इंडेक्स मेडिकल कॉलेज के सुरेश भदौरिया ने देशभर के कॉलेजों को मान्यता दिलाने लिया कमीशन, फर्जी डिग्रियां दे रहे

सीबीआई ने छत्तीसगढ़ के रावतपुरा सरकार इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज एंड रिसर्च से जुड़े एक बड़े घोटाले का पर्दाफाश किया है। इसमें इंडेक्स मेडिकल कॉलेज, इंदौर के चेयरमैन सुरेश भदौरिया समेत कुल 35 आरोपियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है।

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Sanjay Gupta
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Photograph: (The Sootr)

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छत्तीसगढ़ के रावतपुरा सरकार इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज एंड रिसर्च से मेडिकल कॉलेज को मान्यता दिलाने के शुरू हुए खेल का सीबीआई ने भंडाफोड़ किया है। इसमें रावतपुरा सरकार उर्फ रविशंकर महाराज के साथ ही कुल 35 को आरोपी बनाकर एफआईआर दर्ज की गई है। इसी में एक आरोपी है आरोपी नंबर 25- सुरेश भदौरिया, चेयरमैन इंडेक्स मेडिकल कॉलेज इंदौर। बता दें कि फिलहाल भदौरिया सीबीआई के हत्थे नहीं चढ़ा है और फरार बताया जा रहा है।

द सूत्र के पास सीबीआई की एक्सक्लूसिव रिपोर्ट

द सूत्र के पास सीबीआई की एक्सक्लूसिव रिपोर्ट मौजूद है जिसमें भदौरिया के कारनामों का खुलासा किया गया है। इस रिपोर्ट के पूरे एक पन्ने में भदौरिया के ही करतूतें लिखी गई हैं।

इससे साफ होता है कि भदौरिया ने केवल अपने इंडेक्स और अमलतास कॉलेज में खेल नहीं किए बल्कि वह इस खेल में माहिर हो गया था। वहीं केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय व नेशनल मेडिकल कमीशन (NMC) में इतनी पैठ बना चुका था कि उसने देशभर में मेडिकल कॉलेज को मान्यता दिलाने का नेटवर्क बना लिया था।

भदौरिया इस तरह चला रहा था पूरा नेटवर्क

सीबीआई ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के चंदन कुमार (इन्हें भी इस कांड में आरोपी बनाकर एफआईआर दर्ज हुई है) और मप्र के इंडेक्स ग्रुप के चेयरमैन सुरेश भदौरिया की जमकर सांठगांठ थी। 

कुमार भदौरिया को हर गोपनीय जानकारी भेजते थे। सूत्रों के अनुसार यह जानकारी मान्यता संबंधी निरीक्षण टीम, सदस्यों की जानकारी, दौरा, रिपोर्ट आदि को लेकर होती थी। इसी जानकारी के आधार पर भदौरिया डील करते थे।

रावतपुरा सरकार के साथ भदौरिया की सांठगांठ

इस पूरे कांड में रावतपुरा सरकार यानी रविशंकर महाराज मुख्य आरोपी के तौर पर सामने आए हैं। ये भिंड (लहार) के हैं। इसी एरिया के भदौरिया भी हैं। भदौरिया के रावतपुरा के साथ संपर्कों का लाभ उठाया और धीरे-धीरे सरकारी सिस्टम में पैठ बना ली।

वहीं रावतपुरा को भदौरिया के मेडिकल कॉलेजों से संपर्कों का लाभ हो रहा था। दोनों की इसी जुगलबंदी ने भदौरिया को मान्यता दिलाने के गोरखधंधे का सिरमौर बना दिया। इसके साथ ही इस काम में उसने जमकर कमीशन खाया।

एक-एक कॉलेज की मान्यता के लिए लाखों नहीं बल्कि दो से तीन करोड़ रुपए तक की डील हुई है। इसमें कमीशन खाया गया। राशि संबंधित को हवाला के जरिए पहुंचाई जाती थी।

