छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट का अवैध खनन पर सख्त रुख, खनन सचिव से मांगा हलफनामा

छत्तीसगढ़ के सक्ती जिले में शासकीय भूमि पर अवैध पत्थर खनन के एक गंभीर मामले में हाईकोर्ट ने सख्त रुख अपनाया है। कोर्ट ने खनन विभाग के सचिव को व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल करने का आदेश दिया है।

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Krishna Kumar Sikander
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Chhattisgarh High Court takes a tough stand on illegal mining the sootr
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छत्तीसगढ़ के सक्ती जिले में शासकीय भूमि पर अवैध पत्थर खनन के मामले में हाईकोर्ट ने कड़ा रुख अपनाया है। कोर्ट ने खनन विभाग के सचिव को व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल करने का आदेश दिया है। यह मामला ग्राम नंदेली में खसरा नंबर 16/1 की 14.2 हेक्टेयर शासकीय भूमि पर राजेश्वर साहू और अन्य निजी व्यक्तियों द्वारा किए जा रहे अवैध गौण खनिज (पत्थर) उत्खनन से संबंधित है।

हाईकोर्ट की मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति विभु दत्त गुरु की खंडपीठ ने इस जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए खनन सचिव को जवाबदेही तय करने का निर्देश दिया। साथ ही, महाधिवक्ता की समय मांग को स्वीकार करते हुए अगली सुनवाई तक स्थिति स्पष्ट करने को कहा गया है।

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याचिका की पृष्ठभूमि

याचिकाकर्ता खोलबाहरा ने अधिवक्ता योगेश चंद्रा के माध्यम से संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत जनहित याचिका दायर की। याचिका में दावा किया गया कि नंदेली गांव, तहसील जैजैपुर, जिला सक्ती में शासकीय भूमि पर लंबे समय से अवैध पत्थर खनन हो रहा है। ग्रामीणों ने इसकी शिकायत तहसील और जिला प्रशासन से कई बार की, लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। इससे पहले याचिकाकर्ता ने एक रिट याचिका दायर की थी, जिसे हाईकोर्ट ने 30 जून 2025 को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि याचिकाकर्ता व्यक्तिगत रूप से प्रभावित नहीं है। हालांकि, कोर्ट ने उन्हें जनहित याचिका दायर करने की अनुमति दी थी, जिसके बाद यह याचिका दाखिल की गई।

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कोर्ट में उठा साक्ष्य मिटाने का मुद्दा

सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि नोटिस जारी होने के बाद से प्रतिवादी अवैध खनन स्थल को धीरे-धीरे पाटने की कोशिश कर रहे हैं, ताकि साक्ष्य मिटाए जा सकें। उन्होंने इस पर तत्काल रोक लगाने और सख्त कार्रवाई की मांग की। हाईकोर्ट ने मामले की गंभीरता को देखते हुए खनन विभाग के सचिव को अगली सुनवाई से पहले व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि अवैध खनन की स्थिति और प्रशासन की निष्क्रियता पर विस्तृत जवाब देना होगा।

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अवैध खनन का व्यापक प्रभाव

सक्ती जिले में शासकीय भूमि पर अवैध खनन का यह मामला पर्यावरण और सरकारी संपत्ति के दुरुपयोग का गंभीर उदाहरण है। अवैध उत्खनन से न केवल सरकारी राजस्व को नुकसान पहुंच रहा है, बल्कि पर्यावरणीय असंतुलन और स्थानीय समुदायों के लिए खतरे भी बढ़ रहे हैं। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि जिला प्रशासन की निष्क्रियता के कारण अवैध खनन करने वाले बेखौफ हो गए हैं, जिससे शासकीय भूमि का बड़े पैमाने पर दोहन हो रहा है। 

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हाईकोर्ट का सख्त रुख

हाईकोर्ट की खंडपीठ ने इस मामले को अत्यंत गंभीर माना है। खनन सचिव से व्यक्तिगत हलफनामा मांगना यह दर्शाता है कि कोर्ट प्रशासनिक जवाबदेही को लेकर सख्त है। कोर्ट ने यह भी संकेत दिया कि यदि अवैध खनन के साक्ष्य मिटाने की कोशिश साबित हुई, तो इसके लिए जिम्मेदार व्यक्तियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई हो सकती है। महाधिवक्ता को जवाब दाखिल करने के लिए समय दिया गया है, लेकिन कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इस मामले में देरी बर्दाश्त नहीं की जाएगी।

सामाजिक और पर्यावरणीय चिंताएं

यह मामला न केवल अवैध खनन, बल्कि प्रशासनिक निष्क्रियता और पर्यावरण संरक्षण के मुद्दों को भी उजागर करता है। स्थानीय ग्रामीणों ने बार-बार शिकायतें कीं, लेकिन कार्रवाई न होने से उनका प्रशासन पर भरोसा कम हुआ है। अवैध खनन से भूमि की उर्वरता, जल स्रोतों और पर्यावरण पर गंभीर प्रभाव पड़ रहा है। इस याचिका ने इन मुद्दों को फिर से सुर्खियों में ला दिया है। 

हलफनामे और महाधिवक्ता के जवाब पर टिकी नजरें

हाईकोर्ट की अगली सुनवाई में खनन सचिव के हलफनामे और महाधिवक्ता के जवाब पर सबकी नजरें टिकी हैं। यदि अवैध खनन और साक्ष्य मिटाने के आरोप सही पाए गए, तो यह मामला छत्तीसगढ़ में खनन माफिया के खिलाफ बड़ी कार्रवाई का आधार बन सकता है। साथ ही, यह जनहित याचिका शासकीय भूमि के संरक्षण और प्रशासनिक जवाबदेही को मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकती है।

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट का यह कड़ा रुख अवैध खनन के खिलाफ एक मजबूत संदेश देता है। खनन सचिव से व्यक्तिगत हलफनामा मांगना प्रशासन को जवाबदेह बनाने की दिशा में बड़ा कदम है। यह मामला न केवल सक्ती जिले, बल्कि पूरे राज्य में अवैध खनन पर लगाम लगाने और शासकीय संपत्ति की रक्षा के लिए एक मिसाल बन सकता है। 

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