प्रदेश की 70 हजार मितानिन फिर NGO के भरोसे, स्वास्थ्य मंत्री के नई व्यवस्था का दावा फेल

प्रदेश की 70 हजार मितानिनों को फिर से एक NGO के भरोसे छोड़ दिया गया है। जबकि लगभग सालभर पहले ही प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री ने इस व्यवस्था को गलत बताया था।

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VINAY VERMA
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Raipur. छत्तीसगढ़ की 70 हजार मितानिनों को फिर से एक NGO के भरोसे छोड़ दिया गया है। जबकि लगभग सालभर पहले ही प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री ने इस व्यवस्था को गलत बताया था। और यही कारण बता पुराने एनजीओ से न केवल काम वापस लिया गया बल्कि राज्य स्वास्थ्य संसाधन केंद्र को भी समाप्त कर दिया। लेकिन महज कुछ महीने बाद नई राज्य स्वास्थ्य प्रणाली संसाधन केंद्र बनाकर उसे नए एनजीओ के हवाले कर दिया गया।

SHRC पर क्यों हुई कार्रवाई?

नई सरकार बनने के साथ ही स्वास्थ्य विभाग को SHRC यानी स्टेट हेल्थ रिसोर्स सेंटर में कमियां दिखाई देने लगी थीं। बार-बार एसएचआरसी के अधिकारियों पर सुस्त होने का आरोप लगा। कहा गया कि अधिकारी शिकायतों और कमियों को दूर करने बहुत समय लगाते हैं। इसके अलावा इसके कर्मचारी अधिकारी फील्ड में नहीं जाते। मितानिनों के संसाधनों की कमी भी पूरी नहीं कर रहे। लंबी शिकायत के बाद संस्थान को बंद करने का आदेश दे दिया गया। 

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सच एनजीओ को जिम्मेदारी

जिसके कुछ समस बाद ही अप्रैल में शासन ने मितानिनों की निगरानी के लिए नया टेंडर जारी किया लेकिन इसमें भी निविदा के लिए एनजीओ को ही आमंत्रित किया गया। जुलाई में सच नाम की संस्था को वर्क ऑर्डर मिला लेकिन संस्था के साथ आज भी उसी तरह की शिकायत बनी हुई है। संस्थान का कहना है कि अभी उनको राज्य में सेटअप जमाने में समय लग रहा है। सरकार ने उन्हें अभी तक बजट भी नहीं दिया।

काम देने नया संस्थान बनाया

द सूत्र ने जब इसकी पड़ताल की तो सामने आया कि काम सच नामक एनजीओ को दिया गया है इसकी जानकारी किसी को न लगे इसके लिए स्वास्थ्य विभाग ने राज्य स्वास्थ्य प्रणाली संसाधन केंद्र बनाया है। एनजीओ के अधिकारी अब इस केंद्र के सदस्य हैं। इधर एनएचएम की तरफ से भी मितानित संसाधन केंद्र बनाया है जिसका राज्य स्वास्थ्य प्रणाली संसाधन केंद्र के साथ अनुबंध है। 

छग में मितानिनों की समस्या

प्रदेश की 70 हजार मितानिनों का विरोध है कि उन्हें अब ठेका प्रथा के तहत काम करने के लिए मजबूर न किया जाए, बल्कि सीधे राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत स्थायी रूप से शामिल करने की मांग है, ताकि उन्हें बेहतर सुरक्षा और लाभ मिल सकें, लेकिन सरकार ने इस पर अब तक पूरी तरह अमल नहीं किया है। एनजीओ के तहत होने के कारण मितानिन अपने निर्धारित कार्य के अलावा कई अतिरिक्त काम करती हैं, लेकिन उन्हें उन कार्यों के लिए भुगतान नहीं मिलता।

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दवाईयां भी नहीं है मितानिनों के पास 

मितानिनों के पास दवाओं की कमी की समस्या है, क्योंकि कुछ इलाकों में दवा पेटियां खाली हैं और छत्तीसगढ़ स्वास्थ्य विभाग द्वारा दवाओं की आपूर्ति में देरी हो रही है। बस्तर जैसे आदिवासी क्षेत्रों में इलाज में बाधा आ रही है। यह स्थिति एक साल से बनी हुई है और यह दावा किया जाता है कि दवाएं खत्म होने पर तुरंत कीट सप्लाई किए जाते हैं, लेकिन जमीनी हकीकत अलग है। बता दें कि मितानिन दवा पेटी में पैरासिटामोल, ओआरएस घोल, बैंडेज, जिंक टैबलेट जैसी 19 तरह की दवाएं होती हैं, साथ ही बीपी और शुगर जांच की किट भी होती है, जो खराब हो चुके हैं। 

असर कुछ दिन में दिखने लगेगा

हमें अभी यहां जमने में समय लग रहा है, इसका असर आपको कुछ दिन में दिखने लगेगा। फिलहाल सरकार की तरफ से कोई पैसा नहीं मिला है, लेकिन जहां तक मितानिनों की किट और अन्य शिकायतों की बात है, लगभग सब दुरुस्त है, मैं कुछ दिन पहले ही फील्ड में गया था।
संजीव उपाध्याय, एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर, राज्य स्वास्थ्य प्रणाली संसाधन केंद्र

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