छत्तीसगढ़ में मराठी भाषियों को अल्पसंख्यक दर्जा देने की मांग,हाईकोर्ट ने सरकार को दिया ये निर्देश

छत्तीसगढ़ में मराठी भाषी समुदाय को भाषाई अल्पसंख्यक का दर्जा देने की मांग को लेकर दाखिल जनहित याचिका (PIL) पर छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने बड़ा निर्देश दिया है।

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Harrison Masih
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Demand to give minority status Marathi speakers Chhattisgarh High Court the sootr
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छत्तीसगढ़ में मराठी भाषी समुदाय को भाषाई अल्पसंख्यक का दर्जा देने की मांग को लेकर दाखिल जनहित याचिका (PIL) पर छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने बड़ा निर्देश दिया है। हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को याचिकाकर्ता द्वारा दिए गए अभ्यावेदन पर विचार करते हुए तीन माह के भीतर निर्णय लेने के आदेश दिए हैं।

इस जनहित याचिका की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति बीडी गुरु की डिवीजन बेंच में हुई।

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याचिकाकर्ता ने खुद की पैरवी

यह याचिका बिलासपुर के तिलक नगर निवासी डॉ. सचिन काले ने दाखिल की थी। उन्होंने अपने मामले की स्वयं पैरवी करते हुए यह तर्क रखा कि जिस प्रकार अन्य राज्यों ने मराठी भाषा को भाषाई अल्पसंख्यक का दर्जा दिया है, उसी तरह छत्तीसगढ़ में भी मराठी भाषी समुदाय को यह दर्जा मिलना चाहिए।

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संविधान और सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला

याचिकाकर्ता ने संविधान के अनुच्छेद 29 और 30 का हवाला देते हुए बताया कि ये अनुच्छेद भाषाई और धार्मिक अल्पसंख्यकों को अपने संस्कृति, भाषा और शिक्षा संस्थानों की सुरक्षा का अधिकार देते हैं।

इसके अलावा याचिका में सुप्रीम कोर्ट के ‘टीएमए पाई फाउंडेशन बनाम कर्नाटक राज्य’ के फैसले का उल्लेख करते हुए कहा गया कि अल्पसंख्यक दर्जे का निर्धारण राज्य स्तर पर होना चाहिए, न कि पूरे देश के आधार पर।

अन्य राज्यों का उदाहरण

याचिकाकर्ता ने यह भी बताया कि:

कर्नाटक ने उर्दू, मराठी, हिंदी और तुलु भाषाओं को अल्पसंख्यक घोषित किया है। तमिलनाडु ने तेलुगु, कन्नड़, मलयालम और उर्दू को अल्पसंख्यक भाषाओं की मान्यता दी है। मध्य प्रदेश ने उर्दू, मराठी और सिंधी को राज्य में भाषाई अल्पसंख्यक का दर्जा दिया है। महाराष्ट्र ने धार्मिक अल्पसंख्यक के रूप में यहूदी समुदाय को अधिसूचित किया है।

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हाईकोर्ट ने क्या क्या कहा?

सभी पक्षों को सुनने के बाद छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि वह याचिकाकर्ता के अभ्यावेदन पर विचार करे और इस पर तीन माह के भीतर निर्णय ले।

यह आदेश इस बात का संकेत है कि राज्य स्तर पर भाषाई पहचान और अधिकारों को लेकर न्यायपालिका गंभीरता से विचार कर रही है।

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मुद्दे का व्यापक महत्व

यह मामला सिर्फ मराठी भाषियों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक वृहद भाषाई अधिकारों का सवाल है, जो विभिन्न भाषाओं के बोलने वाले समुदायों को उनकी संवैधानिक मान्यता दिलाने से जुड़ा है।

यदि राज्य सरकार मराठी भाषा को भाषाई अल्पसंख्यक मान्यता देती है, तो इससे मराठी स्कूल, सांस्कृतिक संस्थाएं और छात्रवृत्तियों जैसी सुविधाएं मिलने का रास्ता खुल सकता है।

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