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रायपुर के पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय ने ऐसा कारनामा कर दिखाया कि छात्रों के होश उड़ गए! सुबह 8 बजे शुरू होने वाली बीए एलएलबी की परीक्षा के लिए छात्र तो वक्त पर पहुंच गए, लेकिन विश्वविद्यालय को लगा जैसे उसे "ताला खोलने की ट्रेनिंग" लेनी बाकी है। जी हां, परीक्षा कक्ष का ताला खोलना ही भूल गया विश्वविद्यालय! नतीजा? कला भवन की दूसरी मंजिल पर ताला लटकता रहा, और छात्र बाहर खड़े ठगे से इंतजार करते रहे।
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7:30 बजे से शुरू हुआ ड्रामा
परीक्षा का समय था सुबह 8 से 11 बजे। उत्साही छात्र सुबह 7:30 बजे ही केंद्र पर पहुंच गए, लेकिन वहां का नजारा देखकर उनके चेहरे लटक गए। परीक्षा कक्ष का दरवाजा ताले की "हिफाजत" में था! पहले तो छात्रों ने सोचा, शायद वे गलत दिन या तारीख पर पहुंच गए। कुछ ने टाइम-टेबल निकालकर बार-बार चेक किया, लेकिन नहीं, गलती उनकी नहीं, विश्वविद्यालय की थी। आधे घंटे तक इंतजार के बाद छात्रों का सब्र टूटा और हंगामा शुरू हो गया।
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ताला खुला, लेकिन देर से!
लगभग 30 मिनट के ड्रामे के बाद आखिरकार ताला खोला गया। फिर शुरू हुआ दूसरा चरण—छात्रों को बिठाना, उत्तर पुस्तिकाएं बांटना और एंट्री की औपचारिकताएं। नतीजा यह हुआ कि परीक्षा करीब 8:20 बजे शुरू हो सकी। हालांकि विश्वविद्यालय प्रबंधन ने देरी को "कवर" करने के लिए छात्रों को उत्तर लिखने के लएत अतिरिक्त समय दिया। इसके बावजूद बाहर खड़े छात्रों का आरोप है कि यह "कवर" उनके घबराहट और परेशानी को तो बजेर नहीं कर सकता।
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कसूर बाइक का!
विश्वविद्यालय प्रबंधन ने इस लेटलतीफी का ठीकरा एक कर्मचारी की बाइक पर फोड़ दिया। सुनने में मजेदार लगता है, लेकिन हकीकत में यह बहाना था। प्रबंधन के मुताबिक, जिस कर्मचारी के पास कक्ष की चाबी थी, उसकी बाइक खराब हो गई और वह समय पर नहीं पहुंच सका। अब सवाल यह है कि क्या विश्वविद्यालय के पास सिर्फ एक चाबी थी? या फिर यह "बाइक खराब" की कहानी में और कोई ट्विस्ट है?
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पहले तो 7 बजे की थी प्लानिंग!
हैरानी की बात यह है कि यह विश्वविद्यालय, जो 8 बजे ताला नहीं खोल पाया, पहले सुबह 7 बजे से परीक्षा लेने का इरादा रखता था। छात्रों के भारी विरोध और दूर-दराज से आने वाली दिक्कतों को देखते हुए समय को 8 बजे किया गया। लेकिन इस घटना ने तो साबित कर दिया कि 8 बजे भी विश्वविद्यालय के लिए "सुबह जल्दी" है!
छात्रों की परेशानी यहीं खत्म नहीं हुई
परीक्षा शुरू होने से पहले तो ताला ने परेशान किया, लेकिन खत्म होने के बाद भी मुश्किलें कम नहीं हुईं।। जिन अभिभावकों ने अपने बच्चों को लेने के लिए केंद्र पर पहुंचे गए थे, उन्हें भी आधे घंटे तक इंतजार करना पड़ा। छात्रों का कहना था, "पहले ताला बंद, फिर दिमाग बंद, और अब समय बंद!"
विश्वविद्यालय का दावा, "नुकसान नहीं हुआ"
विश्वविद्यालय के मीडिया प्रभारी प्रो. राजीव चौधरी ने सफाई दी कि जितनी देर से प्रश्नपत्र बांटे गए, उतना अतिरिक्त समय दिया गया। उनके मुताबिक, "किसी छात्र का नुकसान नहीं हुआ।" लेकिन छात्रों का सवाल है कि समय और मानसिक तनाव का नुकसान कौन भरेगा?
आखिर ये सबक कब सीखेगा विश्वविद्यालय?
यह पहली बार नहीं है कि रविवि की लापरवाही सुर्खियों में आई हो। छात्रों के साथ इस "ताला-कानी" ने एक बार फिर सवाल खड़े कर दिए हैं कि आखिर विश्वविद्यालय की व्यवस्था में सुधार कब होगा? फिलहाल, छात्रों को सलाह है कि अगली बार अपने साथ एक "चाबी" जरूर लाएं, क्योंकि विश्वविद्यालय की चाबी तो किसी की बाइक के साथ कहीं और ही अटकी रह सकती है!
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