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Salary dispute case 2013: छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने शासन के गृह विभाग में पदस्थ तीन अफसरों के खिलाफ अदालत की अवमानना के आरोप में बड़ा कदम उठाया है। कोर्ट ने इन तीनों अफसरों पर ₹50-50 हजार का जमानती वारंट जारी करते हुए उन्हें 4 सितंबर को व्यक्तिगत रूप से कोर्ट में उपस्थित होने का आदेश दिया है। यह मामला लंबे समय से चल रहा है और इसकी जड़ें साल 2013 तक जाती हैं।
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क्या है पूरा मामला?
2013 में जेल विभाग के 17 फार्मासिस्ट ग्रेड-2 कर्मचारियों ने शिकायत की थी कि उन्हें समान पद पर कार्यरत अन्य विभागों के कर्मचारियों से कम वेतन दिया जा रहा है। इस भेदभाव के खिलाफ उन्होंने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी।
2023 का फैसला और शासन का रवैया
लगभग दस साल बाद, 2023 में हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ताओं के पक्ष में फैसला सुनाया और उन्हें न्याय दिलाया। लेकिन शासन ने इस आदेश को लागू नहीं किया। इसके बजाय, 2024 में शासन ने इस फैसले को चुनौती देते हुए अपील की, जिसे हाईकोर्ट की युगल पीठ ने विचारण-अयोग्य बताकर खारिज कर दिया।
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आदेश लागू न होने पर अवमानना याचिका
जब शासन ने 2023 का आदेश लागू नहीं किया, तो याचिकाकर्ताओं ने 2025 में न्यायालय की अवमानना याचिका दाखिल की। उनकी ओर से अधिवक्ता प्रवीण सोनी और सहयोगी विजयिता साहू व शीतल सोनी ने पक्ष रखा।
हाईकोर्ट की सख्ती
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत का हवाला देते हुए याचिकाकर्ताओं के अंतरिम आवेदन को तो खारिज कर दिया, लेकिन शासन की लापरवाही को गंभीर मानते हुए तीन अफसरों पर जमानती वारंट जारी किया। साथ ही उन्हें कोर्ट में व्यक्तिगत रूप से पेश होने का आदेश भी दिया।
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क्यों महत्वपूर्ण है यह फैसला?
यह फैसला स्पष्ट संदेश देता है कि न्यायालय के आदेशों की अवहेलना गंभीर अपराध है। चाहे वे शासन के उच्च पदस्थ अधिकारी ही क्यों न हों, कोर्ट के आदेश का पालन करना उनके लिए अनिवार्य है।
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