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छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले में दो कैथोलिक ननों की गिरफ्तारी का मामला अब सियासी रंग ले चुका है। मानव तस्करी और जबरन धर्मांतरण जैसे गंभीर आरोपों में गिरफ्तार सिस्टर वंदना और सिस्टर प्रीति की गिरफ्तारी ने न केवल छत्तीसगढ़, बल्कि केरल और दिल्ली तक हलचल मचा दी है। केरल के मुख्यमंत्री से लेकर विपक्षी दलों के बड़े नेता इस मामले में कूद पड़े हैं, और इसे 2025 में होने वाले केरल विधानसभा चुनावों से जोड़कर देखा जा रहा है। सवाल यह है कि क्या यह मामला वाकई अल्पसंख्यकों के खिलाफ अत्याचार का है, या फिर इसके पीछे सियासी स्वार्थ और वोटबैंक की राजनीति छिपी है?
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दुर्ग में ननों की गिरफ्तारी का क्या है पूरा मामला?
25 जुलाई 2025 को दुर्ग रेलवे स्टेशन पर रेलवे पुलिस ने केरल की दो ननों, सिस्टर वंदना और सिस्टर प्रीति, को गिरफ्तार किया। दोनों ग्रीन गार्डन्स धार्मिक समुदाय से जुड़ी हैं और उनके साथ नारायणपुर की तीन युवतियों को आगरा ले जाया जा रहा था। आरोप है कि इन युवतियों को नर्सिंग प्रशिक्षण और नौकरी का प्रलोभन देकर मानव तस्करी और धर्मांतरण के लिए ले जाया जा रहा था।
सिरो-मालाबार चर्च ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि नन तीन वयस्क महिलाओं को आगरा के फातिमा अस्पताल ले जा रही थीं, जहां उन्हें नौकरी शुरू करनी थी। चर्च का दावा है कि सभी दस्तावेज मौजूद थे, फिर भी बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने स्टेशन पर हंगामा कर ननों को टारगेट किया।
इस घटना के बाद छत्तीसगढ़ की बीजेपी सरकार और मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने साफ कहा कि यह मामला मानव तस्करी और संभावित धर्मांतरण से जुड़ा है, और कानून अपना काम करेगा। साय ने इसे बस्तर की बेटियों की सुरक्षा से जोड़ते हुए कहा कि छत्तीसगढ़ में डेमोग्राफी बदलने की साजिश को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
केरल से दिल्ली तक सियासी हंगामा
ननों की गिरफ्तारी के बाद केरल की सियासत में भूचाल आ गया। केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर इस मामले में हस्तक्षेप की मांग की। इंडिया गठबंधन के चार सांसद कांग्रेस से सप्तगिरि उल्का और बेनी बेहनन, लेफ्ट से फ्रांसिस जॉर्ज, और रिवॉल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी (RSP) से प्रेमचंदन दिल्ली से रायपुर पहुंचे। उन्होंने दुर्ग जेल में ननों से मुलाकात की और फिर नवा रायपुर में मुख्यमंत्री साय से बात की।
कांग्रेस के दिग्गज नेताओं, जैसे राहुल गांधी, प्रियंका गांधी, और केसी वेणुगोपाल ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर इस गिरफ्तारी को अल्पसंख्यकों पर हमला बताते हुए बीजेपी की आलोचना की। केरल में विपक्षी गठबंधन UDF और लेफ्ट सांसदों ने संसद के बाहर प्रदर्शन किया, और इसे बीजेपी शासित राज्यों में अल्पसंख्यकों के खिलाफ नफरत का उदाहरण बताया। केरल सीपीआई(एम) नेता बृंदा करात ने भी जेल प्रशासन और बीजेपी सरकार पर निशाना साधा।
दूसरी ओर, छत्तीसगढ़ कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज ने निष्पक्ष जांच की मांग की और आरोप लगाया कि बजरंग दल, बीजेपी, और RSS के दबाव में ननों को गलत तरीके से फंसाया गया। जवाब में केरल बीजेपी महासचिव अनूप एंटनी ने मुख्यमंत्री साय और गृहमंत्री विजय शर्मा से मुलाकात कर ननों को समर्थन देने का आश्वासन दिया।
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केरल के सियासी कनेक्शन और 2025 चुनाव का दांव?
जानकारों का मानना है कि इस मामले को 2025 में होने वाले केरल विधानसभा चुनावों से जोड़कर देखा जा रहा है। 2024 के लोकसभा चुनाव में केरल में बीजेपी ने पहली बार त्रिशूर सीट पर जीत हासिल की, और उसका वोट शेयर बढ़कर 16.68% हो गया। कांग्रेस के नेतृत्व वाले UDF गठबंधन ने 14 सीटें जीतीं, जबकि लेफ्ट के LDF को केवल एक सीट मिली। बीजेपी की इस बढ़त ने केरल में विपक्षी दलों को अल्पसंख्यक, खासकर ईसाई समुदाय, को अपने पक्ष में करने की रणनीति पर काम करने के लिए मजबूर कर दिया है।
ननों की गिरफ्तारी को विपक्षी दल बीजेपी शासित राज्यों में अल्पसंख्यकों पर अत्याचार के रूप में पेश कर रहे हैं। केरल में ईसाई समुदाय की बड़ी आबादी (लगभग 18%) को देखते हुए, यह मुद्दा विपक्ष के लिए सियासी हथियार बन गया है। विशेषज्ञों का कहना है कि UDF और LDF इस मामले को भुनाकर ईसाई वोटरों को यह संदेश देना चाहते हैं कि बीजेपी शासित राज्यों में अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया जा रहा है।
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कानूनी प्रक्रिया पर सियासत का साया
छत्तीसगढ़ सरकार ने इस मामले को गंभीर बताते हुए कहा कि जांच पूरी होने तक कोई टिप्पणी करना जल्दबाजी होगी। मुख्यमंत्री साय ने इसे बस्तर की बेटियों की सुरक्षा से जोड़ा और कहा कि कानून अपना काम करेगा। हालांकि, विपक्ष की ओर से लगातार हो रहे प्रदर्शन और नेताओं के छत्तीसगढ़ दौरे ने जांच प्रक्रिया पर सवाल उठाए हैं। क्या कानूनी और न्यायिक प्रक्रिया को सियासी रंग देना उचित है? यह सवाल छत्तीसगढ़ और केरल दोनों की सियासत में गूंज रहा है।
बीजेपी को घेरने की कोशिश में विपक्ष
दुर्ग में दो ननों की गिरफ्तारी का मामला अब केवल मानव तस्करी और धर्मांतरण के आरोपों तक सीमित नहीं रह गया है। यह केरल की सियासत का हिस्सा बन चुका है, जहां 2025 के विधानसभा चुनावों से पहले विपक्ष बीजेपी को घेरने की कोशिश में है। एक तरफ छत्तीसगढ़ सरकार इसे कानून-व्यवस्था और सुरक्षा का मुद्दा बता रही है, वहीं विपक्ष इसे अल्पसंख्यकों के खिलाफ अत्याचार का हथियार बना रहा है। इस सियासी खींचतान में सच्चाई क्या है, यह जांच पूरी होने पर ही सामने आएगा। लेकिन तब तक, यह मामला छत्तीसगढ़ से केरल तक सियासी तूफान का केंद्र बना रहेगा।
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