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सरप्लस स्टेट होने के तमाम दावे के बावजूद छग सरकार ने बिजली बिल हाफ योजना को क्यों बदला? जब द सूत्र ने इसकी पड़ताल की तो एक बड़ा खुलासा सामने आया है। दरअसल छग सरकार बिजली कंपनियों के घाटों को कम करने के लिए जनता की योजना पर ग्रहण लगा रही है। पड़ताल में यह सामने आया कि बिजली कंपनियों का 50 हजार करोड़ बकाया है। बिजली कंपनी इन बड़े बकाएदारों से वसूलने में विफल है। इसमें एक बड़ा नाम तेलंगाना सरकार भी है। जिसने बीते कई सालों से छग सरकार का 18,500 करोड नहीं दिया।
2015 में हुआ था अनुबंध
पूर्ववर्ती भाजपा सरकार के कार्यकाल 2015 में छत्तीसगढ़ और तेलंगाना के बीच बिजली आपूर्ति को लेकर समझौता हुआ था। इसके तहत मड़वा ताप विद्युत संपेल से तेलंगाना को एक हजार मेगावाट तक बिजली की आपूर्ति की गई थी। लेकिन तेलंगाना सरकार ने समय पर भुगतान नहीं किया, जिससे बकाया बढ़कर लगभग 36,000 करोड़ रुपये तक पहुंच गया।
बीच दबाव के बाद तेलंगाना सरकार ने किस्तों में 17,500 करोड़ रुपये का भुगतान तो किया, लेकिन पिछले कुछ सालों से शेष 18,500 करोड़ रुपए का भुगतान नहीं किया। जिसके बाद छग सरकार ने बिजली आपूर्ति पर रोक लगा दी है।
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वित्तीय तनाव से गुजर रही कंपनी
बकाएदारों के कारण भी CSPDCL यानी छत्तीसगढ़ पॉवर डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी वित्तीय तनाव से गुजर रही है। बिजली कंपनी के अधिकारियों के अनुसार पिछली सरकार के कार्यकाल में भी तेलंगाना से बकाया वसूली के प्रयास किए गए थे। उस समय दोनों राज्यों के अधिकारियों के बीच बैठकों का दौर चला था, जिसमें तेलंगाना ने आंशिक बकाया मानने और किस्तों में भुगतान करने की बात मानी थी। इसके बावजूद भुगतान नहीं किया, जिसका खामियाजा छत्तीसगढ़ के लोगों को भरना पड़ रहा है।
तेलंगाना में सरकार बदलने से बदला समीकरण
विवाद के बीच तेलंगाना में कांग्रेस सरकार बनने के बाद नए मोड़ भी आए हैं। मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी के नेतृत्व वाली सरकार ने छत्तीसगढ़ से बिना टेंडर के ऊंची दर पर बिजली खरीदने और इससे 13,00 करोड़ रुपये के नुकसान का आरोप लगाया है। इस मामले में भ्रष्टाचार की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक सदस्यीय आयोग का गठन किया गया है, जिसकी जांच चल रही है।
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