आदिवासियों के फंड से हो रहा प्राधिकरणों का विकास, सवा सौ करोड़ खर्च लेकिन 80 फीसदी काम अधूरे

सरकार ने आदिवासियों के लिए बने तीन विकास प्राधिकरणों को एक साल में सवा सौ करोड़ रुपए दिए। आदिवासियों की बेहतरी के कुछ काम भी बताए गए। लेकिन इन कामों में अस्सी फीसदी काम पूरे ही नहीं हुए।

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Arun tiwari
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Raipur : आदिवासियों के राज्य में आदिवासियों के विकास के लिए सरकार ने प्राधिकरणों का गठन किया। लेकिन ये प्राधिकरण सफेद हाथी ही साबित हुए। मामला सामने आया जब आदिवासियों के विकास के लिए दिए गए फंड की पड़ताल हुई। सरकार ने आदिवासियों के लिए बने तीन विकास प्राधिकरणों को एक साल में सवा सौ करोड़ रुपए दिए। आदिवासियों की बेहतरी के कुछ काम भी बताए गए। लेकिन इन कामों में अस्सी फीसदी काम पूरे ही नहीं हुए। कुछ आधे अधूरे हैं तो कुछ शुरु ही नहीं हो पाए। तो सवाल उठता है कि आखिर ये फंड कहां गया। आदिवासियों के विकास के नाम पर हो रही बंदरबांट को रोकने के लिए सरकार ने प्राधिकरणों की कमान अपने हाथ में लेने का फैसला कर लिया है।

आदिवासियों के विकास के नाम पर बंदरबांट

सरकार ने अलग-अलग जातियों पर पूरा फोकस करने के लिए पांच प्राधिकरणों का गठन किया था। तीन प्राधिकरण आदिवासी विकास के लिए, एक अनुसूचित जाति और एक पिछड़ा वर्ग के कल्याण के लिए ये प्राधिकरण बनाए गए थे। पांच साल में ये प्राधिकरण न सिर्फ सफेद हाथी बने बल्कि इन जातियों के विकास के लिए आने वाले पैसे की बंदरबांट होती रही।

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अब हालत ये है कि किसी के कार्यालय में ताला डल गया है तो कोई एक कमरे में चल रहा है। हम बात कर रहे हैं आदिवासी विकास के बने तीन प्राधिकरणों में बस्तर,सरगुजा ओर मध्य क्षेत्र प्राधिकरण शामिल है। पिछले एक साल यानी साल 2023_24 में इन संस्थाओं को आदिवासियों की बेहतरी के काम करने के लिए सवा सौ करोड़ रुपए दिए गए लेकिन काम इक्का दुक्का ही हुए। द सूत्र ने जब इसकी पड़ताल की तो सच्चाई सामने आ गई। यह काम बिजली,पानी,सड़क और बुनियादी जरुरतों से जुड़े हुए थे।

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बस्तर आदिवासी विकास प्राधिकरण

नक्सल प्रभावित होने के कारण बस्तर हमेशा सरकारों के फोकस में रहा है। नक्सली समस्या के कारण सरकार के विकास का प्रकाश इन आदिवासियों तक बहुत कम मात्रा में पहुंच पाता है। यही कारण है कि यहां के लिए अलग से बस्तर आदिवासी विकास प्राधिकरण बनाया गया। लेकिन यह प्राधिकरण भी आदिवासियों के विकास के लिए कोई काम न आया। पिछले एक साल में सरकार ने इस प्राधिकरण को 50 करोड़ रुपए मंजूर किए। साथ ही 1554 कामों की सूची भी थमाई। द सूत्र ने जब इसकी पड़ताल की तो सच सामने आ गया। 50 करोड़ 93 लाख रुपए खर्च हो गए लेकिन महज 331 काम ही हो पाए। जबकि 1045 काम अधूरे हैं तो 178 काम शुरु ही नहीं हो पाए।

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सरगुजा आदिवासी विकास प्राधिकरण

इस प्राधिकरण का भी यही हाल है। सरगुजा क्षेत्र के लिए अलग से सरगुजा विकास प्राधिकरण बनाया गया। लेकिन यहां भी काम भगवान भरोसे ही चलता रहा। एक साल में इस प्राधिकरण को सरकार ने 35 करोड़ रुपए दिए और 704 विकास कामों का जिम्मा दिया गया। यहां की पड़ताल में सामने आया कि यहां पर 96 काम ही पूरे हुए हैं। जबकि 542 काम अधूरे और 66 काम शुरु ही नहीं हुए हैं। फंड पूरा खर्च हो गया है।

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मध्य क्षेत्र आदिवासी विकास प्राधिकरण

यह प्राधिकरण मध्य क्षेत्र के आदिवासियों के विकास के लिए बनाया गया था। इस प्राधिकरण को पिछले एक साल में 462 कामों के लिए 33 करोड़ रुपए मंजूर किए गए थे। यहां पर कुल जमा 33 विकास काम ही पूरे हो पाए। यहां पर 542 योजनाओं के तहत शुरु हुए काम आधे अधूरे पड़े हुए हैं। 66 योजनाओं पर तो काम शुरु ही नहीं हो पाया है।

सीएम अपने हाथ में लेंगे कमान

आदिवासी विकास प्राधिकरणों की इस हालत को देखकर सीएम ने बड़ा फैसला लिया है। अब सीएम ही इन प्राधिकरणों की कमान संभालने जा रहे हैं। भूपेश सरकार ने इस व्यवस्था को बदला था और विधायकों को प्राधिकरणों का अध्यक्ष बना दिया था। अब सीएम विष्णुदेव साय फिर से पुरानी व्यवस्था बहाल करने जा रहे हैं। पिछले पांच सालों में इन विकास प्राधिकरणों पर आठ सौ करोड़ से ज्यादा का फंड खर्च किया गया लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला। यहां तक कि कुछ प्राधिकरणों के ताले ही नहीं खुलते तो कुछ एक_एक कमरे में संचालित हो रहे हैं। आदिम जाति विकास मंत्री रामविचार नेताम कहते हैं कि किसी भी काम पर रोक नहीं लगाई गई है बल्कि वित्तीय अनुशासन के कारण इन कामों को वित्त विभाग की अनुमति के बाद फिर से शुरु किया जाएगा।