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Photograph: (the sootr)
RAIPUR.छत्तीसगढ़ की आपातकालीन पुलिस सेवा डायल 112 को लेकर लोगों को बड़ी समस्या है। कभी कॉल नहीं लगता तो कई बार समय पर वाहन नहीं मिल पाता है। ऐसे में लोगों को निजी एंबुलेेस का सहारा लेना पड़ता है। इस सेवा का संचालन छत्तीसगढ़ पुलिस विभाग को लोगों की समस्या से लेना देना नहीं।
इसीलिए जारी नए टेंडर प्रक्रिया पर में भी वहीं शर्ते दोहराई जा रहीं जिनसे समस्या है। ऐसे में टेंडर प्रक्रिया पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। इधर यह भी आरोप है कि इस बार आरएफपी यानी रिकवेस्ट फॉर प्रपोजल की पात्रता शर्तों में ऐसे बदलाव किए गए हैं, जिससे किसी विशेष कंपनी को अनुचित लाभ मिल सके।
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अनुभव मानक में बदलाव
पिछले टेंडर में बोलीदाताओं के लिए यह आवश्यक था कि कंपनी को कॉल सेंटर और एंबुलेंस संचालन का पिछले पांच वित्तीय वर्षों अनुभव हो। लेकिन वर्तमान आरएफपी में इस मानक को घटाकर केवल पिछले तीन वित्तीय वर्षों का अनुभव कर दिया गया है।
इस परिवर्तन से कई पुरानी और अनुभवी कंपनियां स्वतः ही पात्रता सूची से बाहर हो गई हैं, जबकि नई और कम अनुभवी कंपनियों के लिए रास्ता आसान हो गया है।
फ्लीट सेवा में भी ढिलाई, सुरक्षा पर खतरा
सबसे बड़ी चिंता डायल 112 की फ्लीट सेवा पात्रता शर्तों में की गई ढिलाई को लेकर है। नई आरएफपी में अब किसी भी सामान्य फ्लीट ऑपरेटर को भाग लेने की अनुमति दी गई है, जबकि यह सेवा आपातकालीन सेवा संचालन से जुड़ी हुई है।
विशेषज्ञों का कहना है कि इस तरह की सेवाओं के लिए केवल उन्हीं कंपनियों को अनुमति मिलनी चाहिए जिनके पास पुलिस वाहन संचालन या इमरजेंसी फ्लीट प्रबंधन का अनुभव हो।
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आईटी कार्य में भी पारदर्शिता पर सवाल
यह अनुबंध लगभग ₹117 करोड़ का है। विशेषज्ञों का कहना है कि यदि यह कार्य तकनीकी योग्यता के आधार पर खुली बोली प्रक्रिया से दिया गया होता, तो अधिक अनुभवी और प्रतिस्पर्धी कंपनियां भाग ले सकती थीं। वर्तमान में सी-डैक द्वारा संचालित सॉफ़्टवेयर में गंभीर तकनीकी खामियां पाई जा रही हैं।
कई कॉलें ठीक से कनेक्ट नहीं हो पा रही हैं, जिससे आपातकालीन प्रतिक्रिया सेवा की गुणवत्ता पर सीधा असर पड़ रहा है। चिंताजनक बात यह है कि विभाग ने इन तकनीकी समस्याओं का न तो पूर्व परीक्षण किया और न ही किसी स्वतंत्र एजेंसी से मूल्यांकन कराया।
विशेषज्ञों का कहना है कि टेंडर प्रक्रिया में डायल 112 में पारदर्शिता का पालन नहीं किया गया। पात्रता शर्तों में किए गए बदलाव, अनुभव मानदंडों की ढिलाई, नामांकन कार्य से संदेह बढ़ रहा है। अंदेशा जताया जा रहा है कि किसी विशेष कंपनी को लाभ देने के लिए हेरफेर किया गया है।
राज्य की सबसे अहम आपातकालीन सेवा के संचालन में इस तरह की गड़बड़ियाँ न केवल प्रशासनिक पारदर्शिता पर सवाल उठाती हैं, बल्कि जन सुरक्षा के लिए भी गंभीर खतरा उत्पन्न कर सकती हैं।
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