छत्तीसगढ़ में बांध मरम्मत के नाम पर भ्रष्टाचार का खेल, अवर सचिव का विवादास्पद सर्कुलर, टेंडर रद्द न करने की शर्त

छत्तीसगढ़ के सिंचाई विभाग में बांधों की मरम्मत के लिए जारी टेंडर प्रक्रिया में गंभीर अनियमितताओं का खुलासा हुआ है। टेंडर की शर्तों में ठेकेदारों को संरक्षण देने और भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने वाले नियमों ने विभाग की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर दिए हैं।

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Krishna Kumar Sikander
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Corruption game in the name of dam repair in Chhattisgarh the sootr
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छत्तीसगढ़ के सिंचाई विभाग में बांधों की मरम्मत के लिए जारी टेंडर प्रक्रिया में गंभीर अनियमितताओं का खुलासा हुआ है। टेंडर की शर्तों में ठेकेदारों को संरक्षण देने और भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने वाले नियमों ने विभाग की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर दिए हैं। विशेष रूप से एमपाक्सी मोटर वर्क के टेंडर में अजीबोगरीब शर्तें सामने आई हैं, जिनमें शिकायत के बावजूद ठेका रद्द न करने और कम गुणवत्ता वाले काम के लिए ज्यादा रेट तय करने जैसे प्रावधान शामिल हैं। यह मामला अब राजनीतिक और प्रशासनिक स्तर पर हंगामा मचा रहा है।

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टेंडर में अजीब शर्तें, ठेकेदारों को खुली छूट

प्रदेश के 108 बांधों की मरम्मत के लिए सभी संभागों से टेंडर बुलाए गए हैं। लेकिन नए नियमों में ऐसे बदलाव किए गए हैं, जो ठेकेदारों की मनमानी को बढ़ावा देते हैं। टेंडर की शर्तों के अनुसार, अगर ठेकेदार घटिया सामग्री का उपयोग करता है या काम की गुणवत्ता मानकों के अनुरूप नहीं होती, तब भी शिकायत के बाद उसी ठेकेदार से काम पूरा कराया जाएगा। यह नियम ठेकेदारों को संरक्षण देने और भ्रष्टाचार की संभावनाओं को बढ़ाने का काम कर रहा है।इसके अलावा, टेंडर में रेट निर्धारण में भी गंभीर विसंगतियां सामने आई हैं। उदाहरण के लिए

5 एमएम थिकनेस के काम के लिए 6383.3 रुपये प्रति वर्ग मीटर का रेट तय किया गया है, जबकि विशेषज्ञों के अनुसार 10 एमएम से कम थिकनेस का काम संभव ही नहीं है।

20 एमएम थिकनेस के लिए कोरबा के बांगो बांध में 4730 रुपये प्रति वर्ग मीटर का रेट तय किया गया है, जो महाराष्ट्र में समान काम के लिए तय रेट के बराबर है।

आरंग के राजीव सम्बोदा निस्दा डायवर्सन (आरएलएसएनडी) में 10 एमएम थिकनेस के लिए 796 रुपये प्रति वर्ग मीटर का बीड अमाउंट रखा गया है, जो असामान्य रूप से कम है।
ये रेट निर्धारण न केवल अव्यवहारिक हैं, बल्कि गुणवत्ता से समझौता करने और ठेकेदारों को अनुचित लाभ पहुंचाने की मंशा को दर्शाते हैं।

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क्या है अवर सचिव का विवादास्पद सर्कुलर?

सिंचाई विभाग के अवर सचिव प्रेम सिंह हरेंद्र द्वारा जारी सर्कुलर ने विवाद को और हवा दी है। इस सर्कुलर में कहा गया है कि अगर कोई ठेकेदार अपनी क्षमता या ब्लैकलिस्टेड होने की जानकारी छिपाकर टेंडर हासिल करता है, तब भी उसका टेंडर रद्द नहीं होगा। यह नियम उन ठेकेदारों को भी संरक्षण देता है, जिनके खिलाफ पहले से शिकायतें पड़ी हैं, जिनका अब तक निष्पादन नहीं किया गया है। हालांकि, नई शर्तों में यदि ठेकेदार की जानकारी गलत मिलती है तो उसकी ईएमडी यानी अर्नेस्ट मनी डिपॉजिट जब्त कर जाएगा। हालांकि यह पर्याप्त सजा नहीं माना जा रहा।

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13 साल से लटकी बांगो डैम की मरम्मत

बांगो डैम का मामला इस भ्रष्टाचार का जीवंत उदाहरण है। यह बांध पिछले 13 सालों से बिना मरम्मत के चल रहा है। इसके टेंडर के लिए सात सालों से प्रयास किए जा रहे थे, लेकिन समय पर आदेश जारी न होने से प्रक्रिया अटकी रही। हाल ही में फर्जी रजिस्ट्रेशन के आधार पर टेंडर हासिल करने की शिकायत के बाद इसी साल 27 जून को टेंडर निरस्त करने का आदेश जारी किया गया था। लेकिन इसके विरुद्ध कार्रवाई देर से की गई, जिससे विभाग की नियत प्रश्न खड़ा हो रहा है।

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सरकार का जवाब और जांच के दावे

सिंचाई मंत्री केदार कश्यप ने मामले पर सफाई देते हुए कहा कि बांगो, गरियाबंद और अन्य स्थानों पर बिड रेट में अंतर की शिकायतें मिली हैं, जिनकी जांच चल रही है। उन्होंने यह भी दावा किया कि अगर कोई ठेकेदार गलत जानकारी देता है, तो उसे एक साल के लिए टेंडर प्रक्रिया से बाहर किया जाएगा। वहीं, मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय को भी इस मामले की लिखित शिकायत भेजी गई है, लेकिन अभी तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है।

भ्रष्टाचार की आशंका और जनता का गुस्सा

टेंडर प्रक्रिया में इस तरह की अनियमितताओं ने न केवल विभाग की विश्वसनीयता को ठेस पहुंचाई है, बल्कि जनता में भी आक्रोश पैदा किया है। बांधों की मरम्मत जैसे महत्वपूर्ण कार्य में गुणवत्ता से समझौता न केवल आर्थिक नुकसान का कारण बन सकता है, बल्कि बाढ़ और अन्य आपदाओं के जोखिम को भी बढ़ा सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि रेट निर्धारण में पारदर्शिता और ठेकेदारों पर सख्त कार्रवाई के बिना इस तरह के भ्रष्टाचार को रोकना मुश्किल है।

जनता की निगाहें अगले कदम पर टिकी

छत्तीसगढ़ के सिंचाई विभाग में बांध मरम्मत के टेंडर घोटाले ने एक बार फिर सरकारी तंत्र में पारदर्शिता और जवाबदेही की कमी को उजागर किया है। ठेकेदारों को संरक्षण देने वाले नियम, अव्यवहारिक रेट निर्धारण और देरी से कार्रवाई ने इस मामले को और गंभीर बना दिया है। अब सवाल यह है कि क्या सरकार इस मामले में सख्त कदम उठाएगी या यह घोटाला भी जांच के नाम पर दब जाएगा? जनता की निगाहें अब मुख्यमंत्री और सिंचाई विभाग के अगले कदम पर टिकी हैं।

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