भदौरिया ने घोस्ट फैकल्टी के लिए क्लोन फिंगर इंप्रेशन बनाए

भदौरिया को लेकर सीबीआई की रिपोर्ट में है कि इंडेक्स ग्रुप में चिकित्सा, दंत चिकित्सा, नर्सिंग, फार्मेसी, पैरामेडिकल साइंसेज और प्रबंधन में शिक्षा देने वाले संस्थान शामिल हैं, जो शैक्षणिक वर्ष 2015-16 से मालवांचल विश्वविद्यालय से संबद्ध हैं।

भदौरिया मालवांचल विश्वविद्यालय का संचालन करने वाली मूल संस्था मयंक वेलफेयर सोसाइटी के अध्यक्ष भी हैं। भदौरिया द्वारा इंडेक्स मेडिकल कॉलेज अस्पताल और अनुसंधान केंद्र, इंदौर में डॉक्टरों और कर्मचारियों को अस्थायी आधार पर नियुक्त किया। लेकिन कॉलेज की मान्यता के लिए राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (NMC) की न्यूनतम मानक आवश्यकताओं (MSR) को पूरा करने के लिए उन्हें गलत तरीके से स्थायी फैकल्टी बताया।

इसके लिए आधार सक्षम बायोमेट्री उपस्थिति प्रणाली (AEBAS) के तहत बायोमेट्रिक उपस्थिति में हेरफेर करने के लिए इन व्यक्तियों के कृत्रिम क्लोन फिंगर इंप्रेशन बनाने तक के काम किए।

भदौरिया दे रहे हैं फर्जी पीएचडी, ग्रेजुएशन की डिग्रियां

सीबीआई यहीं तक नहीं रुकी। यह भी खुलासा भी किया है कि भदौरिया अपने करीबी सहयोगियों की मदद से मालवांचल विश्वविद्यालय और उससे जुड़े संस्थानों के माध्यम से कई तरह की अवैध गतिविधियों को अंजाम दे रहे हैं।

इन गतिविधियों में अक्सर अयोग्य उम्मीदवारों को फर्जी स्नातक, स्नातकोत्तर और पीएचडी की डिग्री जारी करना शामिल है। स्वास्थ्य मंत्रालय के राहुल श्रीवास्तव और चंदन कुमार सभी स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार से जुड़े अधिकारी रिश्वत के बदले में विभिन्न मेडिकल कॉलेजों के निरीक्षण, नवीनीकरण और अनुमोदन पत्र (10 ए) जारी करने के काम में शामिल थे।

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अधिकारी कैसे कर रहे थे भदौरिया की मदद

स्वास्थ्य मंत्रालय के आरोपी अधिकारी विभाग के भीतर गोपनीय फाइलों का पता लगाकर और उन पर नजर रखकर अपने आधिकारिक अधिकार का दुरुपयोग कर रहे थे। मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा की गई आंतरिक टिप्पणियों और टिप्पणियों की अवैध रूप से तस्वीरें खींच निजी व्यक्तियों और मेडिकल कॉलेजों के प्रतिनिधियों के साथ साझा किया जा रहा था। इसमें भदौरिया भी शामिल है।

रावतपुरा सरकार की घूसकांड में भूमिका

सीबीआई की रिपोर्ट में बताया गया कि मेडिकल कॉलेज का निरीक्षण कराने के लिए भारी मात्रा में रिश्वत का खेल हुआ है। श्री रावतपुरा सरकार इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज एंड रिसर्च (SRIMSR), रायपुर, छत्तीसगढ़, के इशारे पर इसके चेयरमैन रविशंकर महाराज (रावतपुरा सरकार) आगामी आधिकारिक निरीक्षण के बारे में गोपनीय और अग्रिम जानकारी प्राप्त करने की साजिश में शामिल थे। रावतपुरा सरकार यानी रविशंकर महाराज ने निरीक्षण दल के सदस्यों को रिश्वत के बदले अनुकूल रिपोर्ट देने के लिए राजी करने के लिए टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल स्टडीज, मुंबई (TISS) के चांसलर डी.पी. सिंह की मदद भी ली, जिन्होंने आगे यह काम सुरेश नामक व्यक्ति को सौंप दिया। गोपनीय निरीक्षण संबंधी विवरण का खुलासा करने के बदले में 25-30 लाख रुपए की रिश्वत मांगी गई।

