छत्तीसगढ़ DMF घोटाला: अफसरों में बंटा करोड़ों का कमीशन, रानू साहू ने बटोरे 57.85 करोड़

कोरबा जिले में डिस्ट्रीक्ट मिनरल फाउंडेशन फंड से जुड़े अब तक के सबसे बड़े भ्रष्टाचार का पर्दाफाश हुआ है। इस घोटाले में शासन के उच्च पदस्थ अधिकारियों, दलालों ने फंड खर्च के नियमों में बदलाव कर 575 करोड़ रुपए से अधिक की धांधली को अंजाम दिया।

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Harrison Masih
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छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले में डिस्ट्रीक्ट मिनरल फाउंडेशन (DMF) फंड से जुड़े अब तक के सबसे बड़े भ्रष्टाचार का पर्दाफाश हुआ है। इस घोटाले में शासन के उच्च पदस्थ अधिकारियों, प्रशासनिक अफसरों और दलालों ने सुनियोजित तरीके से फंड खर्च के नियमों में बदलाव कर 575 करोड़ रुपए से अधिक की धांधली को अंजाम दिया। एंटी करप्शन ब्यूरो (ACB) द्वारा रायपुर कोर्ट में पेश किए गए 6 हजार पन्नों के चालान में यह घोटाला उजागर हुआ है।

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कैसे रची गई घोटाले की स्क्रिप्ट?

DMF फंड खर्च के लिए नियमों में बदलाव किया गया ताकि मनमाफिक प्रोजेक्ट्स को पास कर ज्यादा कमीशन कमाया जा सके। पहले से निर्धारित विकास कार्यों को दरकिनार कर मटेरियल सप्लाई, कृषि उपकरण, मेडिकल व खेल सामग्री जैसे प्रावधानों को जोड़ा गया, ताकि इन कैटेगरी के नाम पर महंगे टेंडर पास किए जा सकें और अधिकतम घूस वसूली जा सके।

कमीशन का बंटवारा – टॉप से बॉटम तक सिंडिकेट

इस पूरे घोटाले में कमीशन तय अनुपात में बांटा जाता था:

कलेक्टर (रानू साहू) – 40%

जनपद सीईओ – 5%

एसडीओ – 3%

सब इंजीनियर – 2%

गिरफ्तार अफसर भुवनेश्वर सिंह राज और भरोसा राम ठाकुर ने पूछताछ में इन आंकड़ों की पुष्टि की। 

रानू साहू और माया वारियर: सिस्टम की दो धुरी

1. रानू साहू (पूर्व कलेक्टर, कोरबा):

DMF टेंडर पास करवाने के एवज में 40% कमीशन लिया। कोल कारोबारी सूर्यकांत तिवारी और माया वारियर के साथ मिलकर पूरा करप्शन प्लान तैयार किया। DMF में मलाईदार पोस्टिंग के लिए रानू को जानबूझकर कोरबा भेजा गया।

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2. माया वारियर (AC, ट्राइबल):

DMF टेंडर स्वीकृति के लिए वेंडर्स से करोड़ों की घूस ली। वेंडर संजय शेंडे से 25.95 लाख की Innova Crysta कार घूस में ली। वेंडर ऋषभ सोनी से 24.78 लाख लिए, राशि बिचौलियों के जरिए वसूली गई। अपनी बहन को शेंडे की कंपनी में फर्जी नौकरी दिलाकर 9.10 लाख रुपए वेतन के रूप में लिए।

वीके राठौर: जनपद सीईओ की भूमिका

घोटाले में एक और बड़ा नाम है वीरेंद्र कुमार राठौर (वीके राठौर), जिन्होंने पाली और कटघोरा जनपद पंचायत में काम करने के दौरान 150 करोड़ के टेंडर की मंजूरी के बदले कुल 19 करोड़ रुपए रिश्वत ली। वेंडर मनोज द्विवेदी, राकेश शुक्ला और संजय शेंडे से अलग-अलग रूप से रकम वसूली। ये रकम बाद में माया वारियर के निर्देश पर बिचौलियों को सौंपी गई। 9 मई को राठौर की गिरफ्तारी हुई, जब वे जशपुर जिले के पत्थलगांव जनपद पंचायत में C.E.O. के रूप में तैनात थे।

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घोटाले का नेटवर्क: सरकार, वेंडर और दलालों का गठजोड़

इस घोटाले का नेटवर्क सिर्फ अफसरों तक सीमित नहीं था। इसमें शामिल थे राजनीतिक संरक्षण में बैठे प्रभावशाली लोग, कोल माफिया, वेंडर कंपनियां व बिचौलिए, कलेक्टोरेट कर्मी। 

ACB की रिपोर्ट और आगे की कार्रवाई

ACB द्वारा पेश किए गए दस्तावेजों के अनुसार: भ्रष्टाचार संगठित रूप से किया गया।हर स्तर पर कमीशन तय था। सबूत इतने मजबूत हैं कि कई और गिरफ्तारी हो सकती हैं।

कोरबा का DMF घोटाला सिर्फ आर्थिक अनियमितता नहीं, बल्कि छत्तीसगढ़ में नौकरशाही और राजनीतिक गठजोड़ के भ्रष्ट चेहरे का आईना है। जांच एजेंसियों के लिए यह अग्निपरीक्षा है — क्या सच्चाई पूरी बाहर आएगी, या ये मामला भी दबा दिया जाएगा?

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