दो साल का कोर्स महज 15 महीने में कर रहे नेत्र सहायक अधिकारी, बिना जांचे स्वास्थ्य विभाग दे रहा मान्यता

प्रदेश में नेत्र सहायक अधिकारियों से जुड़ा मामला सामने आया है। इस मामले में 15 महीने में 2 साल का कोर्स पूरा कर सरकारी नौकरी दे दी गई। लेकिन कोर्स की पूरी प्रक्रिया और इनके प्रमाणपत्रों की सत्यता पर अब सवाल उठ रहे हैं।

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VINAY VERMA
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Cg helth dipartment issue

Photograph: (the sootr)

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RAIPUR. द सूत्र प्रदेश के कथित आंखफोड़वा कांड 2ः0 पर बड़ा खुलासा कर रहा है। हमने पड़ताल कर मोतियाबिंद ऑपरेशन में होने वाली समस्या के पीछे का कारण जानना चाहा। पता चला कि प्रदेश में आंखों की देखभाल करने वाले अधिकतर नेत्र सहायक अधिकारी योग्य ही नहीं।

इनके नेत्र सहायक अधिकारी बनने की योग्यता ऑप्थैलमिक में पैरामेडिकल कोर्स है जो महज 2 साल का है। लेकिन अधिकतर लोग इस कोर्स को दूसरे राज्यों से केवल 13 से 15 महीने में ही पूरा कर लेते हैं। हद तो यह है कि विभाग भी इसकी सत्यता जांचे बिना इसे मान्य कर लेता है। 

कौन होते हैं नेत्र सहायक अधिकारी

नेत्र सहायक अधिकारियों की नियुक्ति ग्रामीण स्वास्थ्य संयोजक के रूप में हुई थी। बाद में सरकार ने इन्हें प्रमोशन देकर नेत्र सहायक अधिकारी बनाकर जिलों में नियुक्ति दे दी। इनका काम फील्ड में मरीजों की आंख से जुड़ी छोटी- मोटी समस्या को दूर करना है। 

इसके साथ ही ऑपरेशन वाले मरीजों को सर्च कर अस्पताल तक लाना और ऑपरेशन के दौरान सर्जन को सहायता देना है। कई बार यह रिपोर्ट तैयार करने में गड़बड़ी कर देते हैं।  

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छत्तीसगढ़ में नेत्र सहायकों से जुडे़ इस मामले को ऐसे समझें 

  • प्रदेश में कई नेत्र सहायक अधिकारियों ने महज 13 से 15 महीने में 2 साल के ऑप्थल्मिक पैरामेडिकल कोर्स को पूरा किया और बिना जांच के नौकरी पर नियुक्त हो गए।
  • नेत्र सहायक अधिकारी की जिम्मेदारी मरीजों की आंखों की छोटी समस्याओं का इलाज करने और ऑपरेशन के मरीजों को अस्पताल तक लाने की होती है।
  • 2013 में राज्य सरकार ने ऑप्थल्मिक कोर्स के बाद ग्रामीण स्वास्थ्य संयोजक को नेत्र सहायक अधिकारी बनाने का नियम बनाया, लेकिन उसी साल स्थानीय मेडिकल कॉलेजों में यह कोर्स बंद कर दिया गया।
  • कई अधिकारियों ने मणिपुर और मध्य प्रदेश जैसे अन्य राज्यों से जल्दी कोर्स कर सर्टिफिकेट प्राप्त किया, लेकिन विभाग ने इनकी प्रमाणपत्रों की जांच नहीं की।
  • स्वास्थ्य विभाग ने इन मामलों की जांच करने की बात की है, लेकिन फिलहाल अधिकारियों के प्रमाणपत्रों पर सवाल खड़े हैं।

दूसरे राज्यों से करते हैं कोर्स

राज्य सरकार में नॉन टेक्टिनकल कर्मचारी प्रमोट करने के लिए साल 2013 में एक नियम बना था। इसमें ऑप्थल्मोलॉजी से जुड़े पैरामेडिकल कोर्स के बाद इन्हें नेत्र सहायक अधिकारी बनाने का प्रावधान था। लेकिन उसी साल छत्तीसगढ़ के मेडिकल कॉलेजों में चलने वाले इस तरीके के कोर्स को बंद कर दिया गया। जिसके बाद तमाम ग्रामीण स्वास्थ्य संयोजक मध्यप्रदेश और मणिपुर के कॉलेजों से कोर्स कर सर्टिफिकेट लाने लगे। सरकार ने भी बिना जांचे इन्हें नौकरी दे दी। 

महज 15 महीनों में मिल गया सर्टिफिकेट

पड़ताल के दौरान हमें छत्तीसगढ़ स्वास्थ्य विभाग की तरफ से जारी मार्च 2020 का एक आदेश मिला। जिसमें 34 मल्टी परपच वकर्स को नेत्र से जुड़े पैरामेडिकल कोर्स करने की अनुमति दी गई थी। उसमें से एक नाम धमतरी की ग्रामीण स्वास्थ्य संयोजक भारती साहू का भी है।

भारती साहू को 2 साल में प्रशिक्षण कोर्स पूरा करना था। लेकिन भारती साहू ने जो रिजल्ट शासन को सबमिट किया, वह जुलाई 2021 में ही उसे मिल गया था। इसका मतलब अनुमति से केवल 15 महीने बाद। ऐसे ही आरोप अन्य 4 ग्रामीण स्वास्थ्य संयोजकों पर भी लग रहा है।

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इनके सर्टिफिकेट की भी जांच होनी चाहिए

भारती साहू के अलावा द सूत्र के पास 4 नेत्र सहायक अधिकारियों के नाम हैं, जिनके सर्टिफिकेट पर भी सवाल हैं। इनमें अन्नपूर्णा वर्मा, मनोज साहू, कृष्ण कुमार वैष्णव और महेंद्र चंद्रवंशी शामिल हैं। विभाग ने इनके सर्टिफिकेट की जांच के बिना इन ग्रामीण स्वास्थ्य संयोजको को नेत्र सहायक अधिकारी बना दिया है। इनके खिलाफ शिकायत भी हुई है। इधर इस मामले में स्टेट नोडल अधिकारी अंधत्व निवारण डॉ. निधि अत्रिवाल ने बताया कि आप जो बोल रहे हे ऐसा ही होना चाहिए। मेरी जानकारी में अभी आया है, मैं इसे देखती हूं। 

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