छत्तीसगढ़ का हेल्थ सिस्टम लकवे का शिकार, प्रदेश का डेथ रेट सबसे हाई, कहां खर्च हुए 14 हजार करोड़

केंद्र सरकार की सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम (एसआरएस) 2023 की रिपोर्ट ने छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले में स्वास्थ्य सेवाओं की गंभीर स्थिति को उजागर किया है। रिपोर्ट के अनुसार, बस्तर में देश में सबसे ज्यादा मौतें होती हैं और अधिकांश लोग बिना इलाज के मर जाते हैं।

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Arun Tiwari
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Photograph: (thesootr)

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रायपुर : केंद्र सरकार की सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम यानी एसआरएस की हाल ही में आई रिपोर्ट ने कई चौंकाने वाले खुलासे किए हैं। यह रिपोर्ट 2023 की है। यह रिपोर्ट सीधे सीधे सरकार की स्वास्थ्य सेवाओं पर सवाल खड़े करती है। यह सवाल किसी राजनीतिक दल की सरकार पर नहीं बल्कि पूरे सरकारी हेल्थ सिस्टम पर है।

 एसआरएस रिपोर्ट में खुलासा 

छत्तीसगढ़ के बस्तर में पूरे देश में सबसे ज्यादा मौतें होती हैं। रिपोर्ट बताती है कि आधे से ज्यादा लोग तो बिना इलाज के ही मर जाते हैं। आज भी छत्तीसगढ़ की 65 फीसदी आबादी अस्पताल तक नहीं पहुंच पाती है। ये लोग बैगा और गुनिया से ही इलाज कराते हैं। 

जिन सालों में इस रिपोर्ट को तैयार किया गया उस दौरान सरकार ने हेल्थ पर 14 हजार करोड़ रुपए खर्च किए। सवाल यही है कि फिर यह पैसा आखिर जा कहां रहा है। देखिए छत्तीसगढ़ की स्वास्थ्य सुविधाओं को आइना दिखाती ये रिपोर्ट   

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राष्ट्रीय औसत से ज्यादा छत्तीसगढ़ में मृत्युदर 

भारत सरकार की सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम (SRS) 2023 रिपोर्ट ने छत्तीसगढ़ की स्वास्थ्य स्थिति पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, देश के बड़े राज्यों में छत्तीसगढ़ की क्रूड डेथ रेट (CDR) सबसे ज्यादा रही। 

2023 में राज्य की मृत्यु दर 8.3 प्रति हजार आबादी दर्ज की गई, जो राष्ट्रीय औसत 6.4 से कहीं अधिक है। इससे भी बड़ी बात यह है कि दक्षिणी छत्तीसगढ़ यानी बस्तर संभाग के छह जिलों में डेथ रेट 9 से भी ज्यादा है। रिपोर्ट में यह भी सामने आया कि छत्तीसगढ़ शिशु मृत्यु दर (IMR) के मामले में भी सबसे ऊपर है। 

यहां प्रति 1000 जीवित जन्म पर 55 शिशुओं की मौत हुई, जबकि केरल जैसे राज्यों में यह दर मात्र 5 है। यह हालत उत्तरी छत्तीसगढ़ यानी सरगुजा संभाग की दर है। सरगुजा संभाग में वर्तमान मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय का गृह जिला जशपुर भी आता है। 

छत्तीसगढ़ की डेथ रेट में पिछले 10 सालों में 15 फीसदी का इजाफा हुआ है। यानी सीएम के साथ पूरी सरकार के लिए यह सबसे बड़ी चुनौती है। यह आंकड़े राज्य में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति और मातृ-शिशु देखभाल में कमी को उजागर करते हैं।

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आधी से ज्यादा मौतें बिना इलाज के 

सबसे चिंताजनक आंकड़े चिकित्सा सुविधा से जुड़े हैं। छत्तीसगढ़ में  61.9 फीसदी मौतें बिना किसी मेडिकल अटेंशन या केवल अप्रशिक्षित चिकित्सकों की देखरेख में हुईं। ग्रामीण इलाकों में यह स्थिति और खराब है, जहां यह आंकड़ा 64.7 फीसदी तक पहुंच जाता है। यानी यहां के लोग आज भी इलाज के लिए बैगा,गुनिया और झोला छाप डाक्टरों के भरोसे हैं। 

शहरी क्षेत्रों में भी करीब 47.9 फीसदी मौतें बिना अस्पताल या अयोग्य डॉक्टर के इलाज के कारण हो रही हैं। यानी स्वास्थ्य सेवाएं इनसे बहुत दूर हैं। इसके उलट, सरकारी अस्पतालों में केवल 20.4 फीसदी, निजी अस्पतालों में  10.7 फीसदी और योग्य डॉक्टर या प्रशिक्षित स्वास्थ्यकर्मी की देखरेख में सिर्फ 7 फीसदी मौतें हुईं। यह साफ दर्शाता है कि राज्य की बड़ी आबादी तक समय पर इलाज नहीं पहुंच पा रहा है। 

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छत्तीसगढ़ की स्वास्थ्य सेवाएं 

छत्तीसगढ़ में पुरुषों की मौत महिलाओं से ज्यादा होती है। पुरुषों की डेथ रेट 9.5 है जबकि महिलाओं की डेथ रेट 7.1 है। यदि हम इसे उम्र के हिसाब देखें तो 0 से 1 साल तक के बच्चे 10.0 फीसदी, 0 से 4 साल तक के बच्चे 10.9 फीसदी, 5 से 14 साल के बच्चे 2.4 फीसदी, 15 से 59 साल के लोग 34.6 फीसदी और 60 साल से ज्यादा उम्र के 52.1 फीसदी लोग मौत के मुंह में जाते हैं।  

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एक नजर में फैक्ट फिगर 

  • क्रूड डेथ रेट (CDR): 8.3 (राष्ट्रीय औसत 6.4)
  • शिशु मृत्यु दर (IMR): 55 (केरल 5)
  • मौतें बिना इलाज: 61.9 फीसदी
  • सरकारी अस्पताल में मौतें: 20.4 फीसदी
  • निजी अस्पताल में मौतें: 10.7 फीसदी
  • योग्य डॉक्टर की देखरेख में: 7 फीसदी

2 साल में 14 हजार करोड़ खर्च 

जिन सालों में यह रिपोर्ट तैयार की गई है,उन दो सालों में सरकार ने स्वास्थ्य सेवाओं पर 14 हजार करोड़ खर्च किए। विशेषज्ञ मानते हैं कि छत्तीसगढ़ में यह हालात कई वजहों से हैं। ग्रामीण और आदिवासी इलाकों में स्वास्थ्य ढांचा बेहद कमजोर है। 

प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में डॉक्टरों और दवाइयों की भारी कमी है। कई बार मरीजों को अस्पताल तक पहुंचने में घंटों लग जाते हैं। दूसरी ओर, निजी स्वास्थ्य सेवाएं महंगी होने के कारण गरीब परिवारों की पहुंच से बाहर हैं। सरकारी हेल्थ सिस्टम को लकवा मार गया है। सवाल यही है कि फिर ये 14 हजार करोड़ रुपए खर्च कहां हो रहे हैं।

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