छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने पलटा तलाक का फैसला, पति के झूठे आरोपों का खुलासा

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने बिलासपुर फैमिली कोर्ट के तलाक के फैसले को निरस्त कर दिया, जिसमें पति को पत्नी के खिलाफ क्रूरता और परित्याग के आधार पर तलाक मंजूर किया था। जस्टिस रजनी दुबे और जस्टिस अमितेंद्र किशोर प्रसाद की खंडपीठ ने पति के आरोपों को बेबुनियाद पाया।

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Krishna Kumar Sikander
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छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने बिलासपुर फैमिली कोर्ट के तलाक के एक फैसले को निरस्त कर दिया, जिसमें पति को पत्नी के खिलाफ क्रूरता और परित्याग के आधार पर तलाक मंजूर किया गया था। जस्टिस रजनी दुबे और जस्टिस अमितेंद्र किशोर प्रसाद की खंडपीठ ने पति के आरोपों को बेबुनियाद पाया और पत्नी के पक्ष में ठोस सबूतों के आधार पर फैमिली कोर्ट का निर्णय रद्द कर दिया।

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फैमिली कोर्ट में तलाक की मांग 

बिलासपुर के एक व्यक्ति और मुंगेली की एक महिला की जून 2015 में हुई शादी से जुड़ा मामला है। पति ने दावा किया था कि पत्नी उसके माता-पिता के साथ रहने को तैयार नहीं थी। झगड़े करती थी और उसकी भाभी के साथ अवैध संबंध का आरोप लगाती थी। उसने यह भी कहा कि मार्च 2018 में पत्नी मायके चली गई और वापस नहीं लौटी। इस आधार पर उसने फैमिली कोर्ट में तलाक की मांग की थी।

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पति पर दहेज की मांग का आरोप

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वहीं, पत्नी ने पति पर दहेज के लिए 3 लाख रुपये और कार की मांग करने का आरोप लगाया। मांग पूरी न होने पर उसे प्रताड़ित किया गया, जिसके चलते उसके कान की झिल्ली तक फट गई। पत्नी ने मेडिकल रिपोर्ट, पुलिस शिकायत और अपने भाई की गवाही जैसे सबूत पेश किए। हाईकोर्ट ने पाया कि पति अपने आरोपों को साबित करने में नाकाम रहा। उसके परिवार के सदस्यों ने गवाही नहीं दी, और पड़ोसी व सहकर्मी की गवाही से क्रूरता का कोई ठोस सबूत नहीं मिला। 

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पत्नी ने कोई क्रूरता नहीं की

कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि पत्नी ने कोई क्रूरता नहीं की, बल्कि वह स्वयं पति की प्रताड़ना का शिकार रही। इस आधार पर हाईकोर्ट ने 4 मार्च 2023 के फैमिली कोर्ट के आदेश को रद्द करते हुए पत्नी की अपील स्वीकार की और तलाक की डिक्री खारिज कर दी।

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