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छत्तीसगढ़ के डोंगरगढ़ शहर में रेलवे कॉलोनी में संचालित ऐतिहासिक एसईसी रेलवे मिश्रित माध्यमिक विद्यालय को बंद करने का रेलवे प्रशासन का निर्णय स्थानीय समुदाय के लिए विवाद का विषय बन गया है। रेलवे ने इस स्कूल की जगह मंडल स्तर पर बहु-विषयक प्रशिक्षण संस्थान (एमडीडीटीआई) स्थापित करने का फैसला लिया है, जिसका उद्देश्य रेलवे कर्मचारियों को विभिन्न विषयों में प्रशिक्षण प्रदान करना है। इस निर्णय के खिलाफ स्कूल के छात्र-छात्राओं, उनके पालकों और स्थानीय प्रतिनिधियों में भारी आक्रोश व्याप्त है।
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रेलवे का तर्क और स्कूल बंद करने की योजना
रेलवे अधिकारियों का दावा है कि स्कूल का भवन पुराना और जीर्ण-शीर्ण है, जिसमें रिसाव और छत की समस्याएं हैं, जो छात्रों की सुरक्षा के लिए खतरा पैदा कर सकता है। अधिकारियों ने सहायक अभियंता (एईएन) को भवन की सुरक्षा का प्रमाणन करने का निर्देश दिया है।
साथ ही, रेलवे ने राजनांदगांव के जिला कलेक्टर डॉ. सर्वेश्वर भूरे से चर्चा कर सभी छात्रों को स्थानीय स्वामी आत्मानंद अंग्रेजी माध्यम विद्यालय में स्थानांतरित करने की अनुमति प्राप्त कर ली है। रेलवे ने स्कूल के प्रभारी प्राचार्य गंगा प्रसाद खैरवार को पालकों की बैठक बुलाकर छात्रों के स्थानांतरण प्रमाण पत्र (टीसी) के लिए सहमति लेने का सख्त निर्देश दिया है।
पालकों और स्थानीय समुदाय का विरोध
रेलवे के इस फैसले के खिलाफ स्कूल के पालकों ने एकजुट होकर तीव्र विरोध जताया है। प्रभारी प्राचार्य द्वारा बुलाई गई बैठक में पालकों ने सांसद प्रतिनिधि तरुण हथेल के समर्थन से रेलवे के निर्णय को "तुगलकी फरमान" करार देते हुए इसका कड़ा विरोध किया। पालकों ने स्पष्ट कर दिया कि वे किसी भी स्थिति में अपने बच्चों के स्थानांतरण प्रमाण पत्र पर सहमति नहीं देंगे।
सांसद प्रतिनिधि तरुण हथेल ने रेलवे अधिकारियों द्वारा भवन की स्थिति के बारे में दी गई जानकारी को "मिथ्या" बताया और कहा कि इस निर्णय के खिलाफ हर स्तर पर लड़ाई लड़ी जाएगी। उन्होंने जोर देकर कहा कि स्कूल को बंद होने से बचाने और छात्रों के भविष्य की रक्षा के लिए हरसंभव प्रयास किया जाएगा।
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स्कूल का ऐतिहासिक महत्व
डोंगरगढ़ रेलवे कॉलोनी में स्थित यह स्कूल पिछले 100 वर्षों से संचालित हो रहा है और इसे शहर की सांस्कृतिक व शैक्षणिक धरोहर के रूप में देखा जाता है। हरे-भरे प्राकृतिक परिवेश में बसा यह स्कूल कई पीढ़ियों के लिए शिक्षा का केंद्र रहा है।
यहां पढ़ने वाले छात्र-छात्राओं और शिक्षकों की यादें इस स्कूल से गहरे जुड़ी हैं। पालकों का कहना है कि रेलवे की नीतियों के चलते इस स्कूल को धीरे-धीरे बंद करने की साजिश रची जा रही है, जो स्थानीय समुदाय के लिए अस्वीकार्य है।
भविष्य की चुनौतियां और सवाल
रेलवे का यह निर्णय कई सवाल खड़े करता है। पहला, क्या पुराने भवन की मरम्मत कर इसे सुरक्षित बनाना संभव नहीं है? दूसरा, मध्य सत्र में छात्रों को अन्य स्कूलों में स्थानांतरित करने से उनकी पढ़ाई पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
तीसरा, क्या रेलवे प्रशासन ने इस फैसले से पहले स्थानीय समुदाय और पालकों की राय लेने की कोशिश की? पालकों और स्थानीय प्रतिनिधियों का कहना है कि रेलवे का यह कदम न केवल शिक्षा के अधिकार का हनन है, बल्कि यह स्थानीय समुदाय की भावनाओं को भी ठेस पहुंचाता है।
डोंगरगढ़ में तनाव की स्थिति
रेलवे के इस फैसले ने डोंगरगढ़ में तनाव की स्थिति पैदा कर दी है। स्कूल बंद करने का निर्णय जहां रेलवे प्रशासन की प्रशिक्षण आवश्यकताओं को पूरा करने का प्रयास हो सकता है, वहीं यह छात्रों के भविष्य और स्थानीय समुदाय की भावनाओं के साथ खिलवाड़ के रूप में देखा जा रहा है।
पालकों और स्थानीय प्रतिनिधियों ने इस "तुगलकी फरमान" के खिलाफ एकजुट होकर उच्च अधिकारियों तक अपनी बात पहुंचाने का निर्णय लिया है। यह मामला अब रेलवे प्रशासन और स्थानीय समुदाय के बीच एक बड़े टकराव की ओर बढ़ता नजर आ रहा है।
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