छत्तीसगढ़ में चल रहा प्रभारी का खेल, मलाईदार पदों पर चहेतों को पहुंचाने नियमों की अनदेखी

छत्तीसगढ़ में इन दिनों प्रभारी बनाने का खेल फिर शुरू हो गया है। ऐसा कर, सरकार योग्यता रखने वालों को दरकिनार कर उनसे कम अनुभव वाले लोगों को जिला या संभाग की कमान दे दे रहे हैं।

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VINAY VERMA
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Chhattisgarh mantralay rules ignored to get favourites to lucrative posts the sootr
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छत्तीसगढ़ में इन दिनों प्रभारी बनाने का खेल फिर शुरू हो गया है। ऐसा कर, सरकार योग्यता रखने वालों को दरकिनार कर उनसे कम अनुभव वाले लोगों को जिला या संभाग की कमान दे दे रहे हैं। ऐसा केवल एक विभाग में नहीं, बल्कि लगभग सभी सरकारी महकमो में हो रहा है। हालांकि, लोक निर्माण विभाग यानी पीडब्ल्यूडी और स्वास्थ्य विभाग में सबसे अधिक देखने को मिल रहा है जिसका खामियाजा आम जनता को भुगतना पड़ता है।

इतना ही नहीं प्रभारी बनने के खेल में भी जिम्मेदार अधिकारी अपने चहेतों को मौका देने से पीछे नहीं हटते। ताजा मामला पीडब्ल्यूडी विभाग से जुड़ा हुआ है जहां सब इंजीनियर से 21 लोगों को एसडीओ बनाया गया है।जिसमें अधिकारियों ने सीनियारिटी लिस्ट को भी दरकिनार रख दिया है। लोक निर्माण विभाग के सचिव डॉ कमलप्रीत सिंह का कहना है कि पोस्ट खाली होने के कारण से प्रभार दे दिया गया है। जल्द डिपार्टमेंटल प्रोमोशन कमिटी की बैठक करवाकर इनके अलावा शेष लोगों को भी प्रमोट कर देंगे।

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अधिकारियों की मनमानी

अधिकारियों के मनमानी का आलम यह है कि एग्जीक्यूटिव इंजीनियर भी पोस्टिंग का आर्डर जारी कर दे रहे हैं।पीडब्ल्यूडी के सेतु निर्माण शाखा संभाग रायपुर में जब 5 महीने से खाली पोस्ट को नहीं भरा जा रहा था तो एग्जीक्यूटिव इंजीनियर डीके माहेश्वरी ने अपने चहेते उप अभियंता साबिर खान को अनुभागीय अधिकारी यानी एसडीओ बनाने का आदेश जारी कर दिया। मामले में पीडब्ल्यूडी सचिव का कहना है कि वह मामले की जांच करवा दोषियों पर कार्रवाई करेंगे।

जनता का हो रहा नुकसान

द सूत्र के पड़ताल में यह सामने आया कि जिन पदों पर प्रभारी बनाने का खेल चल रहा है उसे पद पर काम से कम सालाना 50 से 200 करोड़ तक का का कार्य आदेश जारी होता है जब मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार ही छत्तीसगढ़ में लोक निर्माण विभाग द्वारा चल रहे 50% से अधिक कार्य गुणवत्ता विहीन है मीडिया मैं खबरों के आने के बाद विभागीय मंत्री अरुण साव ने कई बार खुद निरीक्षण कर अधिकारियों को फटकार लगाई है।

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स्वास्थ्य विभाग में भी यही खेल

पीडब्ल्यूडी के अलावा जनता से जुड़ा हुआ स्वास्थ्य विभाग भी है इस विभाग में मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी का एक पद होता है। जो स्वास्थ्य को लेकर जिले का मुखिया होता है। इस पद को लेकर भी राज्य गठन के बाद से ही सरकारें मनमानी करती आ रही हैं। सभी 36 जिलों में आज तक केवल प्रभारी सीएमएचओ ही पदस्थ होते आ रहे हैं। कई बार तो प्रभार रहने के लिए ही स्वास्थ्य अधिकारी एक दूसरे से भिड़ जाते हैं। कई सीएमएचओ के ऊपर आर्थिक गड़बड़ी की भी जांच चल रही है।

सामान्य प्रशासन की चेतावनी भी दरकिनार

विभागों में चल रही इस तरह की गड़बड़ी को देखते हुए छत्तीसगढ़ के सामान्य प्रशासन विभाग ने नियमित पदों पर चालू कार्यभार सौंपे जाने के संबंध में 2011 में दिशा निर्देश जारी किया था। जिसमें तत्कालीन सामान्य प्रशासन की सचिव निधि छिब्बर ने कहा था कि विभिन्न विभागों द्वारा पदोन्नति या सीधी भर्ती के पदों पर वरिष्ठतम या योग्य व्यक्तियों को चालू कार्यभार सौंपने की पद्धति ना अपनाकर संवर्ग के कनिष्ठ अधिकारियों को प्रभाव दे दिया जा रहा है।

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 यह स्थिति निर्माण विभागों में अधिक है।जहां कनिष्ठ अधिकारी, वरिष्ठ पदों पर लंबे समय से प्रभारी बन जमे हुए हैं। इसी वजह से कुछ विभागों में चार साल तक भी विभागीय पदोन्नति समिति की बैठक नहीं की जा रही है। और ना ही सीधी भर्ती के प्रयास की जा रहे हैं। निधी छिब्बर ने यह भी कहा था कि जिन विभागों में इस तरह के कनिष्ठ अधिकारी, वरिष्ठ पदों के प्रभार में है उन्हें प्रशासकीय विभाग या विभाग अध्यक्ष तत्काल प्रभाव से मुक्त करें।और वरिष्ठ और योग्य अधिकारियों को ही प्रभार दें। आदेश के बाद कुछ समय तक इस पर रोक लगी। लेकिन चाहेतों को लाभ देने के लिए अधिकारियों ने फिर से मनमानी शुरू कर दी।

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