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छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले से आदिवासी छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ का गंभीर मामला सामने आया है। आदिम जाति कल्याण विभाग द्वारा संचालित आवासीय आश्रमों में जीर्णोद्धार और स्मार्ट क्लास के नाम पर लाखों रुपये खर्च कर दिए गए, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है।
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10 कंप्यूटर, 8 ही पहुंचे- शिक्षक एक भी नहीं
गदापाल बालक आश्रम में 10 कंप्यूटर लगाए जाने की योजना थी, पर वास्तव में सिर्फ 8 कंप्यूटर ही संस्थान में उपलब्ध हैं। एक प्रोजेक्टर और छात्रों के बैठने के लिए कुर्सियां भी हैं, लेकिन कंप्यूटर शिक्षक की नियुक्ति नहीं हुई। मार्च में गर्मी की छुट्टियों के दौरान कंप्यूटर आने के बाद से ही वे धूल खा रहे हैं, क्योंकि उन्हें चलाने वाला कोई नहीं है।
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स्मार्ट क्लास: केवल नाम, हकीकत शून्य
स्मार्ट क्लास रूम तैयार है, लेकिन उपयोग में नहीं आ रहा। कंप्यूटर पर चादरें ढकी हैं, कुर्सियों पर धूल जमी है, और शिक्षण कार्य बिल्कुल नहीं हो रहा। ऐसे में यह सिर्फ एक कागजी खानापूर्ति बनकर रह गया है।
ठेकेदार को फायदा, बच्चों को धोखा
DMF (District Mineral Foundation) फंड से 19.79 लाख रुपये की लागत से गदापाल आश्रम का भवन उन्नयन कार्य 2024-25 सत्र में स्वीकृत किया गया था। लेकिन निरीक्षण में पाया गया कि सिर्फ टीन शेड बदली गई, दीवारों पर पुताई कर दी गई और पुराने दरवाजे-खिड़कियां जस की तस छोड़ दी गईं।
प्रशासन का जवाब: 'मेरे कार्यकाल का नहीं'
सहायक आयुक्त राजीव कुमार नाग ने मामले पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “मैं हाल ही में ज्वाइन हुआ हूं। मेरे कार्यकाल का यह कार्य नहीं है, फिर भी भवन का निरीक्षण कर खामियों को सुधारा जाएगा।”
Dantewada News
आश्रम में 79 बच्चे — शिक्षा के नाम पर मज़ाक
गदापाल आश्रम में 79 छात्र रहते हैं। वे प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा ले रहे हैं। लेकिन जिस आधुनिक शिक्षा और तकनीकी सशक्तिकरण के लिए यह पूरी योजना बनाई गई थी, वह कागजों में ही सिमट कर रह गई है।
स्मार्ट क्लास के नाम पर धोखाधड़ी
दंतेवाड़ा स्मार्ट क्लास स्कैम क्या है?1. बिना शिक्षक के स्मार्ट क्लास 2. जीर्णोद्धार के नाम पर खानापूर्ति 3. धूल फांक रहे कंप्यूटर 4. प्रशासनिक लापरवाही उजागर 5. आदिवासी बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ |
Dantewada Smart Class Scam
आदिवासी शिक्षा के नाम पर दिखावटी योजनाएं
लगभग 10-11 लाख रुपये की लागत से गदापाल में सिर्फ कंप्यूटर सप्लाई के नाम पर खर्च हुआ है, लेकिन बिना शिक्षक और संचालन के यह राशि शिक्षा में सुधार की बजाय सिर्फ आंकड़ों में दिखावा बन कर रह गई है।
दंतेवाड़ा के इस प्रकरण से यह साफ हो जाता है कि आदिवासी विकास विभाग की योजनाएं जमीनी क्रियान्वयन में बुरी तरह विफल हो रही हैं। शिक्षा को डिजिटल बनाने की पहल बिना संसाधन और कर्मचारियों के अधूरी है। यदि ऐसे ही चलता रहा तो यह योजनाएं बच्चों के लिए लाभ की बजाय लापरवाही का प्रतीक बन जाएंगी।
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