कई साल बीतने पर भी कॉलेजों की बिल्डिंग नहीं बन पाई, छात्र-छात्राएं स्कूल में बैठ कर रहे पढ़ाई

छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले में सात ऐसे सरकारी कॉलेज हैं, जिनके छात्र-छात्राओं की लाइफ पिछले चार साल से स्कूल में ही अटकी हुई है। सरकार ने कॉलेज तो खोल दिए लेकिन इनकी बिल्डिंग तक नहीं बनी।

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Pravesh Shukla
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भिलाई। स्कूल से निकलकर कॉलेज की पढ़ाई युवाओं का सपना होगी है। नए कॉलेज का माहौल स्कूल लाइफ के बिलकुल भी जुदा होता है। कॉलेज की एक्टिविटी और मौज-मस्ती के बीच पढ़ाई का निराला अंदाज जीवन के लिए अहम पल होते हैं। ये ऐसे पल होते हैं जिन्हें विद्यार्थी हमेशा सहेज कर रखते हैं। 

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स्कूलों की बिल्डिंग में लग रहे सात कॉलेज

दुर्ग जिले में सात ऐसे सरकारी कॉलेज हैं, जिनके छात्र-छात्राओं की लाइफ पिछले चार साल से स्कूल में ही अटकी हुई है। सरकार ने कॉलेज तो खोल दिए लेकिन इनकी बिल्डिंग और सुविधाओं के बारे में अभी तक सुध नहीं ली। इसका नतीजा यह हुआ कि, इन कॉलेजों के छात्र-छात्राओं को मजबूरन स्कूल की बिल्डिंग में अपनी पढ़ाई करनी पड़ रही है।

 

अब तक नसीब न हुई बिल्डिंग

इन कॉलेजों में पढ़ने वाले कई छात्र-छात्राएं तो अपनी डिग्री लेकर भी जा चुके हैं, लेकिन इन कॉलेजों को अब तक बिल्डिंग तक नसीब नहीं हुई है।
पाटन विधानसभा के रानीतराई इलाके में साल 2022 में सरकारी कॉलेज खोला गया था। इस तरह बसीन, पेंड्रावन, नाठपुरा में भी बिना बिल्डिंग बनाए ही कॉलेज खोल दिए गए। हैरानी की बात तो यह है कि ये कॉलेज पिछले चार साल से संचालित भी हो रहे हैं। हर कॉलेज में बीए, बीकॉम, बीएससी की 50-50 सीटें हैं।  

 

कॉलेज के लिए आरक्षित कमरे

सरकारी स्कूल की बिल्डिंग में कॉलेज लगने की वजह इन स्कूलों के कुछ कमरों को कॉलेज के लिए आरक्षित कर दिया गया। हर स्कूल के पांच से सात कमरों के कॉलेज के छात्र-छात्राओं की ओर से इस्तेमाल किया जा रहा है। जिस वजह से स्कूल में पढ़ाई कर रहे विद्यार्थियों को बैठने के लिए तक मशक्कत करनी पड़ रही है। आलम यह है कि स्कूल के छात्र-छात्राओं के लैब में बैठकर पढ़ाई करनी पड़ रही है।

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कई बैच हुए पास आउट

कुम्हारी कॉलेज सरकारी स्कूल की बिल्डिंग में संचालित हो रहा है। साल 2022 में इस कॉलेज में फस्ट ईयर के छात्र-छात्राओं ने दाखिला लिया था। पिछले साल उन छात्रों का एक बैच पढ़ाई करके निकल चुका है। लेकिन कॉलेज को अभी भी बिल्डिंग की तलाश है। रिसाली कॉलेज शासकीय उच्चतर माध्यमिक शाला मरोदा टैंक की बिल्डिंग से संचालित हो रहा है। यह कॉलेज भी साल 2022 में खुला था। पिछले साल यहां से भी स्नातक का एक बैच पढ़कर निकल चुका है। लेकिन चार साल में कॉलेज को बिल्डिंग नसीब नहीं हुई है।

 

कब मिलेगी बिल्डिंग

कुछ यही हाल खुर्सीपार नवीन महाविद्यालय का है। इस कॉलेज को तो साल 2014 में खोला गया था। इसे खुले 11 साल का वक्त बीत गया, बावजूद इसके यह कॉलेज अभी भी टकटकी लगाए बिल्डिंग का इंतजार कर रहा है। कमोवेश ऐसा ही हाल बाकी चार कॉलेजों का भी है।

बिल्डिंग के लिए मिले 65 करोड़

जिस वक्त सरकार ने इन कॉलेजों को खोलने का फैसला लिया था। उसी वक्त बिल्डिंग बनाने के लिए हर कॉलेज को चार करोड़ 65 लाख रुपए आवंटित किए गए थे।  कुल मिलाकर भवन निर्माण के लिए 37 करोड़  की राशि दी गई। लेकिन इनमें अभी तक सिर्फ निकुम कॉलेज का भवन बन पाया। बाकी सात कॉलेजो को बिल्डिंग का इंतजार है।

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कॉलेजों का नैक मुल्यांकन जरूरी

कॉलेजों का नैक मुल्यांकन करना जरूरी है। मुल्यांकन के लिए नैक की टीम भी बेंगलुरु से हर साल आती है। टीम मुल्यांकन तभी करती है जब कॉलेज कॉलेज की अपनी बिल्डिंग हो। बिल्डिंग नहीं होने की वजह से मुल्यांकन नहीं होता है। मुल्यांकन होने के बाद टीम की रिपोर्ट के आधार पर ही कॉलेज को विकसित करने के लिए फंड मिलता है।

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खड़े हुए कई सवाल

ऐसे में सवाल यह उठता है, कि जब बिल्डिंग निर्माण के लिए 4 करोड़ 65 लाख रुपए का फंड दिया गया था, तो अब तक कॉलेज भवन का निर्माण क्यों नहीं हो पाया। आखिर यह फंड गया तो गया कहां। 

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