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कांग्रेस के दावेदारों को चुनाव लड़ने के लिए जेब ढीली करनी पड़ेगी। निकाय एवं पंचायत चुनाव के लिए कांग्रेस टिकट बेच रही है। दावेदारों को चुनाव लड़ने के लिए पार्टी को मोटा फंड देना होगा। नगर पालिका में दोबारा चुनाव लड़ने के इच्छुक अध्यक्षों को 42 हजार औरपार्षदों-एल्डरमैन को दावेदारी के साथ 17 हजार 500 रूपर देने होंगे।
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इसी तक नगर पंचायत के बीस अध्यक्षों को 30 हजार और पार्षदों को 14 हजार रुपए जमा करने होंगे। राशि जमा होने के बाद ही मौनूदा पार्षदों को कीस संगठन दोबारा दावेदार की लिस्ट में शामिल होंगे। इसकी वजह डॉ. मनमोहन सिंह कमेटी के लिए अब तक सहयोग राशि जमा नहीं करना है।
दावेदारों को ढीली करनी होगी जेब
कांग्रेस संगठन ने डॉ. मनमोहन सिंह कमेटी का गठन किया है। कमेटी के माध्यम से कांग्रेस ने अपने हर जनप्रतिनिधि से सहयोग राशि की अपील की थी। यह एक तरफ बब पार्टी के लिए फंड ही है। इस केस में जनप्रतिनिधि को अपने सालभर के मानदेय में से एक माह का मानदेय कमेटी में जमा कराया था। पिछले पांच साल में निवर्तमान पार्षदों ने पार्टी में अब मानदेव जमा नहीं किया है।
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ऐसे में चुनाव के लिए दानेदारी या टिकट के पहले यह राशि अनिवार्य कर दी गई है। नगर पालिक्व आंजीगर-नैला में अध्यक्ष सहित कांग्रेस के 9 पार्षद है। पार्टी सूत्रों के मुताबिक किनती भी पार्षद ने पार्टी फंड के लिए मानदेय को राशि जमा नहीं की है। जिन्हें उत्व दोबारा टिकट या दावेदारी के आवेदन के साथ राशि भी देनी होगी।
ऐसे तय हो रही मानदेय राशि
नगर पालिका के अध्यक्षों का शुरुआती दो साल का मानदेय 6000 और पार्षदों का 2500 रुपए प्रतिमाह रुपए था। इसके बढ़ने के बाद अध्यक्षों का मानदेय 12000 और पार्षदों का मानदेव 5000 रुपए हो गया। इसके हिसाब से 5 साल में प्रति 12 माह में से एक माह का मानदेय पार्षदों को पार्टी फंड में देना होगा। इसी तरह नगर पंचायत में अध्यक्षों को पहले 5000 और पार्षदों को 2000 रुपए मानदेय निर्धारित था। चाहें पिछले दो सालों से बढ़ाकर इसे अध्यक्ष को 7500 और पार्षदों का 4000 रुपए के हिसाब से दिया जाता है।
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एक साल से मानदेय बंद
कसीस संगठन ने पार्टी को आर्थिक रूप से मजबूत करने लिए यह आदेश जारी किया है। आदेश में स्पष्ट है कि सुन्नाव के दौरान पार्टी आर्थिक गप्प से मजबूत होगी, लेकिन इसमें संगठन का पैच भी फंसा गया है। दरअसल बीते एक साल से पार्षदों का मानदेय जमी नहीं हुआ है। नाई नई मौजूदा पार्षद वादों के आरक्षण बाद दावेदारी से कट गए हैं। ऐसे में इनके चुन्नाय चुनाव मैदान में दोबारा उतरने की संभावना कम है। इससे पार्टी को नुकसान जरूर होगा।
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