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छत्तीसगढ़ ने डिजिटल गवर्नेंस और तकनीकी नवाचार के दम पर एक ऐतिहासिक आर्थिक उपलब्धि हासिल की है। साल 2000 में मध्यप्रदेश के विभाजन के बाद बनी पेंशन दायित्वों की व्यवस्था में मध्यप्रदेश द्वारा छत्तीसगढ़ को बकाया हिस्सा नहीं देने का सनसनीखेज खुलासा हुआ है। डिजिटलाइजेशन की प्रक्रिया के दौरान पकड़ी गई इस गड़बड़ी के बाद छत्तीसगढ़ सरकार ने मध्यप्रदेश से 2024-25 के लिए 1685 करोड़ रुपये की पेंशन राशि वसूल की है। यह राशि अब हर साल छत्तीसगढ़ को मिलेगी, जिससे राज्य की अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी।
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पेंशन बंटवारे का पुराना समझौता
जब 2000 में मध्यप्रदेश से अलग होकर छत्तीसगढ़ बना, तब दोनों राज्यों के बीच कर्मचारियों और उनकी पेंशन जिम्मेदारियों का बंटवारा हुआ। तय हुआ कि छत्तीसगढ़ आए कर्मचारियों की पेंशन में मध्यप्रदेश की सेवा अवधि का 73.38% हिस्सा मध्यप्रदेश और 26.62% हिस्सा छत्तीसगढ़ वहन करेगा। साथ ही, छत्तीसगढ़ में की गई सेवा की पूरी पेंशन छत्तीसगढ़ सरकार देगी। पहली पेंशन कोषालय के माध्यम से और बाद की पेंशन बैंक के जरिए दी जानी थी। मध्यप्रदेश को अपने हिस्से की राशि महालेखाकार के माध्यम से छत्तीसगढ़ कोष में जमा करानी थी। लेकिन डिजिटलाइजेशन के बाद पता चला कि मध्यप्रदेश ने पिछले 24 सालों से यह राशि जमा ही नहीं की।
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डिजिटलाइजेशन ने खोला राज
भाजपा सरकार के सत्ता में आने के बाद वित्त मंत्री ओपी चौधरी ने पेंशन रिकॉर्ड्स के डिजिटलाइजेशन का आदेश दिया। इस प्रक्रिया के दौरान छत्तीसगढ़ पेंशन संचालनालय ने पाया कि मध्यप्रदेश ने अपने हिस्से की पेंशन राशि कभी भेजी ही नहीं। यह गड़बड़ी पहले इसलिए पकड़ में नहीं आई क्योंकि पत्राचार और रिकॉर्ड्स का अभाव था। जांच में पता चला कि छत्तीसगढ़ सरकार कर्मचारियों की पूरी पेंशन राशि का भुगतान कर रही थी, जबकि मध्यप्रदेश का हिस्सा बकाया था।
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1685 करोड़ की वसूली, हर साल होगी बचत
जैसे ही यह गलती सामने आई, छत्तीसगढ़ सरकार ने मध्यप्रदेश से 2024-25 के लिए 1685 करोड़ रुपये की मांग की। मध्यप्रदेश सरकार ने इस राशि को छत्तीसगढ़ कोष में जमा कर दिया है। विभागीय सूत्रों के अनुसार, अब हर साल इतनी राशि की बचत होगी। केवल अप्रैल से जून 2025 तक के तीन महीनों में ही छत्तीसगढ़ को 600 करोड़ रुपये की बचत हुई है। पेंशन संचालनालय अब पुराने रिकॉर्ड्स की भी जांच कर रहा है, जिसमें मध्यप्रदेश से करीब 25,000 करोड़ रुपये की बकाया राशि सामने आ सकती है।
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पेंशन व्यवस्था का बदलता स्वरूप
पेंशन प्रणाली में समय के साथ कई बदलाव आए।
1986 : मध्यप्रदेश में पेंशन संचालनालय की स्थापना हुई।
1991-92 : सभी कर्मचारियों की पेंशन संचालनालय के अधीन आई।
1996 : रायपुर और बिलासपुर में ज्वाइंट डायरेक्टर नियुक्त हुए, जिन्होंने पेंशन पेमेंट ऑर्डर (PPO) जारी करना शुरू किया।
2000 : छत्तीसगढ़ बनने के बाद दुर्ग, सरगुजा और बस्तर में भी ज्वाइंट डायरेक्टर कार्यालय स्थापित हुए।
2011 : बैंकों में सेंट्रलाइज्ड पेंशन सिस्टम लागू हुआ।
2018 : छत्तीसगढ़ में आभार पोर्टल शुरू हुआ, जिससे पेंशन प्रक्रिया ऑनलाइन हुई।
बैंकों की लापरवाही उजागर
2012 में बैंकों को सेंट्रल पेंशन प्रोसेसिंग सेंटर बनाया गया, जिसके बाद पेंशन संचालनालय केवल पहली पेंशन देता था। बाद की पेंशन बैंकों के जरिए सीधे कर्मचारियों को मिलती थी। लेकिन बैंकों ने दोनों राज्यों के पेंशन अनुपात की शीट तैयार नहीं की। छत्तीसगढ़ सरकार पूरी पेंशन राशि भेजती थी, जो बैंकों द्वारा कर्मचारियों को ट्रांसफर हो जाती थी। 2022 में जब बैंक सेंटर रायपुर में आए और शीट मांगी गई, तब यह गड़बड़ी सामने आई।
AI और डिजिटलाइजेशन से पकड़ा घपला
पेंशन संचालनालय के संचालक रितेश अग्रवाल ने बताया कि 1.4 लाख पुराने ऑफलाइन PPO रिकॉर्ड्स को स्कैन और डिजिटाइज करने में चार महीने लगे। ये रिकॉर्ड मैनुअल रजिस्टरों, जिला कोषागारों और 8 बैंकों में बिखरे थे। AI तकनीक का उपयोग कर डेटा को सरल किया गया और दोनों राज्यों के पेंशन अनुपात का एकीकृत डेटाबेस बनाया गया। 2011-12 से 2024-25 तक के लेन-देन को अनुपात में बांटा गया और महालेखाकार कार्यालयों ने इसे सत्यापित किया। अब हर महीने 150-200 करोड़ रुपये की स्थायी बचत होगी।
वित्त मंत्री का बयान
वित्त मंत्री ओपी चौधरी ने इसे ऐतिहासिक कदम बताते हुए कहा, “इच्छाशक्ति, डेटा और तकनीक के सही उपयोग से हमने 24 साल पुरानी गलती को सुधारा। 1685 करोड़ रुपये की वसूली छत्तीसगढ़ की अर्थव्यवस्था के लिए मील का पत्थर है।” संचालक रितेश अग्रवाल ने बताया कि मुख्यमंत्री, वित्त मंत्री और सचिव के मार्गदर्शन से डिजिटल गवर्नेंस के जरिए यह संभव हुआ।
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