छत्तीसगढ़ में अवैध प्लॉटिंग का काला कारोबार, कमीशनखोरी में लिप्त पूरा तंत्र

छत्तीसगढ़ में अवैध प्लॉटिंग का खेल थमने का नाम नहीं ले रहा। बार-बार कार्रवाई के बावजूद इस काले धंधे पर लगाम नहीं लग पा रही। कार्रवाई के नाम पर छोटे-मोटे लोग तो पकड़े जाते हैं, लेकिन बड़ी मछलियां हमेशा बच निकलती हैं।

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Krishna Kumar Sikander
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छत्तीसगढ़ में अवैध प्लॉटिंग का खेल थमने का नाम नहीं ले रहा। बार-बार कार्रवाई के बावजूद इस काले धंधे पर लगाम नहीं लग पा रही। कार्रवाई के नाम पर छोटे-मोटे लोग तो पकड़े जाते हैं, लेकिन बड़ी मछलियां हमेशा बच निकलती हैं। इस गोरखधंधे का सबसे बड़ा शिकार वे मेहनतकश लोग बनते हैं, जो अपनी जमा-पूंजी लगाकर ऐसी जमीन खरीदते हैं और बाद में ठगे जाने का दर्द सहते हैं। आइए, आपको बताते हैं इस अवैध प्लॉटिंग के पीछे की कमीशनखोरी की कहानी, जिसमें पटवारी, आरआई, तहसीलदार से लेकर पुलिस और जोन अफसर तक शामिल हैं।

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खेत से करोड़ों की कमाई का खेल

भू-माफिया शहर के बाहरी इलाकों में अवैध प्लॉटिंग का अपना धंधा बेखौफ चला रहे हैं। ये भू-माफिया किसानों से 30 से 40 लाख रुपये प्रति एकड़ में खेत खरीदते हैं और उसी जमीन को प्लॉट काटकर 2-2.5 करोड़ रुपये में बेच देते हैं। इस मोटी कमाई में से 80 लाख से 1 करोड़ रुपये तक की रकम कमीशन के रूप में बांटी जाती है। इस कमीशन में पटवारी, आरआई, तहसीलदार, जोन कमिश्नर, थाना प्रभारी और सीएसपी तक का हिस्सा तय होता है। इतना पैसा बांटने के बाद भी भू-माफियाओं के पास लाखों की बचत रहती है। यही लालच इस धंधे को जिंदा रखे हुए है।

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ऐसे काम करता है गणित

भू-माफिया और टाउन प्लानर इस खेल का पूरा हिसाब-किताब रखते हैं। एक एकड़ जमीन में 44 हजार वर्गफुट होता है। इसमें से 10-12 फीट की सड़क के लिए जमीन छोड़कर बाकी हिस्सा बेचा जाता है। करीब 14 हजार वर्गफुट सड़क के लिए निकालने के बाद 30 हजार वर्गफुट जमीन बिक्री के लिए बचती है। दलाल इस जमीन को 800 रुपये प्रति वर्गफुट की दर से बेचते हैं, जिससे 30 हजार वर्गफुट की बिक्री पर 2.4 करोड़ रुपये मिलते हैं। इसमें से किसान को 30-40 लाख रुपये दिए जाते हैं, और 80 लाख से 1 करोड़ रुपये कमीशन में बंटते हैं। बाकी रकम भू-माफिया की जेब में जाती है।

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इसलिए नहीं डरते भू-माफिया

नगर निगम की कार्रवाइयों के बावजूद भू-माफिया बेखौफ हैं। जिन इलाकों में कार्रवाई होती है, वहां भी ये दलाल दोबारा अवैध प्लॉटिंग शुरू कर देते हैं। सस्ती जमीन का लालच दिखाकर लोगों को आसानी से फंसा लिया जाता है। निगम ने कुछ जगहों पर सरकारी जमीन या गैर-कानूनी ले-आउट वाली जगहों पर बोर्ड लगाने शुरू किए हैं, लेकिन ये बोर्ड हर जगह नहीं हैं। इसका फायदा भू-माफिया बखूबी उठा रहे हैं।

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कमीशन का काला खेल

इस धंधे में कमीशनखोरी का जाल ऐसा है कि हर स्तर पर हिस्सा बंटता है। कुल कमाई का 10% हिस्सा नेताओं, अफसरों और पुलिस तक पहुंचता है। यह रकम सीधे नहीं, बल्कि दो-तीन बिचौलियों के जरिए दी जाती है।  

जोन कमिश्नर और अन्य अफसर: 10% कमीशन।  

आरआई-पटवारी: दखल न देने के लिए 5-10%।  

तहसीलदार: डायवर्सन मंजूरी और दस्तावेजों पर कार्रवाई न करने के लिए 10% तक।

भ्रष्टाचार की नींव पर टिका है धंधा

अवैध प्लॉटिंग का यह खेल कमीशनखोरी और भ्रष्टाचार की नींव पर टिका है। जब तक इस तंत्र पर सख्ती से कार्रवाई नहीं होगी, न तो भू-माफिया रुकेंगे और न ही आम लोगों का शोषण बंद होगा। जरूरत है पारदर्शी व्यवस्था और कठोर कानूनी कदमों की, ताकि इस काले कारोबार पर लगाम लग सके।

 

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