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Raipur. छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग (CGPSC) भर्ती घोटाले में केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) की जांच में कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। 29 सितंबर को दाखिल लगभग 2000 पन्नों की चार्जशीट के अनुसार, CGPSC की 2021 में प्रस्तावित मुख्य परीक्षा का प्रश्न पत्र लीक हुआ था। CBI ने इस मामले में पांच आरोपियों को गिरफ्तार किया है, जिनमें PSC की पूर्व परीक्षा नियंत्रक आरती वासनिक, पूर्व सचिव और सेवानिवृत्त IAS अधिकारी जीवनलाल ध्रुव, उनके बेटे सुमित ध्रुव, निशा कोसले और दीपा आदिल शामिल हैं।
परीक्षा में अनियमितताएं और चयन में गड़बड़ी
चार्जशीट के अनुसार, प्रश्न पत्र आरती वासनिक ने सचिव जीवनलाल ध्रुव के माध्यम से लीक करवाया। परीक्षा प्रक्रिया में गंभीर अनियमितताएं बरती गईं और PSC के तत्कालीन चेयरमैन टामन सिंह सोनवानी के परिवार के सदस्यों को अवैध लाभ दिया गया। टामन के भतीजे और दत्तक पुत्र नीतेश सोनवानी तथा उनकी बहू निशा कोसले मुख्य इंटरव्यू में शामिल नहीं हुए, फिर भी उनका नाम चयन सूची में शामिल किया गया।
पेपर की लीकिंग और तैयारी
CBI जांच में सामने आया कि परीक्षा से पहले दीपा, निशा, साहिल और नीतेश को टामन ने प्री और मेन्स परीक्षा का पेपर उपलब्ध कराया। चारों ने मिलकर अभ्यास किया और चयन पहले से तय था। टामन के भतीजे विनीत और श्वेता की चैट से भी चयन की चर्चा का खुलासा हुआ।
छापेमारी और साक्ष्य
17 जुलाई 2024 को CBI ने PSC सचिव जेके ध्रुव के घर छापा मारा और पेपर व प्रैक्टिस आंसर शीट बरामद की। पेपर-2 और पेपर-7 पहले से सुमित के पास थे, जिसमें 47 में से 42 प्रश्न उसे उपलब्ध कराए गए थे। पेपर-2 में क्रिप्टो करेंसी, टोनही प्रथा और दंतेवाड़ा पर निबंध शामिल थे, जिन पर सुमित ने साल भर अभ्यास किया।
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मॉडरेटर और पेपर रिकॉर्ड में अनियमितताएं
CBI ने आरती वासनिक के पास से एक रजिस्टर जब्त किया, जिसमें पेपर बनाने वाले मॉडरेटरों के नाम दर्ज थे। कई मॉडरेटरों ने दावा किया कि उन्होंने पेपर तैयार नहीं किया था। स्ट्रॉन्ग रूम में पेपर का कोई एंट्री रिकॉर्ड नहीं मिला, जिससे पता चला कि 2021 की मुख्य परीक्षा में कोई नया पेपर तैयार नहीं किया गया था, बल्कि पुराने लीक पेपर का उपयोग हुआ।
CGPSC घोटाला क्या है?
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CGPSC घोटाले का संक्षिप्त विवरण
यह मामला 2020 से 2022 के बीच हुई भर्ती प्रक्रियाओं से जुड़ा है। आरोप है कि आयोग की परीक्षाओं और इंटरव्यू में पारदर्शिता को दरकिनार कर राजनीतिक और प्रशासनिक रसूख वाले परिवारों के उम्मीदवारों को उच्च पदों पर चयनित किया गया। योग्य अभ्यर्थियों को दरकिनार कर डिप्टी कलेक्टर, डीएसपी और अन्य राजपत्रित पदों पर अपने नजदीकी लोगों को नियुक्त किया गया। प्रदेश सरकार ने मामले की गंभीरता को देखते हुए जांच CBI को सौंपी, जिसने छापेमारी में कई दस्तावेज और आपत्तिजनक साक्ष्य बरामद किए।