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छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने सहायक प्राध्यापक भर्ती में दृष्टिहीन और कम दृष्टि वाले अभ्यर्थियों के लिए आरक्षण की मांग को लेकर दायर एक याचिका को खारिज कर दिया है। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस बीडी गुरु की डिवीजन बेंच ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि राज्य सरकार या नियुक्ति प्राधिकारी को यह तय करने का पूर्ण अधिकार है कि किन पदों पर किस श्रेणी के दिव्यांग उम्मीदवारों के लिए आरक्षण दिया जाए। कोर्ट ने कहा कि नियोक्ता ही यह बेहतर ढंग से तय कर सकता है कि किसी पद की प्रकृति के लिए कौन सी दिव्यांग श्रेणी उपयुक्त है। साथ ही, चयन प्रक्रिया पूरी होने और असफल होने के बाद कोई अभ्यर्थी आरक्षण या रोस्टर को चुनौती नहीं दे सकता।
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याचिका में दृष्टिहीन उम्मीदवारों के लिए आरक्षण की मांग
मामला छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग (PSC) द्वारा 2019 में सहायक प्राध्यापक के 1384 पदों के लिए शुरू की गई भर्ती प्रक्रिया से जुड़ा है। इनमें वाणिज्य विषय के 184 पद शामिल थे। रायगढ़ निवासी सरोज क्षेमनिधि ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दृष्टिहीन और अल्प दृष्टि वाले अभ्यर्थियों के लिए 2% आरक्षण की मांग की थी।
याचिकाकर्ता ने बताया कि उन्होंने 14 मार्च 2019 को ऑनलाइन आवेदन जमा किया और नवंबर 2020 में लिखित परीक्षा पास की। इसके बाद साक्षात्कार में भी हिस्सा लिया, लेकिन अंतिम चयन सूची में उनका नाम शामिल नहीं हुआ। याचिका में दावा किया गया कि PSC ने वाणिज्य विषय में दृष्टिहीन और अल्प दृष्टि वाले उम्मीदवारों के लिए आरक्षण का प्रावधान नहीं किया।
यह दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 का उल्लंघन है। याचिकाकर्ता ने मांग की थी कि वाणिज्य के बैकलॉग पदों पर दृष्टिहीन और अल्प दृष्टि श्रेणी के लिए आरक्षण लागू कर शुद्धिपत्र जारी किया जाए और इन पदों को भरने की प्रक्रिया पर रोक लगाई जाए।
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वकील ने छोड़ा साथ, याचिकाकर्ता ने खुद की पैरवी
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील ने केस से अपना नाम वापस ले लिया, जिसके बाद सरोज क्षेमनिधि ने खुद अपनी पैरवी की। उन्होंने तर्क दिया कि 1384 पदों में से 2% आरक्षण दृष्टिहीन और अल्प दृष्टि वाले उम्मीदवारों के लिए सुनिश्चित किया जाना चाहिए था। उन्होंने PSC के 23 फरवरी 2019 के संशोधन आदेश को भी चुनौती दी, जिसमें शारीरिक रूप से अक्षम उम्मीदवारों के लिए पदों की संख्या में बदलाव किया गया था।
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कार्य की प्रकृति के आधार पर आरक्षण
राज्य सरकार और PSC की ओर से कोर्ट में तर्क दिया गया कि वाणिज्य और विज्ञान संकाय में कार्य की प्रकृति को देखते हुए दृष्टिहीन और अल्प दृष्टि वाले उम्मीदवारों के लिए आरक्षण देना संभव नहीं है। उन्होंने बताया कि कला संकाय में दृष्टिबाधित उम्मीदवारों के लिए आरक्षण का प्रावधान पहले से मौजूद है, जबकि वाणिज्य विषय में एक हाथ और एक पैर की अक्षमता वाले दिव्यांगों के लिए आरक्षण लागू किया गया है। सरकार ने यह भी कहा कि नियुक्ति प्राधिकारी को यह तय करने का अधिकार है कि कौन सी दिव्यांग श्रेणी किसी खास पद के लिए उपयुक्त है।
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सरकार को नीति निर्धारण का अधिकार
हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि आरक्षण नीति और पदों के लिए उपयुक्तता तय करना राज्य सरकार और नियुक्ति प्राधिकारी का विशेषाधिकार है। कोर्ट ने यह भी कहा कि चयन प्रक्रिया पूरी होने के बाद रोस्टर या आरक्षण को चुनौती देना उचित नहीं है। इस आधार पर याचिका को खारिज कर दिया गया।
फैसले का प्रभाव
इस फैसले से यह स्पष्ट हो गया है कि छत्तीसगढ़ में दिव्यांग आरक्षण के संबंध में नीति निर्धारण का अधिकार राज्य सरकार के पास रहेगा। यह निर्णय भविष्य में अन्य भर्ती प्रक्रियाओं में भी दिशानिर्देशक हो सकता है। हालांकि, यह फैसला उन दृष्टिहीन और अल्प दृष्टि वाले उम्मीदवारों के लिए निराशाजनक हो सकता है, जो वाणिज्य जैसे विषयों में आरक्षण की उम्मीद कर रहे थे।
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