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रावतपुरा इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस छत्तीसगढ़ के घूसकांड की सीबीआई एफआईआर में आरोपी नंबर 4, 6 और 25 के बीच काफी घनिष्ठ संबंध रहे हैं। आरोपी नंबर 4 यानी रावतपुरा सरकार उर्फ रविशंकर महाराज, आरोपी नंबर 6 डीपी यानी धीरेंद्र पाल सिंह (चांसलर टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल स्टडीज) और आरोपी नंबर 25 इंडेक्स मेडिकल कॉलेज के चेयरमैन सुरेश सिंह भदौरिया हैं। रावतपुरा सरकार के आशीर्वाद से ही डीपी और भदौरिया दोनों ने खूब बरकत पाई।
डीपी ने नैक डायरेक्टर बन रावतपुरा संस्थान को दी ए ग्रेड
डीपी सिंह पर शुरू से ही रावतपुरा सरकार का आशीर्वाद रहा है। जब सिंह 2012 में इंदौर देवी अहिल्या यूनिवर्सिटी के कुलपति बने तो वह अगस्त 2015 में उनके कुलपति आवास इंदौर आए थे। इसके बाद ही सिंह का कुछ दिन बाद नैक (नेशनल असेसमेंट एंड एक्रेडिटेशन काउंसिल) के डायरेक्टर बनने का आदेश आ गया।
डायरेक्टर बनते ही सिंह ने रावतपुरा इंजीनियरिंग इंस्टीट्यूट को सबसे पहले ए ग्रेड दे दी। नैक के बाद सिंह को यूजीसी चेयरमैन का जिम्मा मिल गया और इसके बाद उन्होंने मान्यता देने का बड़ा खेल शुरू किया। अपने मनपसंद लॉबी के प्रोफेसर को मान्यता देने वाली टीम में चुना और साथ ही अपने लोगों को इधर-उधर बड़े पद देने, कुलपति बनवाने तक का काम किया। इसमें इंदौर यूनिवर्सिटी के भी कई प्रोफेसर के हाथ भी मलाई लगी, एक को तो कुलपति बनने का मौका भी मिला।
डीपी यूपी सरकार में शिक्षा सलाहकार भी बने
डीपी का ग्रोथ ग्राफ यहीं नहीं रुका। इसके बाद वह यूपी की योगी सरकार में शिक्षा सलाहकार जैसे अहम पद पर आ गए। यह सब रावतपुरा सरकार के आशीर्वाद से ही संभव हुआ। अप्रैल 2022 में उन्हें यह जिम्मेदारी मिली। इसके बाद वह 2024 में ही मुंबई के टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल स्टडीज (TISS ) के चांसलर पद पर पहुंच गए और अभी इसी पद पर हैं।
भदौरिया पर भी खूब बरसा आशीर्वाद
सुरेश सिंह भदौरिया के बड़े भाई जो पुलिस विभाग से रिटायर हुए हैं, उनके रावतपुरा सरकार से बहुत ही करीबी संबंध रहे हैं। इसी के चलते वह भी उनके साथ जुड़ गए।
इसके पहले भदौरिया ने जब इंडेक्स मेडिकल कॉलेज खोला तो मान्यता को लेकर खासे परेशान थे और मान्यता के लिए फर्जी काम करने के चलते कुछ दिन जेल में भी रहे।
इसके बाद भदौरिया की मदद दो लोगों ने की, एक थे इंडियन मेडिकल काउंसिल के तत्कालीन प्रमुख केतन देसाई जो साल 2010 में पंजाब के एक मेडिकल कॉलेज को मान्यता देने के एवज में दो करोड़ की रिश्वत लेने के आरोपी बने। दूसरे रावतपुरा सरकार। इसके बाद तो भदौरिया को धड़ल्ले से मान्यता मिलती गई। पहले 150 एमबीबीएस सीट की और फिर 2019 में सीट बढ़ाकर हो गई 250 मेडिकल सीट। भदौरिया यहीं नहीं रूके, उन्होंने इसके बाद एमडी, एमएस की भी सीट ले ली और मान्यता मिल गई। फिर मालवांचल यूनिवर्सिटी बनाकर एक के बाद एक फार्मेसी, लॉ, पैरामेडिकल सहित कई कोर्सेस की मान्यता लेता गया।
भदौरिया के लिए सीबीआई की रिपोर्ट में यह है
सीबीआई ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि केंद्रीय मंत्रालय के स्वास्थ्य मंत्रालय चंदन कुमार (इन्हें भी इस कांड में आरोपी बनाकर एफआईआर दर्ज हुई है) और मप्र के इंडेक्स ग्रुप के चेयरमैन सुरेश भदौरिया की जमकर सांठगांठ थी। कुमार भदौरिया को हर गोपनीय जानकारी भेजते थे। सूत्रों के अनुसार यह जानकारी मान्यता संबंधी निरीक्षण टीम, सदस्यों की जानकारी, दौरा, रिपोर्ट आदि को लेकर होती थी। इसी जानकारी के आधार पर भदौरिया डील करते थे।
