छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट का फैसला: बर्खास्त कर्मचारियों की बहाली या मुआवजा तय करने का कोई फार्मूला नहीं

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट की फुल बेंच ने कहा है कि नौकरी से निकाले गए कर्मचारियों के मामलों में बहाली या मुआवजा देने का कोई तय फॉर्मूला नहीं हो सकता। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि हर मामले की परिस्थितियां अलग होती हैं।

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Harrison Masih
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छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट की फुल बेंच ने एक महत्वपूर्ण फैसला दिया है। नौकरी से निकाले गए कर्मचारियों के मामलों में यह तय करने के लिए कोई निश्चित मानक (फॉर्मूला) नहीं बनाया जा सकता, कि उन्हें बहाली दी जाए या मुआवजा। कोर्ट ने कहा कि हर मामला अपनी परिस्थितियों के हिसाब से तय होगा।

चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा, जस्टिस नरेश कुमार चंद्रवंशी और जस्टिस रविंद्र कुमार अग्रवाल की तीन जजों की फुल बेंच ने यह फैसला सुनाया। कोर्ट ने मामले को निर्णय के लिए डिवीजन बेंच को रोस्टर के अनुसार भेजने का आदेश दिया। सुनवाई के बाद फुल कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था, जिसे अब सार्वजनिक किया गया।

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मामला कैसे पहुंचा फुल बेंच तक

वर्ष 2015 में कर्मचारियों की बर्खास्तगी से जुड़ा मामला अदालत में आया।

  • सिंगल बेंच का फैसला: 10 साल या उससे अधिक सेवा देने वालों को बहाली देने और कम अवधि वालों को मुआवजा देने का आदेश।
  • डिवीजन बेंच का फैसला: सिंगल बेंच का आदेश पलटते हुए कहा कि औद्योगिक विवाद अधिनियम की धारा 25 एफ के तहत छंटनी अवैध होने पर सभी कर्मचारियों के साथ समानता बरती जानी चाहिए।

इन दोनों फैसलों में मतभेद के चलते 2016 में मामला फुल बेंच को रेफर किया गया।

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याचिकाकर्ता और कर्मचारियों की कहानी

मूल याचिकाकर्ता को 1 मार्च 1985 को श्रमिक के पद पर नियुक्त किया गया था। 1 अगस्त 1994 को मौखिक आदेश से सेवा समाप्त कर दी गई। तुलाराम, बड़कू, धनीराम, खेलाफ, भरत, रामनारायण, हरिशंकर, दुकालू, श्यामू और कुशुराम समेत कई श्रमिकों को भी नौकरी से निकाल दिया गया।

सभी ने 1995 में रायपुर लेबर कोर्ट में याचिका दायर की। लेबर कोर्ट ने याचिकाएं खारिज कीं, जिसके खिलाफ औद्योगिक न्यायालय में अपील हुई। औद्योगिक न्यायालय ने 2017 में लेबर कोर्ट का आदेश पलटते हुए बहाली का आदेश दिया। इसके बाद सभी की नौकरी लग गई और सेवा पुस्तिका भी बन गई।

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राज्य सरकार का परिपत्र और आगे की कार्रवाई

2008 में राज्य सरकार ने परिपत्र जारी किया कि 1988 से 1997 तक काम करने वाले दैनिक वेतनभोगियों को नियमित किया जाएगा। अपील लंबित होने के कारण अपीलकर्ताओं को यह लाभ नहीं मिला।

12 अगस्त 2014 को हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने सरकार के पक्ष में फैसला देकर बहाली रद्द की और एक-एक लाख रुपये मुआवजा देने का आदेश दिया।

बर्खास्त कर्मचारियों की बहाली पर हाईकोर्ट का फैसला

  1. कोई तय फॉर्मूला नहीं:
    छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट की फुल बेंच ने कहा कि बहाली या मुआवजा तय करने के लिए कोई निश्चित नियम लागू नहीं किया जा सकता।

  2. मामले के आधार पर फैसला:
    कोर्ट ने स्पष्ट किया कि हर केस की परिस्थितियां अलग होती हैं, इसलिए निर्णय तथ्य और सबूतों के आधार पर ही होगा।

  3. बेंच के विरोधाभासी आदेश:
    2015 में आए मामलों पर सिंगल बेंच और डिवीजन बेंच के अलग-अलग आदेशों के कारण यह मामला 2016 में फुल बेंच को भेजा गया था।

  4. लंबा कानूनी संघर्ष:
    मजदूरों ने 1995 में लेबर कोर्ट में याचिका दायर की थी। कई सालों की सुनवाई के बाद मामला हाईकोर्ट तक पहुंचा।

  5. नीति और समानता पर जोर:
    कोर्ट ने कहा कि छंटनी और बहाली जैसे संवेदनशील मामलों में समानता का सिद्धांत लागू रहेगा, लेकिन एक जैसा निर्णय सभी मामलों पर लागू नहीं किया जा सकता।

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डिवीजन बेंच के सामने उठे थे ये 5 सवाल

  • क्या हाईकोर्ट श्रम न्यायालय के आदेश में हस्तक्षेप कर सकता है?
  • छंटनी अवैध होने पर कर्मचारी को बहाली मिलनी चाहिए या मुआवजा?
  • किन परिस्थितियों में बहाली और किन परिस्थितियों में मुआवजा उचित होगा?
  • पिछला वेतन (Back Wages) देने के मानदंड क्या होंगे?
  • देरी से अपील करने का प्रभाव क्या होगा?

फुल बेंच का निष्कर्ष

फुल बेंच ने कहा कि बहाली और मुआवजा तय करने के लिए कोई तयशुदा फॉर्मूला नहीं हो सकता। हर मामले का निर्णय तथ्यों और परिस्थितियों के आधार पर किया जाएगा।

कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि प्रत्येक केस की जटिलता अलग होती है, इसलिए समान मानक लागू करना संभव नहीं।

CG High Court

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