रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण छत्तीसगढ़ के किसानों को डीएपी (डाई-अमोनियम फॉस्फेट) खाद की भारी कमी का सामना करना पड़ रहा है। धान की खेती में डीएपी का उपयोग पिछले कुछ वर्षों में तेजी से बढ़ा है, लेकिन अब इसकी आपूर्ति मांग के मुकाबले नाकाफी है। इस खरीफ सीजन में किसानों को केवल 10% डीएपी ही मिल पाया है, जिससे वे वैकल्पिक उर्वरकों की तलाश में जुट गए हैं।
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भारत रूस, जॉर्डन और इजराइल पर निर्भर
भारत डीएपी के लिए रूस, जॉर्डन और इजराइल जैसे देशों पर निर्भर है, जहां से आयात प्रभावित होने के कारण आपूर्ति बाधित हुई है। केंद्र सरकार ने भी राज्यों को डीएपी आवंटन में कटौती की है, जिसका असर खेती पर दिख रहा है। छत्तीसगढ़, जिसे धान का कटोरा कहा जाता है, में किसान धान की पैदावार बढ़ाने के लिए डीएपी पर निर्भर हैं। यूरिया के बाद डीएपी की मांग सबसे ज्यादा है।
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छत्तीसगढ़ में डीएपी की स्थिति
खरीफ सीजन के लिए छत्तीसगढ़ को 2.35 लाख टन डीएपी का लक्ष्य रखा गया था, लेकिन अब तक केवल 44,626 टन का भंडारण हो सका है, जिसमें से किसानों को मात्र 17,545 टन ही मिला है। पिछले साल 30 सितंबर तक 2,15,085 टन डीएपी वितरित किया गया था, जो इस बार की स्थिति से कहीं बेहतर था।
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बेमेतरा में डीएपी की भारी कमी
बेमेतरा जिले में 63,370 मीट्रिक टन खाद की मांग के मुकाबले केवल 34,216 क्विंटल खाद उपलब्ध हो पाया है। जिले की 102 सहकारी समितियों में से 55 में डीएपी का स्टॉक पूरी तरह खत्म है। किसानों को अन्य उर्वरक दिए जा रहे हैं, लेकिन वे इसका विरोध कर रहे हैं।
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किसानों को वैकल्पिक सलाह
डीएपी की कमी से निपटने के लिए राज्य सरकार ने किसानों को वैकल्पिक उर्वरकों की सलाह देना शुरू किया है। कृषि विभाग ने पम्पलेट्स के जरिए धान और अन्य फसलों के लिए डीएपी के विकल्प सुझाए हैं, ताकि किसान खेती जारी रख सकें। किसानों का कहना है कि डीएपी की कमी उनकी फसल और आजीविका के लिए बड़ा खतरा है। सरकार से शीघ्र समाधान की मांग उठ रही है।
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