Raipur : आईएएस पूजा खेड़कर का मामला उजागर होने के बाद कभी विकलांगता तो कभी जाति के फर्जीवाड़े के मामले लगातार सामने आ रहे हैं। छत्तीसगढ़ में जाति के नाम पर बड़ा फर्जीवाड़ा चल रहा है। फर्जी जाति बताकर लोग पिछले 15 साल से सरकारी नौकरी में जमे हुए हैं। यहां तक कि नौकरी में प्रमोशन भी मिल गया। एक मामला तो और हैरान करने वाला है। कॉलेज की एक महिला प्रोफेसर अपने एक जन्म में ही तीन जातियों का सुख भोग रही हैं। किसी जाति से पढ़ाई कर लेती हैं तो किसी जाति से नौकरी पा जाती हैं। प्रमाणपत्र मांगा जाता है तो तीसरी जाति सामने आ जाती है। हैरानी ये भी है कि इससे सरकार को कोई फर्क नहीं पड़ता। इसकी न कोई मुकम्मल जांच होती है और न ही कोई एक्शन।
सरकारी नर्सिंग कॉलेज में फर्जी प्रोफेसर
छत्तीसगढ़ के सरकारी नर्सिंग कॉलेज फर्जी जाति से नौकरी पाए प्रोफेसरों के सहारे चल रहे हैं। पिछले 15 साल से कुछ सरकारी कर्मचारियों की जाति पर सवाल उठ रहे हैं। लेकिन न तो उन सवालों का जवाब मिल रहा है और न ही उन पर कोई कार्रवाई हो रही है। हम जो मामले बताने जा रहे हैं वे छत्तीसगढ़ की रमन सरकार के समय के हैं। ये मामले आज भी सुलग रहे हैं। इनकी शिकायत हुई, जांच हुई लेकिन कार्रवाई कुछ नहीं हुई। विधानसभा के मानसून सत्र में इन मामलों पर उठे सवाल का जवाब मिलना था लेकिन जवाब अधूरा होने से इस सवाल को अगले सत्र के लिए भेज दिया गया। यह मामला बीजेपी के ही वरिष्ठ विधायक और पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर ने ही उठाया था। सवाल का जवाब भले ही सरकार ने टाल दिया हो लेकिन द सूत्र ने इन मामलों की पड़ताल की तो हैरान करने वाला मामला सामने आया।
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एक जन्म में तीन जाति का सुख भोग रहीं प्रोफेसर
नर्सिंग कॉलेज की प्रोफेसर नीलम पाल की जाति पर पिछले 15 साल से सवाल उठ रहे हैं। इन 15 सालों में इनकी तीन बार जाति बदल चुकी है। कॉलेज की प्रोफेसर नीतू त्रिपाठी ने साल 2006 में सरकार को शिकायत की। इस शिकायत में कहा गया कि नीलम पाल ने एक जन्म में तीन जातियों का इस्तेमाल कर न सिर्फ सरकारी नौकरी हासिल की बल्कि प्रमोशन भी ले लिया। सर्विस बुक में नीलम पाल की जाति धर्म में ईसाई लिखा हुआ है। तहसीलदार मुंगेली ने जाति सतनामी,धर्म इसाई और पिछड़ा वर्ग का जाति प्रमाण पत्र दिया हुआ है। नीलम पाल ने नर्सिंग कॉलेज रायपुर में प्रदर्शक के पद पर रहते हुए एमएससी में एडमिशन लिया। इस एडमिशन में उन्होंने अपनी जाति अनुसूचित जनजाति बताई।
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संचालक,चिकित्सा शिक्षा के साल 5 जनवरी 2007 के पत्र में यह जानकारी सामने आई है। छानबीन समिति ने जांच के दौरान जाति प्रमाणपत्र मांगा लेकिन उन्होंने सर्टिफिकेट नहीं दिया। इसके बाद भी 18 मार्च 2008 को नीलम पाल का प्रमोशन कर दिया गया। इसके बाद चिकित्सा शिक्षा ने 2013 में सात दिन में जाति प्रमाणपत्र देने का रिमाइंडर भेजा। विभाग के तत्कालीन अपर सचिव एसएल आदिले ने 8 जुलाई 2013 को संचालक चिकित्सा शिक्षा को पत्र लिखा जिसमें बताया गया कि नीलम पाल की जाति सतनामी है जो अनुसूचित जाति के अंतर्गत आती है,उसमें ये भी कहा गया कि वे अन्य पिछड़ा वर्ग से नहीं हैं। इन सब के बाद भी 15 जनवरी 2015 को उनको प्रमोशन देकर प्रदर्शक से सहायक प्राध्यापक बना दिया गया। इस प्रमोशन पर आपत्ति जताते हुए चिकित्सा शिक्षा की तत्कालीन संयुक्त सचिव डॉ प्रियंका शुक्ला ने सरकार को लिखा कि इस मामले में फिर से रिव्यू डीपीसी की जानी चाहिए। लेकिन ये पत्र भी फाइल में दबा दिया गया। 2006 से शिकायत के बाद भी न तो विभाग ने चार सौ बीसी का मामला माना और न ही अब तक कोई कार्रवाई की।
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वर्षा की जाति का भी जंजाल
ऐसा ही मामला वर्षा गुर्देकर का भी है। साल 2006 में नीतू त्रिपाठी की शिकायत पर गलत जातिगत आधार पर हुई पदोन्नति की जांच शुरु हुई। इस संबंध में संचालक चिकित्सा शिक्षा ने दिनांक 5 जनवरी 2013 को वर्षा गुर्देकर को स्मरण पत्र लिखा। उस पत्र में छानबीन समिति को 7 दिन में जाति प्रमाणपत्र पेश करने का समय दिया गया। संचालक चिकित्सा शिक्षा ने वर्षा गुर्देकर को 9 मई 2014 को अंतिम अवसर देते हुए 15 दिन के अंदर सक्षम अधिकारी द्वारा जारी जाति प्रमाण पत्र प्रस्तुत करने को कहा गया। पत्र में यह भी लिखा कि जाति प्रमाण पत्र मिथ्या एवं कपट पूर्ण है। साल 2006 से वर्षा को लगातार कई बार छानबीन समिति को जाति प्रमाण पेश करने को कहा गया। 15 साल बीत जाने के बाद भी जाति प्रमाण पत्र पेश नहीं किया गया। इसके बाद भी सरकार साल 2008 और साल 2016 में दो बार प्रमोशन कर चुका है। वर्षा गुर्देकर के साथ वीणा डेविड के खिलाफ भी जांच अभी चल ही रही है।
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दाल में कुछ काला है
पिछले 15 साल से चल रहे ये मामले देखकर ये सवाल पैदा होता है कि दाल में कुछ काला है। सवाल ये भी खड़ा होता है कि आखिर फर्जी जाति के आधार पर नौकरी पाए लोगों पर सरकार इतनी मेहरबान क्यों रही। क्या विभागीय अधिकारियों की इसमें मिली भगत है जिससे भ्रष्टाचार की आशंका पैदा होती है। बहरहाल सवाल कई हैं जिनके जवाब आना बाकी है।