छत्तीसगढ़ में दवा खिलाने के बाद हो रही जांच, चहेतों को लाभ पहुंचाने का हो रहा खेल

छत्तीसगढ़ में दवा कंपनियों को लाभ देने के चलते लोगों की जान की परवाह नहीं की जा रही। पिछले 2 वर्षों में 40 से ज्यादा दवाइयां घटिया पाए जाने के बाद अस्पतालों से वापस मंगवानी पड़ीं।

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VINAY VERMA
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Photograph: (thesootr)

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RAIPUR.छत्तीसगढ़ में चहेती दवा कंपनियों को लाभ देने लोगों के जान की भी परवाह नहीं की जा रही। इसी वजह से पिछले 2 सालों में ही 40 से ज्यादा दवाईयां अस्पतालों से वापस मंगवानी पड़ी। यह तब हुआ जब फेल-अमानक या यूं कहें कि घटिया दवाईयां लाखों लोगों को खिलाई जा चुकी थीं और कंपनियों की घटिया दवा खप चुकी थी।

यह सब इस कारण से हो रहा क्योंकि न तो सरकार की तरफ से दवाओं की जांच हो रही और न ही सीजीएमएससी यानि छग मेडिकल सर्विसेस कॉरपोरेशन के एक्सपर्ट दवा कंपनियां का निरीक्षण करने ही जा रहे। ऐसे में केवल एक सर्टिफिकेट के भरोसे ही लोगों को दवाईयां खिला दी जा रहीं हैं।

71 सैंपल हुए फेल, फिर भी अभयदान

सीजीएमएससी इन दिनों कुछ कंपनियों पर सबसे अधिक मेहरबान है। इन्हें टेंडर देने के लिए सप्लाई के नियमों में भी बदलाव किया गया है। पिछली सरकार में 9 एम कंपनी अस्तित्व में आई तब से 70 प्रतिशत से ज्यादा दवा सप्लाई यही कंपनी कर रही।

हद तो यह है कि 2020 के बाद से इस कंपनी की 70 दवा और 1 आईड्रॉप को लेकर 71 बैच की गुणवत्ता विभागीय जांच में फेल हो गई है। इसके बाद भी सरकारी अस्पतालों में इसी कंपनी से 10 दवाएं ली जा रही हैं। जबकि 3 सैंपल फेल होने के बाद दवा कंपनी को ब्लैक लिस्टेड करने का प्रावधान है।

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दवा कंपनी में जाते नहीं विशेषज्ञ

सीजीएमएससी की स्थापना के दौरान यह नियम बनाया गया था कि सप्लाई से पहले कॉरपोरेशन के विशेषज्ञ कंपनियों के प्लांट का निरीक्षण करेंगे और मशीन, रॉ मैटेरियल की गुणवत्ता जांचेंगे। लेकिन साल 2018 से इस नियम में परिवर्तन कर दिया गया।

अब कॉरपोरेशन के विशेषज्ञ दवा कंपनियों का निरीक्षण करने नहीं जाते। कंपनी की तरफ से एक क्वालिटी सर्टिफिकेट के भरोसे दवा सप्लाई हो जाती है। इसके बाद जब दवा में गड़बड़ी की शिकायत आती है तो इसकी जांच करवाई जाती है। 

ये दवाईयां निकली हैं अमानक

पैरासिटामोल टेबलेट- 19 लाख से अधिक टैबलेट सप्लाई लेकिन जब तक अमानक निकली आधी हो चुकी थी खपत...दवा बुखार में बेअसर थी।

सर्जिकल ब्लेड- अस्पतालों सप्लाई के बाद इसमें जंग लगे होने की शिकायत मिली। इस्तेमाल से इंफेक्शन हो सकता था, मरीज की जान जा सकती थी।

फिनाइटोइन इंजेक्शन- मिर्गी व ब्रेन के झटके को रोकने वाला फिनाइटोइन इंजेक्शन भी घटिया निकला। मरीज ब्रेन डेड हो सकता था।

हिपेरिन इंजेक्शन- खून पतला करने वाले हैपरिन इंजेक्शन की क्वालिटी निम्न स्तर की मिली। यह स्थिति मरीज के लिए जानलेवा है। 

