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छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में एक महिला की मां द्वारा दायर की गई बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने महत्वपूर्ण निर्णय सुनाया। याचिका में महिला को अवैध रूप से नशीली दवाओं के प्रभाव में रखने और शोषण करने का आरोप लगाया गया था। लेकिन कोर्ट में पेश होकर महिला ने अपनी मर्जी से नए व्यक्ति के साथ रहने की बात स्वीकार की, जिसके बाद कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी। हालांकि कोर्ट ने महिला के नशामुक्ति के लिए पुनर्वास एवं इलाज के निर्देश भी जारी किए।
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नशे और शोषण में फंसी है बेटी
याचिकाकर्ता महिला की मां ने हाईकोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर करते हुए आरोप लगाया कि उसकी बालिग बेटी को दो व्यक्तियों ने उसकी सहमति के बिना जबरन अपने पास रखा है। उन्होंने दावा किया कि आरोपी नशे का कारोबार करते हैं और उन्होंने उनकी बेटी को नशे की लत लगा दी है। साथ ही शारीरिक और यौन शोषण भी किया गया है।
पुलिस पर भी लापरवाही के आरोप
मां ने सरगुजा जिले के संबंधित थाने की भूमिका पर भी सवाल उठाए और कहा कि पुलिस ने शिकायतों पर कोई प्रभावी कार्रवाई नहीं की। उन्होंने मांग की कि पूरे मामले की निष्पक्ष जांच किसी प्रथम श्रेणी के पुलिस अधिकारी के नेतृत्व में स्वतंत्र जांच एजेंसी से करवाई जाए।
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महिला ने कोर्ट में कही ये बात
मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने जब महिला को पेश कराया गया, तो उसने स्पष्ट रूप से बताया कि वह अपनी मर्जी से उस व्यक्ति के साथ रह रही है और उस पर किसी प्रकार का दबाव नहीं है। चूंकि महिला बालिग है, इसलिए कोर्ट ने उसे अपनी स्वतंत्र इच्छा से जीवन जीने का अधिकार मानते हुए याचिका खारिज कर दी।
कोर्ट की सख्ती
हालांकि, कोर्ट ने यह भी माना कि महिला संभवतः नशे के प्रभाव में है। इसलिए न्यायालय ने यह निर्देश दिए कि संबंधित विभाग उसे पुनर्वास केंद्र में ले जाकर उचित चिकित्सा और काउंसलिंग उपलब्ध कराए, ताकि वह नशामुक्त हो सके।
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बच्चा पिता के संरक्षण में
राज्य शासन की ओर से प्रस्तुत उत्तर में बताया गया कि महिला और उसके पूर्व पति के बीच तलाक की डिक्री पारित की जा चुकी है। कोर्ट के आदेशानुसार, उनका चार साल का बेटा पिता के संरक्षण में है और महिला को समय-समय पर बच्चे से मिलने की अनुमति दी गई है।
कोर्ट का निर्णय
मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति बीडी गुरु की युगल पीठ ने स्पष्ट किया कि महिला बालिग है और उसने अपनी मर्जी से जीवनसाथी चुना है। लिहाजा अदालत हस्तक्षेप नहीं कर सकती। लेकिन महिला के संभावित नशे की लत को देखते हुए, पुनर्वास और नशामुक्ति हेतु इलाज अनिवार्य बताया।
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