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रायपुर : बीजेपी सरकार ने छत्तीसगढ़ में धर्मांतरण पर बड़ी चोट की। लेकिन ये चोट धर्मांतरण पर कम और केरल के ईसाई वोट पर ज्यादा हो गई। नन की गिरफ्तारी बड़ा सियासी मुद्दा बन गया। बात 18 परसेंट ईसाई वोट की थी, इसलिए केरल बीजेपी की छत्तीसगढ़ बीजेपी से ठन गई।
अपनी राजनीतिक ज़मीन मजबूत करने के लिए बीजेपी ईसाईओं से प्यार कर रही है लेकिन उन पर ही छत्तीसगढ़ में वार कर रही है। नन की गिरफ्तारी से केरल चुनाव से पहले चल रहीं बीजेपी कोशिशों पर पानी फिरता नजर आ रहा है। बीजेपी अब नए सिरे से टाट में पैबंद लगाने की कवायद कर रही है।
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ये नन नहीं वोट बैंक हैं
छत्तीसगढ़ में 25 जुलाई को केरल की नन और आदिवासी व्यक्ति की गिरफ्तारी, और उसके बाद नन की रिहाई की घटना ने बीजेपी के लिए नई मुश्किल खड़ी कर दी है। छत्तीसगढ़ बीजेपी कार्यकर्ताओं की शिकायत के बाद पुलिस ने उन्हें हिरासत में लिया और फिर न्यायालय से जमानत पर रिहा कर दिया गया। इस घटना से हिंदू संगठनों में नाराजगी दिख रही है।
इनका कहना है कि नन के खिलाफ कई राज्यों में गांव-गांव में ईसाई मिशनरियों की तैनाती का मुद्दा उठाया जाएगा। हिंदू संगठनों का आरोप है कि मिशनरी आदिवासियों को धर्मांतरण के लिए लालच और धोखे से फंसा रही हैं। नन की गिरफ्तारी और रिहाई का असर बीजेपी के ईसाई वोट बैंक साधने की कोशिशों पर भी पड़ सकता है।
खासकर केरल और दक्षिणी राज्यों में बीजेपी ईसाई समुदाय को अपने पक्ष में लाने के प्रयास कर रही है। बीजेपी का मिशन दक्षिण विस्तार अभी शुरुआती चरण में है, और केरल में ईसाई समुदाय को साधना इसकी रणनीति का अहम हिस्सा है। ऐसे में छत्तीसगढ़ में नन की गिरफ्तारी और रिहाई की घटना से पार्टी के दक्षिणी मिशन को झटका लग सकता है।
हिंदू संगठनों का दबाव और दक्षिण में नाराजगी, दोनों मिलकर बीजेपी के लिए राजनीतिक संतुलन साधने की चुनौती बन गए हैं।
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केरल और छत्तीसगढ़ बीजेपी में अनबन
केरल का रजनीतिक समीकरण समझिए। बीजेपी यहां पर अपनी खास उपस्थिति दर्ज कराने के लिए हाथ पैर मार रही है। साल 2026 में केरल में विधानसभा चुनाव होने हैं और उसके पहले निकाय चुनाव की आमद है। दक्षिणी राज्यों में केरल क्रेक करना बीजेपी के लिए सबसे कठिन टास्क है।
केरल में 20 लोकसभा सीटें हैं और 140 विधानसभा सीट हैं। विधानसभा में बीजेपी का एक भी सदस्य नहीं है जबकि लोकसभा में एक बीजेपी सांसद हैं। केरल में जीतने के लिए इसाइयों का बड़ा रोल माना जाता है। केरल में हिंदुओं की आबादी 54.7 फीसदी है। 26.6 फीसदी मुस्लिम और 18.4 फीसदी ईसाई आबादी है।
मुस्लिमों से बीजेपी की दूरी चली आ रही है इसीलिए बीजेपी हिंदुओं और ईसाइयों के सहारे केरल में अपनी दमदार आमद चाहती है। पिछले कुछ महीनों से 18 फीसदी ईसाइयों पर फोकस कर बीजेपी उन्हें अपने पाले में लाने रणनीति पर काम कर रही है। लेकिन धर्मांतरण के नाम पर छत्तीसगढ़ में हुए नन कांड ने बीजेपी को मुश्किल में डाल दिया है।
केरल बीजेपी ने अपने नेताओं को छत्तीसगढ़ भेजकर बता बनाने की कोशिश की लेकिन सीएम विष्णुदेव साय ने साफ कह दिया कि कानून अपना काम कर रहा है। यह छत्तीसगढ़ की बेटियों की सुरक्षा का सवाल है। यहीं से दोनों राज्यों की बीजेपी में अनबन हो गई। केरल बीजेपी इस बात को लेकर केंद्रीय नेतृत्व तक गई। छत्तीसगढ़ के नेता अपने रुख पर अडिग हैं।
कांग्रेस ने बनाया मुद्दा
कांग्रेस ने इसे बड़ा मुद्दा बनाया। इस मामले में राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी तक ने प्रतिक्रिया जाहिर की। कांग्रेस इसे अल्पसंख्यकों और धर्म विशेष के खिलाफ कार्यवाही बता रही है। कांग्रेस नेता कहते हैं कि बजरंग दल के लोग धर्मांतरण के नाम पर गुंडागर्दी कर रहे हैं। बीजेपी सराकर का उनको पूरा संरक्षण है।
कैसे होगा केरल क्रेक
भारत का दक्षिणी राज्य केरल अपनी खूबसूरती और सियासत दोनों की वजह से चर्चा में रहता है। इस राज्य के अपने मुद्दे हैं, अपनी भाषा है और अपने कुछ समीकरण हैं। बड़ी बात ये है कि जिस तरह की राजनीति उत्तर भारत में देखने को मिलती है, केरल में वैसा कुछ नहीं होता है।
यहां पर मंदिरों के नाम पर वोट नहीं डलते हैं, यहां पर सिर्फ जाति आधारित राजनीति नहीं होती है, बल्कि स्थानीय मुद्दे और चेहरे भी खेल बनाते-बिगाड़ते दिख जाते हैं। इसी वजह से केरल में बीजेपी की दस्तक इतने सालों बाद भी नहीं हो पाई है। लेकिन अब बीजेपी हिंदू ईसाई गठजोड़ के सहारे अपनी निर्णायक भूमिका के सपने देख रही है।
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