प्रोटामिन इंजेक्शन- खून सामान्य या गाढ़ा करने वाले प्रोटामिन इंजेक्शन को शिकायत के बाद बैन किया गया। मरीज को लकवा या ब्रेन डेड हो सकता है।

इंट्रावीनस ड्रिप सेट- ग्लूकोज स्लाइन चढ़ाने वाली घटिया ड्रिप की बैच सप्लाई की गई। इंफेक्शन से मरीज की जान जा सकती थी।

प्रेगनेंसी किट- प्रेगनेंसी डायग्नोस्टिक किट भी बेअसर थी। जिससे गर्भावस्था की रिपोर्ट ही नहीं आ रही थी। अगर ऐसे में गर्भवती महिला कोई दवा खा ले तो गर्भ गिर सकता था।

ट्रेमाडॉल- ट्रामाडॉल, लिनिन जोनाड्रिल सिरप व नार्मल डेक्सट्रोज स्लाइन के उपयोग से साइड इफेक्ट की शिकायत मिली। मरीज के लिए घातक है।

सर्जिकल ग्लब्स- सर्जिकल ग्लब्स के घटिया होने की शिकायत कोरोना काल से ही डॉक्टर कर रहे थे लेकिन उनकी शिकायत पर न तो स्वास्थ्य विभाग ध्यान दे रहा और न ही सीजीएमएससी.....ऐसे में मरीज को डॉक्टर और डॉक्टर से मरीज को इंफेक्शन ट्रांसफर हो सकता था। एड्स सहित कुछ गंभीर बीमारी में रोग ट्रांसफर होने का खतरा है।

सेफ्ट्राइएक्सोन पाउडर- बैक्टीरियल इंफेक्शन से बचाता है, खासकर ऑपरेशन के दौरान इसका उपयोग होता है। घटिया पाउडर मरीज को नया इंफेक्शन दे सकता है।

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सारा दोष स्टोरेज पर

हमने इस संबंध में सीजीएमएससी के अधिकारियों से बात की तो बताया कि दवा सप्लाई में दोष अस्पतालों के रखरखाव का है। वहां अगर नियमानुसार स्टोरेज किया जाए तो दवाओं की गुणवत्ता प्रभावित नहीं होगी। हालांकि लंबे सवाल जवाब के बाद कॉरपोरेशन के अधिकारी ने स्वीकार किया कि दवाओं के क्वालिटी जांचने के मानक में कमी है और इसे सुधारने की जरूरत है।

दवा बेअसर तो मरीज कैसे सही होगा?

विशेषज्ञ डॉक्टर डॉ. राकेश गुप्ता का कहना है कि दवाएं बेअसर हैं। डॉक्टर चाहे कितना भी अच्छा इलाज करें, लेकिन अगर दवा बेअसर या संक्रमित होगी तो मरीज कैसे ठीक होगा? इसका दोष डॉक्टरों को दिया जाएगा। सरकार को इस मुद्दे में सुधार की जरूरत है।

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सस्ती दवाओं के चक्कर में बुरा हाल

फार्मासिस्ट और दवा व्यवसायी विनय कृपलानी का कहना है कि CGMSC सस्ती दवाएं खोजती है, लेकिन क्वालिटी से कोई मतलब नहीं है। उनका कहना है कि सब-स्टैंडर्ड दवाओं का मुख्य कारण यही है। सेवा और शर्तें ऐसी बनाई जाती हैं कि बड़ी कंपनियां टेंडर में हिस्सा नहीं लेतीं। ऐसे में दवा सप्लाई उन कंपनियों से होती है, जिनका कोई पता नहीं होता। इसमें सुधार की जरूरत है।

सख्त कदम उठा रहे

CGMSC के एमडी रितेश अग्रवाल ने कहा कि कुछ दवाइयों के बैच में गड़बड़ी की शिकायत मिली है। हम इस पर काम कर रहे हैं और फिलहाल दवाओं को वापस मंगवा लिया गया है। भविष्य में ऐसा न हो, इसके लिए सख्ती से काम किया जा रहा है।

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