कैसे हुआ पूरा खुलासा, यह है पूरा घूसकांड

सीबीआई को यह जानकारी मिली थी

सीबीआई को सूत्रों से जानकारी मिली है कि स्वास्थ्य मंत्रालय और राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग (NMC) से जुड़े कुछ सरकारी अधिकारी और बिचौलिये मिलकर भ्रष्टाचार कर रहे थे। वे देशभर के निजी मेडिकल कॉलेजों के प्रतिनिधियों के साथ मिलकर गलत कामों में लिप्त थे। इन लोगों ने पद का दुरुपयोग किया और जानबूझकर भ्रष्टाचार फैलाया।

इन व्यक्तियों ने कथित तौर पर मंत्रालय के भीतर मेडिकल कॉलेजों की विनियामक स्थिति और आंतरिक प्रक्रिया से संबंधित गोपनीय फाइलों और संवेदनशील सूचनाओं की अनधिकृत आवश्यकता, गैरकानूनी नकल और प्रसार में मदद की है। इसके अलावा, वे आधिकारिक संचार से पहले ही संबंधित चिकित्सा संस्थानों को निरीक्षण कार्यक्रम और नामित मूल्यांकनकर्ताओं की पहचान का खुलासा करके NMC द्वारा आयोजित वैधानिक निरीक्षण प्रक्रिया में हेरफेरी करने में शामिल रहे हैं।

इससे कॉलेज घोस्ट फैकल्टी और फर्जी मरीज भर्ती करते थे

सीबीआई को पता चला कि गोपनीय जानकारी लीक होने से मेडिकल कॉलेजों में धोखाधड़ी बढ़ रही थी। इसमें निरीक्षण रिपोर्ट को सही दिखाने के लिए रिश्वत दी जाती थी। इसके अलावा, घोस्ट फैकल्टी (गैर-मौजूद शिक्षक) को नियुक्त किया जाता था। निरीक्षण के दौरान नियमों का पालन दिखाने के लिए फर्जी मरीज भर्ती किए जाते थे। संकाय की उपस्थिति को सही दिखाने के लिए बायोमेट्रिक सिस्टम के साथ छेड़छाड़ की जाती थी।

इन सभी के शामिल होने की आई खबर

सीबीआई को सूत्र ने यह भी बताया है कि व्यक्तियों का एक समूह, अर्थात् पूनम मीना, धर्मवीर, पीयूष माल्यान (अनुभाग अधिकारी), अनूप जायसवाल, राहुल श्रीवास्तव और चंदन कुमार सभी स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार से जुड़े अधिकारी रिश्वत के बदले विभिन्न मेडिकल कॉलेजों के निरीक्षण, नवीनीकरण और स्वीकृति पत्र (10 ए) जारी करने से संबंधित इस मामले में शामिल थे। ये लोग मंत्रालय के भीतर प्रासंगिक फाइलों का पता लगाकर और उन पर नजर रखकर अपने आधिकारिक अधिकार का दुरुपयोग कर रहे थे और मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा की गई आंतरिक टिप्पणियों और टिप्पणियों की अवैध रूप से तस्वीरें खींच रहे थे।

इन्होंने ली यह गोपनीय जानकारी

ऐसी गोपनीय जानकारी प्राप्त करने वालों में यह शामिल हैं। डॉ. वीरेंद्र कुमार (निवासी पालम विहार, गुरुग्राम, हरियाणा), मनीषा जोशी (सेक्टर-8, द्वारका, नई दिल्ली), सुरेश सिंह भदौरिया (अध्यक्ष, इंडेक्स मेडिकल कॉलेज, इंदौर), उदित नारायण (पनकी, कानपुर), डॉ. जोशी मैथ्यू (ग्रीन पार्क एक्सटेंशन, नई दिल्ली) और सेंट मयूर रावल (रजिस्ट्रार, गीतांजलि विश्वविद्यालय, उदयपुर, राजस्थान)। लेकिन यह नाम यहीं तक सीमित नहीं हैं और भी हैं।

