सुरेश सिंह भदौरिया के बीच गहरे रिश्तों का खुलासा किया है। तीनों ने करोड़ों की अवैध कमाई की।

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Krishna Kumar Sikander
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Big action by CBI in bribery scandal worth crores from Rawatpura to Index the sootr
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छत्तीसगढ़ के रावतपुरा इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज में हुए घूसकांड में CBI ने सख्ती दिखाते हुए रविशंकर महाराज (आरोपी नंबर 4), डीपी सिंह (आरोपी नंबर 6, टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज के चांसलर), और सुरेश सिंह भदौरिया (आरोपी नंबर 25, इंडेक्स मेडिकल कॉलेज के चेयरमैन) के बीच गहरे रिश्तों का खुलासा किया है। CBI की FIR के अनुसार, इन तीनों ने रविशंकर महाराज के आशीर्वाद और सांठगांठ से शिक्षा और मेडिकल संस्थानों में मान्यता और ग्रेडिंग का खेल खेला, जिससे करोड़ों की अवैध कमाई हुई।

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डीपी सिंह का रावतपुरा से क्या है कनेक्शन ?

डीपी सिंह को रविशंकर महाराज का करीबी माना जाता है। डीपी सिंह ने 2012 में इंदौर की देवी अहिल्या यूनिवर्सिटी के कुलपति रहते हुए रविशंकर महाराज से मुलाकात की। इसके बाद अगस्त 2015 में उन्हें नैक (नेशनल असेसमेंट एंड एक्रेडिटेशन काउंसिल) का डायरेक्टर नियुक्त किया गया। डायरेक्टर बनते ही सिंह ने रविशंकर महाराज के रावतपुरा इंजीनियरिंग इंस्टीट्यूट को A ग्रेड दिलवाया।

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इसके बाद, UGC चेयरमैन बनने पर सिंह ने अपनी लॉबी को फायदा पहुंचाने के लिए कुलपतियों की नियुक्ति और मान्यता प्रक्रिया में बड़े पैमाने पर अनियमितताएं कीं। यही नहीं, 2022 में योगी सरकार में शिक्षा सलाहकार और 2024 में टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज के चांसलर बनने तक उनका कद बढ़ता गया, जिसके पीछे रविशंकर महाराज का समर्थन बताया जाता है।

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भदौरिया का मेडिकल कॉलेज और फर्जीवाड़ा

सुरेश सिंह भदौरिया के बड़े भाई पुलिस विभाग से रिटायर हैं। भदौरिया ने भी रविशंकर महाराज के साथ करीबी रिश्तों का लाभ उठाया। भदौरिया का इंडेक्स मेडिकल कॉलेज मान्यता के लिए शुरू में मुश्किलों में फंसा था। 2010 में इंडियन मेडिकल काउंसिल के तत्कालीन प्रमुख केतन देसाई (रिश्वत कांड में आरोपी) और रविशंकर महाराज की मदद से भदौरिया को 150 MBBS सीटों की मान्यता मिली, जिसे 2019 में बढ़ाकर 250 कर दिया गया।

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इसके बाद MD, MS, फार्मेसी, लॉ और पैरामेडिकल कोर्सेज की मान्यता भी हासिल की गई। CBI की जांच में खुलासा हुआ कि भदौरिया ने मालवांचल यूनिवर्सिटी के जरिए फर्जी PhD और ग्रेजुएशन डिग्रियां बांटीं। इसके अलावा, राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (NMC) की मान्यता के लिए फर्जी फैकल्टी दिखाने और बायोमेट्रिक उपस्थिति में हेराफेरी के लिए क्लोन फिंगर इंप्रेशन तक बनाए गए।

स्वास्थ्य मंत्रालय से सांठगांठ

CBI की रिपोर्ट में स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारी चंदन कुमार और राहुल श्रीवास्तव पर भी गंभीर आरोप लगे हैं। ये अधिकारी गोपनीय जानकारी, जैसे निरीक्षण टीम और रिपोर्ट की डिटेल, भदौरिया को लीक करते थे। इस जानकारी के आधार पर भदौरिया मेडिकल कॉलेजों की मान्यता के लिए डील करते थे। CBI के अनुसार, रविशंकर महाराज और भदौरिया की जोड़ी ने मान्यता के लिए 2-3 करोड़ रुपये प्रति कॉलेज की डील की, जिसमें कमीशन हवाला के जरिए पहुंचाया जाता था।

रविशंकर महाराज का रोल

मुख्य आरोपी रविशंकर महाराज, भिंड (लहार) के रहने वाले, इस पूरे घोटाले के केंद्र में हैं। भदौरिया और डीपी सिंह ने उनके प्रभाव का इस्तेमाल कर सरकारी सिस्टम में पैठ बनाई। रविशंकर महाराज को भदौरिया के मेडिकल कॉलेजों से भी लाभ मिलता था, जिससे यह सांठगांठ और मजबूत हुई। CBI अब इस मामले में गहराई से जांच कर रही है, और इन तीनों पर शिकंजा कसता जा रहा है।

मेडिकल क्षेत्र में भ्रष्टाचार का बड़ा उदाहरण

यह घूसकांड शिक्षा और मेडिकल क्षेत्र में सांठगांठ और भ्रष्टाचार का बड़ा उदाहरण है। रविशंकर महाराज, डीपी सिंह और भदौरिया की तिकड़ी ने न केवल संस्थानों को गलत तरीके से लाभ पहुंचाया, बल्कि फर्जी डिग्रियों और मान्यताओं के जरिए पूरे सिस्टम की साख को दांव पर लगा दिया। CBI की कार्रवाई से इस घोटाले के और खुलासे होने की उम्मीद है।

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