तेंदूपत्ता संग्रहण की बढ़ी दरों के बावजूद संग्राहकों और समितियों को नुकसान

छत्तीसगढ़ में तेंदूपत्ता, जिसे 'हरा सोना' भी कहा जाता है, ग्रामीण और आदिवासी समुदायों के लिए आजीविका का महत्वपूर्ण स्रोत है। यह लघु वनोपज न केवल ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करती है, बल्कि लाखों परिवारों को अतिरिक्त आय का अवसर भी देती है।

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Krishna Kumar Sikander
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Despite increased rates of tendu leaf collection, collectors and committees are facing losses the sootr
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छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में तेंदूपत्ता, जिसे 'हरा सोना' भी कहा जाता है, ग्रामीण और आदिवासी समुदायों के लिए आजीविका का महत्वपूर्ण स्रोत है। यह लघु वनोपज न केवल ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करती है, बल्कि लाखों परिवारों को अतिरिक्त आय का अवसर भी देती है। इस वर्ष सरकार ने तेंदूपत्ता की खरीदी दर को बढ़ाकर 5,500 रुपये प्रति मानक बोरा कर दिया, जो पहले 4,000 रुपये था। इस बढ़ोतरी से संग्राहकों और वन समितियों को लाभ होने की उम्मीद थी, लेकिन समय से पहले बारिश और अन्य प्रशासनिक कमियों ने इन उम्मीदों पर पानी फेर दिया। नतीजतन, न तो संग्राहकों को अपेक्षित लाभ मिला और न ही सरकारी समितियों को।

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बढ़ी दरों का सपना और हकीकत

छत्तीसगढ़ सरकार ने 2024 में तेंदूपत्ता की खरीदी दर को 4,000 रुपये से बढ़ाकर 5,500 रुपये प्रति मानक बोरा करने की घोषणा की थी। मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने इसे आदिवासी और ग्रामीण परिवारों की आर्थिक मजबूती के लिए एक बड़ा कदम बताया था। इस बढ़ोतरी से संग्राहकों में उत्साह था, क्योंकि इससे उनकी आय में 1,500 रुपये प्रति बोरा की वृद्धि होने की उम्मीद थी। सरगुजा, कोरबा और बीजापुर जैसे वन क्षेत्रों में तेंदूपत्ता संग्रहण से जुड़े लाखों परिवारों को इस निर्णय से आत्मनिर्भरता की नई उम्मीद जगी थी। हालांकि, इस वर्ष असमय बारिश, तूफान और ओलावृष्टि ने तेंदूपत्ता की फसल को भारी नुकसान पहुंचाया। मई और जून के महीनों में, जब तेंदूपत्ता संग्रहण अपने चरम पर होता है, समय से पहले बारिश के कारण पत्ते जल्दी झड़ गए। कई पत्ते गीले होने के कारण सूख नहीं पाए, जिससे उनकी गुणवत्ता प्रभावित हुई। नतीजतन, संग्राहकों को कम मात्रा में पत्ते इकट्ठा करने पड़े, और जो पत्ते इकट्ठा हुए, उनमें से कई को गुणवत्ता के आधार पर खारिज कर दिया गया।

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संग्राहकों की चुनौतियां

समय से पहले बारिश और तूफान ने तेंदूपत्तों को समय से पहले गिरा दिया। गीले पत्तों को सुखाने में असमर्थता के कारण कई संग्राहकों को अपनी मेहनत का पूरा मूल्य नहीं मिल पाया। बीजापुर जिले में, जहां 1,21,600 मानक बोरा संग्रहण का लक्ष्य था, केवल 12,226.638 बोरा ही संग्रहित हो पाया। कई संग्राहकों ने शिकायत की कि फड़ मुंशियों और वन विभाग के अधिकारियों ने गुणवत्ता के नाम पर उनके पत्तों को अस्वीकार कर दिया। उत्तर प्रदेश के चंदौली जिले में संग्राहक ममता ने बताया कि फड़ मुंशी कम गड्डियों का हिसाब लगाकर उनकी मजदूरी में कटौती करते हैं। इसके अलावा, पिछले वर्षों का बकाया भुगतान भी कई संग्राहकों को नहीं मिला है। कुछ क्षेत्रों में, जैसे कि चित्रकूट, संग्राहकों ने तेंदूपत्तों को फड़ों में बेचने के बजाय घरों में रख लिया, ताकि तस्करों को अधिक दामों पर बेच सकें। इससे सरकारी खरीदी प्रक्रिया प्रभावित हुई और वन विभाग को नुकसान उठाना पड़ा।

