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छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग में मौजूद ज्यादातर स्कूलों की हालत बेहद जर्जर है । इसके पीछे की वजह यह है कि, पिछले दो दशकों में नक्सलियों की ओर लगातार इन स्कूल भवनों को निशाना बनाया गया। साल 2004 में नक्सलियों के खिलाफ सलवा जुड़म आंदोलन की शुरुआत हुई थी। इस दौरान नक्सली स्कूलों पर कहर बनकर टूटे थे।
इस वजह से टार्गेट में थे स्कूल
नक्सलियों ने इन स्कूलों को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया था। दरअसल नक्सल ऑपरेशन या फिर सुरक्षा कैंप लगाने के दौरान सुरक्षाबल के जवान इन्हीं स्कूलों में अपना ठिकाना बनाते थे। इसी वजह से स्कूल नक्सलियों के हॉट टार्गेट पर रहते थे। पिछले ढाई दशकों के दौरान नक्सलियों ने इन स्कूलों को जमकर निशाना बनाया। इसके पीछे उनकी मंशा साफ थी, एक तो वो इन बिल्डिंग्स को इस वजह से निशाना बना रहे थे, ताकि फोर्स इन बिल्डिंग पर न ठहर सके और दूसरा वो नहीं चाहते थे कि इस इलाके के लोग साक्षर हों। जानकारी के मुताबिक बस्तर के नक्सल प्रभावित चार जिलो में 260 के करीब ऐसे स्कूल हैं जिन्हें नक्सलियों ने नुकसान पहुंचाया था। अकेले कोंटा ब्लॉक में ही नक्सलियों ने 53 स्कूलों को उड़ा दिया था।
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जर्जर भवनों में पढ़ाई करने को मजबूर
संभाग के सात जिलों के 1542 स्कूल ऐसे हैं जो जर्जर भवनों में लग रहे हैं। कई भवनों की छत जर्जर है, कहीं दीवारों पर दरारे हैं तो कहीं दीवारों से प्लास्टर नीचे गिर रहा है। तो कहीं स्कूल की बिल्डिंग इतनी जर्जर हो चली है कि वह कभी भी ढह सकती है। कई स्कूलों में या तो शौचालय नहीं या फिर उनकी हालत इनती जर्जर है कि उन्हें इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। ऐसे में इन स्कूलों में पढ़ने वाली छात्राओं को परेशानी का सामना करना पड़ता है।
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बस्तर में सबसे खराब हालात
सबसे ज्यादा खराब हालात बस्तर जिले के हैं। यहां जर्जर स्कूलों की संख्या साढ़ें पांच सौ से भी अधिक है। इसमें 400 के करीब प्राथमिक, 141 माध्यमिक, पांच हाई और छह हायर सेकेंडरी स्कूल शामिल हैं। इसके साथ ही कोंडागांव में 303, कांकेर में 378, सुकमा में 124, बीजापुर में 117, दंतेवाड़ा में 51 और नारायणपुर में 22 स्कूल भवनों की हालत खराब है। इस स्कूल भवनों की टूटी और टपकती छत, दीवारों में मोटी-मोटी दरारें, टूटे छज्जे, दीवारों से गिरता प्लास्टर और टूटी फर्श यहं पढ़ाई करने वाले छात्र-छात्राओं के लिए तकलीफ के साथ ही खतरे का सबब बन रही हैं।
स्कूल जनत योजना नाकाम
पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार ने स्कूलों की मरम्मत के लिए स्कूल जनत योजना चलाई थी। इसके तहत स्कूलों की मरम्मत में लाखों रुपए खर्च किए गए थे। स्कूल भवनों की मरम्मत का दावा किया गया। लेकिन 1542 स्कूलों का काम अभी भी अधूरा है। जिला शिक्षा अधिकारी का कहना है कि मरम्मत का काम चल रहा है। लेकिन स्थानीय लेवल पर हालात बेहद खराब है। इन भवनों में क्लास लगाना लगभग असंभव लग है।
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वैकल्पिक व्यवस्था की तैयारी
जिला शिक्षा अधिकारी बीआर बघेल ने बताया कि वैकल्पिक व्यवस्था पर जोर दिया जा रहा है। किसी दूसरे स्थान पर क्लास लगाने की तैयारी है। पिछले शिक्षा सत्र में भी वैकल्पिक स्थान पर क्लास लगाई गई थी। हलांकि छात्र-छात्राओं के परिजन इस बात को लेकर खासे चिंतित हैं कि क्या व्यवस्थाएं समय पर और प्रभावी तौर पर लागू हो पाएंगी।
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ऐसे में कैसे पढ़ेगा बचपन
स्कूल भवनों की जर्जर स्थिति न सिर्फ यहां पढ़ने वाले छात्र-छात्राओं की सेहत के लिए खतरनाक है, बल्कि शिक्षा पर भी असर डाल रही है। सरकार की उदासीनता और सिस्टम के लापरवाह रवैये की वजह से नौनिहाल असुरक्षित माहौल में पढ़ाई करने को मजबूर हैं।
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