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CG-MP Liquor tax case 2001: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने विदेशी शराब पर लगाए गए आयात शुल्क को चुनौती देने वाली दो याचिकाओं को खारिज कर दिया है। यह ऐतिहासिक फैसला 25 साल पुराने एक विवाद पर आया है, जिसमें बिलासपुर के दो शराब कारोबारियों ने आबकारी विभाग के नोटिस को अदालत में चुनौती दी थी। जस्टिस नरेंद्र कुमार व्यास की एकल पीठ ने यह निर्णय देते हुए कहा कि मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ अब अलग इकाइयां हैं, और इस कारण मध्यप्रदेश से शराब लाने को अंतरराज्यीय व्यापार माना जाएगा, जिस पर आयात शुल्क लागू होता है।
क्या है पूरा मामला?
वर्ष 2001 में बिलासपुर की दो कंपनियां गोल्डी वाइन प्राइवेट लिमिटेड और सतविंदर सिंह भाटिया ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर छत्तीसगढ़ आबकारी विभाग के उस नोटिस को चुनौती दी थी, जिसमें उनसे वर्ष 2000-2001 के लिए मंगाई गई विदेशी शराब पर आयात शुल्क की मांग की गई थी।
सहायक आयुक्त (आबकारी), बिलासपुर ने इन कारोबारियों को नोटिस जारी कर शुल्क भुगतान करने का निर्देश दिया था, जिसे उन्होंने अदालत में यह कहते हुए चुनौती दी कि:
- उन्हें पहले एनओसी (अनापत्ति प्रमाण पत्र) के आधार पर शराब लाने की अनुमति दी गई थी।
- उस समय मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ का बंटवारा नहीं हुआ था, इसलिए आयात शुल्क लगाने का कोई औचित्य नहीं।
- पिछली तिथि से शुल्क वसूली करने से उन्हें भारी आर्थिक नुकसान होगा।
कोर्ट की टिप्पणी और फैसला
हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने याचिकाएं खारिज करते हुए स्पष्ट किया कि अब छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश दो स्वतंत्र राज्य हैं और उनके बीच होने वाला कारोबार अंतरराज्यीय व्यापार की श्रेणी में आता है। ऐसे में छत्तीसगढ़ राज्य को आयात शुल्क लगाने का पूरा अधिकार है।
कोर्ट ने यह भी कहा कि भले ही शराब 2000-2001 के दौरान मंगाई गई हो, लेकिन जब नोटिस जारी किया गया तब तक राज्य का पुनर्गठन हो चुका था। ऐसे में एनओसी का आधार देकर शुल्क से छूट नहीं दी जा सकती।
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शराब टैक्स मामला 2001
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करीब 25 साल बाद आए इस फैसले से यह स्पष्ट हो गया है कि राज्य पुनर्गठन के बाद छत्तीसगढ़ का आबकारी विभाग अंतरराज्यीय शराब व्यापार पर आयात शुल्क वसूल सकता है। यह फैसला राज्य की राजस्व व्यवस्था और शराब कारोबार से जुड़े नियमों की वैधता को संवैधानिक रूप से मजबूत करता है।
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