रावतपुरा सरकार के साथ भदौरिया की सांठगांठ
इस पूरे कांड में रावतपुरा सरकार यानी रविशंकर महाराज मुख्य आरोपी के तौर पर सामने आए हैं। यह भिंड (लहार) के हैं। इसी एरिया के भदौरिया भी हैं। भदौरिया के रावतपुरा सरकार से सालों से संबंध हैं। भदौरिया ने रावतपुरा के साथ संपर्कों का लाभ उठाया और धीरे-धीरे सरकारी सिस्टम में पैठ बना ली। वहीं रावतपुरा को भदौरिया के मेडिकल कॉलेजों से संपर्कों का लाभ हो रहा था। दोनों की इसी जुगलबंदी ने भदौरिया को मान्यता दिलाने के लिए राष्ट्रीय दलाल बना दिया और इसमें जमकर कमीशन खाया। एक-एक कॉलेज की मान्यता के लिए लाखों नहीं बल्कि दो से तीन करोड़ रुपए तक की डील हुई है। इसमें कमीशन खाया गया। राशि संबंधित को हवाला के जरिए पहुंचाई जाती थी।
भदौरिया ने घोस्ट फैकल्टी के लिए क्लोन फिंगर इंप्रेशन बनाए
भदौरिया को लेकर सीबीआई की रिपोर्ट में है कि इंडेक्स ग्रुप में चिकित्सा, दंत चिकित्सा, नर्सिंग, फार्मेसी, पैरामेडिकल साइंसेज और प्रबंधन में शिक्षा देने वाले संस्थान शामिल हैं, जो शैक्षणिक वर्ष 2015-16 से मालवांचल विश्वविद्यालय से संबद्ध हैं। भदौरिया मालवांचल विश्वविद्यालय का संचालन करने वाली मूल संस्था मयंक वेलफेयर सोसाइटी के अध्यक्ष भी हैं। भदौरिया द्वारा इंडेक्स मेडिकल कॉलेज अस्पताल और अनुसंधान केंद्र, इंदौर में डॉक्टरों और कर्मचारियों को अस्थायी आधार पर नियुक्त किया। लेकिन कॉलेज की मान्यता के लिए राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) की न्यूनतम मानक आवश्यकताओं (MSR) को पूरा करने के लिए उन्हें गलत तरीके से स्थाई फैकल्टी बताया। इसके लिए आधार सक्षम बायोमेट्री उपस्थिति प्रणाली (AEBAS) के तहत बायोमेट्रिक उपस्थिति में हेरफेर करने के लिए इन व्यक्तियों के कृत्रिम क्लोन फिंगर इंप्रेशन बनाने तक के काम किए।
भदौरिया दे रहे हैं फर्जी पीएचडी, ग्रेजुएशन डिग्रियां
सीबीआई यहीं तक नहीं रूकी। यह भी खुलासा किया गया है कि भदौरिया अपने करीबी सहयोगियों की मदद से मालवांचल विश्वविद्यालय और उससे जुड़े संस्थानों के माध्यम से कई तरह की अवैध गतिविधियों को अंजाम दे रहे हैं। इन गतिविधियों में अक्सर अयोग्य उम्मीदवारों को फर्जी स्नातक, स्नातकोत्तर और पीएचडी की डिग्री जारी करना शामिल है। स्वास्थय मंत्रालय के राहुल श्रीवास्तव और चंदन कुमार सभी स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार से जुड़े अधिकारी रिश्वत के बदले में विभिन्न मेडिकल कॉलेजों के निरीक्षण, नवीनीकरण और अनुमोदन पत्र (10 ए) जारी करने के काम में शामिल थे।
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अधिकारी कैसे कर रहे थे भदौरिया को मदद
स्वास्थ्य मंत्रालय के आरोपी अधिकारी विभाग के भीतर गोपनीय फाइलों का पता लगाकर और उन पर नज़र रखकर अपने आधिकारिक अधिकार का दुरुपयोग कर रहे थे। मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा की गई आंतरिक टिप्पणियों और टिप्पणियों की अवैध रूप से तस्वीरें खींच रहे निजी व्यक्तियों और मेडिकल कॉलेजों के प्रतिनिधियों के साथ साझा किया जा रहा था। इसमें भदौरिया भी शामिल हैं।
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