यौन अपराधों में नरमी बरतना गलत... हाईकोर्ट ने खारिज की गैंगरेप के आरोपियों की याचिका

छत्तीसगढ़ के बहुचर्चित कोंडागांव नाबालिग गैंगरेप मामले में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने कड़ी टिप्पणी करते हुए निचली अदालत के फैसले को सही ठहराया है। अदालत ने स्पष्ट किया कि कानून के तहत ऐसी घटनाओं में सख्त से सख्त सजा मिलनी चाहिए।

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Harrison Masih
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छत्तीसगढ़ के बहुचर्चित कोंडागांव नाबालिग गैंगरेप मामले में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने कड़ी टिप्पणी करते हुए निचली अदालत के फैसले को सही ठहराया है। बिलासपुर हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने तीनों दोषियों की अपील खारिज कर दी है और कहा है कि नाबालिगों के साथ यौन अपराधों में किसी भी तरह की नरमी उचित नहीं है। अदालत ने स्पष्ट किया कि कानून के तहत ऐसी घटनाओं में सख्त से सख्त सजा मिलनी चाहिए, ताकि समाज में एक स्पष्ट संदेश जाए।

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विवाह समारोह से लौटते वक्त हुआ अपराध

यह दिल दहला देने वाली घटना 26 अप्रैल 2019 की है। पीड़िता अपनी सहेली के साथ एक विवाह समारोह में शामिल होकर लौट रही थी। रात करीब 11 बजे, जब दोनों लड़कियाँ वाशरूम की ओर जा रही थीं, तभी चार युवकों ने उसे जबरदस्ती खींचकर पास के खेत में ले जाकर गैंगरेप किया।

पीड़िता ने मोबाइल की टॉर्च लाइट से आरोपियों को पहचान लिया था। घटना के तुरंत बाद उसने अपनी मां को पूरी जानकारी दी, जिसके आधार पर कोंडागांव थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई गई। पुलिस ने तत्परता दिखाते हुए चारों आरोपियों को गिरफ्तार कर उनके खिलाफ कोर्ट में चालान पेश किया।

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फास्ट ट्रैक कोर्ट का फैसला

फास्ट ट्रैक कोर्ट कोंडागांव ने इस जघन्य अपराध के लिए पंकू कश्यप, मनोज बघेल, और पिंकू कश्यप को पॉक्सो एक्ट की धारा 6 और आईपीसी की धारा 376 डी (सामूहिक बलात्कार) के तहत दोषी ठहराया। कोर्ट ने तीनों को 20-20 साल के सश्रम कारावास की सजा सुनाई, साथ ही 5000-5000 रुपये का जुर्माना भी लगाया गया। जुर्माना नहीं भरने की स्थिति में तीनों को अतिरिक्त 3-3 साल की सजा भुगतने का भी आदेश दिया गया।

हाईकोर्ट की टिप्पणी: यौन अपराध में नरमी नहीं

मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति बीडी गुरु की डिवीजन बेंच में सुनवाई हुई, जिसमें तीनों दोषियों ने निचली अदालत के फैसले को चुनौती दी थी। परंतु हाईकोर्ट ने पीड़िता की गवाही को विश्वसनीय और ठोस मानते हुए कहा कि "बाल यौन अपराधों में पीड़िता की गवाही ही दोष सिद्ध करने के लिए पर्याप्त होती है, यदि वह स्पष्ट हो"।

डिवीजन बेंच ने स्पष्ट किया कि घटना के समय पीड़िता की आयु 18 वर्ष से कम थी और वह कानूनी रूप से बालिका की श्रेणी में आती थी। उसकी इच्छा के विरुद्ध किया गया कृत्य स्पष्ट रूप से सामूहिक दुष्कर्म की परिभाषा में आता है।

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पीड़िता को मिला न्याय, समाज को मिला संदेश

इस फैसले को लेकर महिला अधिकार संगठनों और समाज के जागरूक वर्गों ने न्यायपालिका के रुख की सराहना की है। इस निर्णय से स्पष्ट है कि यौन अपराधों पर अब सख्ती के साथ निपटा जा रहा है, और पीड़ितों को न्याय देने में अदालतें पीछे नहीं हट रहीं।

कोंडागांव की मासूम बच्ची को इंसाफ दिलाने की इस कानूनी लड़ाई ने चार साल बाद न्याय का सूरज दिखाया है। हाईकोर्ट के इस निर्णय से यह स्पष्ट संदेश गया है कि बच्चों के साथ किए गए अपराध किसी भी हाल में बर्दाश्त नहीं किए जाएंगे, और दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा दी जाएगी।

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