इस तरह से बना गठबंधन

सीबीआई को पता चला कि डॉ. वीरेंद्र कुमार ने इंद्र बली मिश्रा उर्फ 'गुरुजी' के माध्यम से, एएन-315/1, गंगा प्रदूषन रोड निवासी स्व. भगवानपुर, BIHU, वाराणसी, उत्तर प्रदेश, तत्कालीन पूर्णकालिक सदस्य मेडिकल असेसमेंट एंड रेटिंग बोर्ड (MARB) डॉ. जीतू लाल मीना के संपर्क में था। उन्होंने एक दूसरे के साथ आपराधिक साजिश में, विभिन्न निजी मेडिकल कॉलेजों से उन्हें अनुचित विनियामक लाभ देने के बदले में अवैध रूप से बड़ी मात्रा में रिश्वत ली। रिश्वत की रकम दिल्ली में डॉ. वीरेंद्र कुमार तक हवाला चैनलों के माध्यम से पहुंचाई गई। कई मौकों पर, नोएडा निवासी शिवम पांडे ने अपने साले इंद्रा बाली मिश्रा के जरिए राशि कलेक्टर कराई। इसमें डॉ. जीतू लाल मीना भी शामिल थे, उन्होंने अपने आवास पर यह किया।

सूत्रों ने यह भी बताया कि डॉ. मीना ने गलत तरीके से अर्जित धन से मोहचा का पुरा, सवाई माधोपुर, राजस्थान में हनुमान मंदिर का निर्माण कराया है तथा निर्माण लागत (लगभग 75 लाख रुपये) का भुगतान डॉ. जीतू लाल मीना की ओर से डॉ. वीरेंद्र कुमार द्वारा एकत्र रिश्वत के धन से हवाला के माध्यम से ठेकेदार सारी भीकालाल, दौसा, राजस्थान को किया गया है।

डॉ. वीरेंद्र कुमार दक्षिण के राज्यों में कर रहे थे खेल

सूत्र ने यह भी बताया कि डॉ. वीरेंद्र कुमार अपने सहयोगी के माध्यम से भारत के दक्षिणी राज्यों में काम करते हैं। डॉ. बी. हरि प्रसाद, कादिरी, आंध्र प्रदेश के निवासी हैं। डॉ. हरि प्रसाद को दो साझेदार सहायता करते हैं। डॉ. अंकम कामबाबू, और डॉ. कृष्ण किशोर, जो डी. नंबर 49-11-5, ललिता नगर, अक्कय्यापलेम, विशाखापत्तनम में रहते हैं। डॉ. एच. हरि प्रसाद, मेडिकल कॉलेजों के सलाहकार के रूप में काम करते हुए, अवैध गतिविधियों में लिप्त हैं। सूत्र ने आगे बताया कि एक मामले में, डॉ. हरि प्रसाद के निर्देश पर काम करते हुए डॉ. कृष्ण किशोर ने एनएमसी के समक्ष लंबित एक मामले का अनुकूल समाधान सुनिश्चित करने के लिए गायत्री मेडिकल कॉलेज, विशाखापत्तनम के निदेशक वेंकट से 50 लाख लिए थे। रिश्वत की उक्त राशि का एक हिस्सा बाद में हवाला चैनलों के माध्यम से दिल्ली में डॉ. वीरेंद्र कुमार को हस्तांतरित किया गया था। सूत्र ने आगे खुलासा किया है कि डॉ. हरि प्रसाद और डॉ. अंकम रामबाबू संयुक्त रूप से फादर कोलंबो इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज, वारंगल के नियामक मामलों का प्रबंधन करते थे, बदले में संस्थान ने दो अलग-अलग मौकों पर 20 लाख और 46 लाख का भुगतान किया था।

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