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सरकारी समितियों की स्थिति

तेंदूपत्ता संग्रहण का कार्य वन विभाग और प्राथमिक लघु वनोपज सहकारी समितियों के माध्यम से किया जाता है। इस वर्ष बस्तर संभाग के चार जिलों—बस्तर, दंतेवाड़ा, बीजापुर और सुकमा में 2,70,600 मानक बोरा संग्रहण का लक्ष्य रखा गया था, लेकिन केवल 46% लक्ष्य ही हासिल हो पाया। कांग्रेस नेता दीपक बैज ने इसे सरकार की अकर्मण्यता और आदिवासी विरोधी नीतियों का परिणाम बताया। उनका आरोप है कि सरकार ने वन प्रबंधन समितियों को हटाकर सीधे वन विभाग के माध्यम से खरीदी शुरू की, जिससे प्रक्रिया में पारदर्शिता और दक्षता कम हुई। इसके अलावा, कई समितियों को गुणवत्ता की कमी और कम संग्रहण के कारण नुकसान उठाना पड़ा। कोरबा वन मंडल में कुछ समितियों ने उच्च गुणवत्ता के तेंदूपत्तों की नीलामी से 11,000 रुपये प्रति बोरा तक की दर हासिल की, लेकिन यह लाभ सभी समितियों तक नहीं पहुंच पाया। समय से पहले बारिश ने पत्तों की गुणवत्ता को प्रभावित किया, जिससे नीलामी में अपेक्षित मूल्य नहीं मिल सका।

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आर्थिक और सामाजिक प्रभाव

तेंदूपत्ता संग्रहण से छत्तीसगढ़ में 10 लाख से अधिक परिवारों को आय प्राप्त होती है। इस वर्ष 10.84 लाख मानक बोरा तेंदूपत्ता संग्रहित हुआ, जिसका मूल्य लगभग 596 करोड़ रुपये है। यह राशि डीबीटी के माध्यम से संग्राहकों के खातों में जमा की जाएगी। हालांकि, लक्ष्य से कम संग्रहण और गुणवत्ता की समस्याओं के कारण कई संग्राहकों को अपेक्षित लाभ नहीं मिला।बस्तर संभाग में संग्राहकों को पिछले वर्ष 155 करोड़ रुपये का पारिश्रमिक मिला था, लेकिन इस वर्ष यह आंकड़ा आधे से भी कम रहने की संभावना है। इससे आदिवासी परिवारों की आर्थिक स्थिति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। संग्राहक फूलेश्वरी, जो सरगुजा जिले की हैं, ने बताया कि तेंदूपत्ता संग्रहण से उनकी बच्चों की पढ़ाई और अन्य जरूरतें पूरी होती थीं, लेकिन इस वर्ष कम संग्रहण के कारण उनकी आय में भारी कमी आई है।

सरकार और वन विभाग की प्रतिक्रिया

सरकार ने संग्राहकों को नुकसान से बचाने के लिए बीमा पॉलिसी के तहत दावे प्रस्तुत किए हैं। बीजापुर जिले में वनोपज सहकारी यूनियन ने स्पष्ट किया कि प्राकृतिक आपदा से हुए नुकसान का बोझ संग्राहकों पर नहीं डाला जाएगा। इसके अलावा, सरकार ने सामाजिक सुरक्षा योजनाओं और चरण पादुका योजना को फिर से शुरू करने की घोषणा की है, ताकि संग्राहकों को अतिरिक्त सहायता मिल सके। हालांकि, संग्राहकों और विपक्षी दलों का कहना है कि प्रशासनिक स्तर पर पारदर्शिता और जवाबदेही की कमी के कारण ये योजनाएं पूरी तरह प्रभावी नहीं हो पा रही हैं। फड़ मुंशियों की मनमानी और भुगतान में देरी जैसी शिकायतें आम हैं।

उठाए जा सकते हैं ये कदम

तेंदूपत्ता संग्रहण को और प्रभावी बनाने के लिए कुछ कदम उठाए जा सकते हैं:
मौसम की भविष्यवाणी और तैयारी: संग्रहण अवधि से पहले मौसम की सटीक भविष्यवाणी और इसके आधार पर संग्रहण की समयावधि निर्धारित की जानी चाहिए।फड़ मुंशियों की जवाबदेही सुनिश्चित करने और गुणवत्ता जांच में पारदर्शिता लाने के लिए तकनीकी समाधान अपनाए जा सकते हैं।तस्करी को रोकने के लिए वन विभाग को सख्त निगरानी और दंडात्मक कार्रवाई करनी होगी।पत्तों की गुणवत्ता बनाए रखने और संग्रहण प्रक्रिया को बेहतर बनाने के लिए संग्राहकों को प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए।

आर्थिक सशक्तिकरण का महत्वपूर्ण साधन

तेंदूपत्ता संग्रहण ग्रामीण और आदिवासी समुदायों के लिए आर्थिक सशक्तिकरण का एक महत्वपूर्ण साधन है, लेकिन इस वर्ष समय से पहले बारिश और प्रशासनिक कमियों ने इस अवसर को चुनौती में बदल दिया। बढ़ी हुई दरों के बावजूद संग्राहकों और समितियों को अपेक्षित लाभ नहीं मिल सका। सरकार को इस दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे, ताकि संग्राहकों की मेहनत का उचित मूल्य सुनिश्चित हो और वन संसाधनों का संरक्षण भी हो सके।

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