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छत्तीसगढ़ में मेडिकल कॉलेज मान्यता घोटाले के बाद अब एक और बड़ा शिक्षा घोटाला सामने आया है, जिसमें रावतपुरा सरकार एजुकेशनल इंस्टीट्यूट पर गंभीर आरोप लगे हैं। इस मामले में जल संसाधन, लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी (पीएचई), लोक निर्माण विभाग (लोनिवि), और नगरीय प्रशासन विभाग के लगभग 60 सरकारी इंजीनियरों ने बिना नियमित कक्षाएं अटेंड किए एमटेक की डिग्री हासिल कर ली है।
यह खुलासा तब हुआ, जब इनमें से कुछ इंजीनियरों ने डिग्री के आधार पर वेतन वृद्धि और प्रमोशन के लिए आवेदन किया। अब इस मामले की जांच की मांग जोर पकड़ रही है, और सीबीआई से इसकी गहन पड़ताल की अपील की गई है।
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डिग्री का खेल, बिना पढ़ाई के एमटेक
जानकारी के अनुसार, रावतपुरा सरकार एजुकेशनल इंस्टीट्यूट जैसे कुछ निजी विश्वविद्यालय मोटी फीस के बदले बिना नियमित कक्षाओं के डिग्रियां प्रदान कर रहे हैं। इन विश्वविद्यालयों का मकसद शिक्षा से ज्यादा व्यावसायिक लाभ कमाना बताया जा रहा है।
इस सुविधा का फायदा उठाते हुए छत्तीसगढ़ के विभिन्न सरकारी विभागों में कार्यरत इंजीनियरों ने एमटेक की स्नातकोत्तर डिग्री हासिल की, जबकि उन्होंने न तो अध्ययन अवकाश लिया और न ही नियमित रूप से कक्षाएं अटेंड कीं। ये इंजीनियर, जो पहले केवल बीटेक या पॉलिटेक्निक डिप्लोमा धारक थे, अपने दफ्तरों और फील्ड में काम करते हुए भी कथित तौर पर चार सेमेस्टर का एमटेक कोर्स पूरा करने में सफल रहे।
रावतपुरा प्रबंधन ने मोटी फीस के बदले उपस्थिति नियमों की अनदेखी की और इन इंजीनियरों को आसानी से डिग्री प्रदान कर दी। इस दौरान इंजीनियरों को उनकी पूरी तनख्वाह भी मिलती रही, जिसने इस मामले को और संदिग्ध बना दिया।
कैसे उजागर हुआ मामला?
यह घोटाला तब सामने आया, जब कुछ इंजीनियरों ने अपनी एमटेक डिग्री के आधार पर वेतन वृद्धि के लिए विभाग में आवेदन किया। हैरानी की बात यह है कि इनमें से कई इंजीनियरों को पहले ही दो-दो वेतन वृद्धियां मिल चुकी थीं।
अन्य इंजीनियरों के आवेदनों और उनके दावों की जांच के दौरान इस अनियमितता का खुलासा हुआ। इसके बाद आरटीआई एक्टिविस्ट संजय सिंह ठाकुर ने इस मामले को उठाया और कुलाधिपति को विभागवार इंजीनियरों की सूची सौंपकर उनकी डिग्रियों की वैधता की जांच की मांग की।
सीबीआई जांच और वेतन वसूली की मांग
संजय सिंह ठाकुर ने इस मामले को गंभीर बताते हुए कहा कि सामान्य छात्रों के लिए स्कूल-कॉलेजों में 75% उपस्थिति अनिवार्य होती है, और इसका उल्लंघन करने पर उन्हें सजा भुगतनी पड़ती है। लेकिन इस मामले में नियमों को ताक पर रखकर डिग्रियां बांटी गईं।
उन्होंने कुलाधिपति से मांग की है कि इन इंजीनियरों की डिग्रियों की जांच की जाए, दी गई वेतन वृद्धियों पर रोक लगाई जाए, और अनुचित लाभ लेने वालों से वसूली की जाए। इसके अलावा, उन्होंने सीबीआई डायरेक्टर को ईमेल के जरिए रावतपुरा सरकार एजुकेशनल इंस्टीट्यूट के सभी कोर्सों और उनमें हो रही अनियमितताओं की जांच का अनुरोध किया है।
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मंत्रालय में भी डिग्री का खेल
यह मामला केवल इंजीनियरों तक सीमित नहीं है। छत्तीसगढ़ मंत्रालय के कुछ कर्मचारियों ने भी प्रमोशन के लिए निजी विश्वविद्यालयों से स्नातक डिग्रियां हासिल की हैं। राज्य गठन के समय कई अनुभाग अधिकारी और अवर सचिव केवल मेट्रिक पास थे, लेकिन पिछली कांग्रेस सरकार द्वारा न्यूनतम योग्यता स्नातक करने के बाद इन कर्मचारियों ने त्वरित डिग्रियां प्राप्त कीं। इन मामलों ने भी निजी विश्वविद्यालयों की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए हैं।
जांच की मांग और प्रशासन की चुप्पी
इस मामले ने छत्तीसगढ़ में शिक्षा व्यवस्था और सरकारी विभागों में डिग्री के दुरुपयोग की गंभीर समस्या को उजागर किया है। आरटीआई एक्टिविस्ट और अन्य सामाजिक संगठनों ने इस घोटाले की निष्पक्ष जांच की मांग की है। हालांकि, अभी तक प्रशासन की ओर से इस मामले में कोई ठोस कार्रवाई या बयान सामने नहीं आया है। रावतपुरा सरकार एजुकेशनल इंस्टीट्यूट ने भी इन आरोपों पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है।
सामाजिक और प्रशासनिक प्रभाव
यह मामला न केवल शिक्षा व्यवस्था की विश्वसनीयता पर सवाल उठाता है, बल्कि सरकारी विभागों में योग्यता और पारदर्शिता को लेकर भी चिंता पैदा करता है। विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसी अनियमितताएं न केवल शिक्षा के स्तर को प्रभावित करती हैं, बल्कि उन छात्रों के साथ अन्याय करती हैं जो मेहनत और नियमित अध्ययन के जरिए डिग्रियां हासिल करते हैं।
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