Janjgir-Champa Shivrinarayan Temple : छत्तीसगढ़ का भगवान राम से ऐतिहासिक और सांस्कृतिक जुड़ाव बेहद गहरा है। अपने वनवास काल में भगवान राम ने 12 वर्ष छत्तीसगढ़ के जंगलों में बिताए थे। इस दौरान उन्होंने जांजगीर-चांपा जिले में माता शबरी से मुलाकात की थी, जहां उन्होंने शबरी के प्रेम से दिए जूठे बेर खाए थे।
यह स्थान "शिवरीनारायण" के रूप में प्रसिद्ध है, जो तीन नदियों के त्रिवेणी संगम पर स्थित है। यहां स्थित वट वृक्ष, जिसे "अक्षय वट वृक्ष" कहा जाता है, पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, शबरी ने इसी वृक्ष के पत्तों में रखकर बेर भगवान राम को परोसे थे।
आज भी लगते हैं बेर के भोग
आज भी इस मंदिर में भगवान राम और लक्ष्मण को बेर का भोग लगाया जाता है, और मेले के समय में भगवान का विशेष श्रृंगार होता है। भक्तगण रत्न जड़ित मुकुट और स्वर्ण आभूषणों से भगवान का गर्भगृह सजाते हैं। शिवरीनारायण का यह पवित्र स्थल न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह छत्तीसगढ़ की समृद्ध संस्कृति और भगवान राम के साथ इसके ऐतिहासिक संबंधों को जीवंत बनाए रखता है। इस मंदिर और क्षेत्र की महिमा पीढ़ी दर पीढ़ी छत्तीसगढ़ के लोगों के दिलों में बसी है, जो उन्हें अपनी सांस्कृतिक धरोहर से जोड़ती है।
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कौन हैं माता शबरी
प्रभु राम के करोड़ों भक्तों में से माता शबरी का वर्णन सबसे पहले होता है। माता शबरी मातंग ऋषि के आश्रम में रहतीं थीं। माता शबरी भील समुदाय और शबर जाति से थीं। ऐसा कहा जाता है कि उनका विवाह एक भील व्यक्ति से तय किया गया था, लेकिन विवाह की तैयारी में सैकड़ों जानवरों की बलि देखकर वे अपना विवाह छोड़कर चली गई थीं।
शादी के भाग जाने के कारण समुदाय के लोगों ने माता का बहिष्कार कर दिया था। जिसके बाद ऋषि मतंग ने उन्हें अपने आश्रम में शरण दिया। माता शबरी ऋषि मतंग के साथ आश्रम में ही प्रभु राम की भक्ति में लीन रहती थी। जब ऋषि मतंग अंतिम सांसे ले रहे थे, तब उन्होंने माता शबरी से कहा था कि - तुम प्रभु राम की प्रतीक्षा करना, वे भाई लक्ष्मण के साथ दर्शन देने आएंगे।
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इतना कहकर मतंग ऋषि ने अपने प्राण त्याग दिए। ऋषि मतंग की मृत्यु के बाद माता शबरी ने कई सालों तक भगवान राम का इंतजार किया। प्रभु राम की प्रतीक्षा में माता रोज अपनी कुटिया को फूलों से सजाती थी। प्रभु राम को भोग लगाने के लिए माता रोज पके हुए बेर बिछकर भोग के लिए रखती थी। माता शबरी के इस दिनचर्या को देखकर ग्रामीण हंसते थे और उन्हें पागल कहते थे।
कई सालों के इंतजार के बाद भगवान राम भाई लक्ष्मण के साथ माता शबरी के कुटिया आए। जब प्रभु राम छत्तीसगढ़ के दंडकारण्य में भ्रमण, तो उन्हें माता शबरी के बारे में जानकारी मिली। इसके बाद प्रभु राम माता शबरी को दर्शन देने उनके कुटिया गए।
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