दलित महिला की राष्ट्रपति से गुहार, बस आपसे ही आस

छत्तीसगढ़ के गरियाबंद के छुरा की 70 वर्षीय दलित महिला ओमबाई बघेल को जब हर दरवाजे से हार गई तो अपने खून से महामहिम राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पत्र लिखकर न्याय की मांग की है।

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Krishna Kumar Sikander
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Dalit woman plea to the President hope is only from you the sootr
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छत्तीसगढ़ के गरियाबंद के छुरा की 70 वर्षीय दलित महिला ओमबाई बघेल को जब हर दरवाजे से हार गई तो अपने खून से महामहिम राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पत्र लिखकर न्याय की मांग की है। ओमबाई बघेल ने पत्र में पूर्वजों की समाधि यानी मठ को बलात तोड़े जाने, परिवारजनों के साथ अपमानजनक व्यवहार और न्याय न मिलने की पीड़ा को व्यक्त किया है। ओमबाई का यह पत्र छत्तीसगढ़ ही नहीं, बल्कि पूरे देश के लोकतंत्र को आत्ममंथन के लिए विवश कर देने वाला विषय है।

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कोई नहीं सुनता तो खून देता है गवाही 

ओमबाई बघेल ने कहा कि जब कोई नहीं सुनता, तब खून गवाही देता है। टीबी से जूझ रही ओमबाई ने बताया कि उन्होंने गरियाबंद कलेक्टर, पुलिस अधीक्षक और थाना प्रभारी तक कई बार आवेदन देकर न्याय की गुहार लगाई। इसके बावजूद कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई। उनकी पीड़ा में व्यक्तिगत अपमान की वेदना नहीं है, बल्कि यह उस दलित समाज के आत्मसम्मान की गूंज है, जो सामाजिक अन्याय के विरुद्ध अधिकारों की लड़ाई लड़ रहा है।

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मर्यादा तोड़ी न उग्रता दिखाई

ओमबाई बघेल ने न कानून की मर्यादा को तोड़ी और न उग्रता का सहारा लिया। उन्होंने उस अस्त्र को उठाया, जिसे सदियों से शोषित वर्ग ने न्याय की अंतिम आशा समझा है। उनको संविधान और उसकी सर्वोच्च संस्थाओं पर विश्वास है। उनकी यह सिर्फ़ एक शिकायत नहीं, बल्कि संविधान के प्रति एक पीड़ित नागरिक की आस्था की अंतिम पुकार है।

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आखिरी विश्वास की पुकार

यह घटना एक चेतावनी है कि अगर संवेदनशीलता और न्यायप्रियता की जगह उपेक्षा ने लेली तो लोकतंत्र की नींव कमजोर पड़ जाती है। ओमबाई बघेल का खून से लिखा पत्र मात्र एक महिला की चीख नहीं, यह उस व्यवस्था के प्रति आखिरी विश्वास की पुकार है, जिसे अब जवाब देना ही होगा।

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