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छत्तीसगढ़ के नवगठित जिले मोहला-मानपुर-अंबागढ़ चौकी में एक गंभीर और संवेदनशील मामला उजागर हुआ है, जिसमें जिला पंचायत अध्यक्ष नम्रता सिंह पर फर्जी अनुसूचित जनजाति (ST) प्रमाण पत्र का इस्तेमाल कर आरक्षित सीट से चुनाव लड़ने और जीत दर्ज करने का आरोप लगा है। यह प्रकरण राज्य की सामाजिक न्याय प्रणाली और प्रशासनिक पारदर्शिता पर सवाल खड़ा कर रहा है।
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क्या है मामला?
शिकायतकर्ता विवेक सिंह द्वारा लगाए गए आरोपों के अनुसार, नम्रता जैन सिंह ने वर्ष 2019 में फर्जी ST प्रमाण पत्र का उपयोग कर जिला पंचायत अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ा और आरक्षित सीट पर विजयी हुईं। यह प्रमाण पत्र 26 दिसंबर 2019 को तत्कालीन संयुक्त कलेक्टर चंद्रिका प्रसाद बघेल द्वारा जारी किया गया था, लेकिन बिना उचित सत्यापन के। अब उस प्रमाण पत्र की वैधता पर गहरी शंका जताई जा रही है।
जातिगत प्रमाण पत्र को लेकर संवैधानिक संदर्भ
भारत के संविधान के अनुच्छेद 342 के अनुसार, एक राज्य की अनुसूचित जनजाति की मान्यता दूसरे राज्य में स्वतः मान्य नहीं होती। नम्रता सिंह के पिता, स्वर्गीय नारायण सिंह, ओडिशा के मूल निवासी थे और वहां से आदिवासी प्रमाण पत्र प्राप्त था। वे छत्तीसगढ़ कैडर के 1977 बैच के IAS अधिकारी थे, लेकिन 1950 से पहले परिवार का छत्तीसगढ़ से कोई संबंध नहीं पाया गया।
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शिकायत में कहा गया है कि नम्रता सिंह के पास न छत्तीसगढ़ का स्थायी निवास प्रमाण है, न ही राजस्व रिकॉर्ड या ग्रामसभा की अनुशंसा, फिर भी उन्हें आदिवासी प्रमाण पत्र जारी किया गया।
प्रमाण पत्र जारी करने में अनियमितता
यह आरोप भी सामने आया है कि संयुक्त कलेक्टर चंद्रिका प्रसाद बघेल ने बिना दस्तावेजी जांच के प्रमाण पत्र जारी किया, जिससे यह मामला केवल एक राजनीतिक नहीं बल्कि प्रशासनिक भ्रष्टाचार की श्रेणी में भी आता है।
जांच समिति का गठन
एसडीएम मोहला द्वारा 26 मई 2025 को एक पत्र जारी कर जांच समिति के गठन की पुष्टि की गई है। शिकायतकर्ता ने मांग की है कि जांच 15 दिनों के भीतर पूरी हो, दोषी पाए जाने पर नम्रता सिंह को तत्काल पद से हटाया जाए और छत्तीसगढ़ पंचायत राज अधिनियम के तहत सख्त कार्रवाई की जाए।
सामाजिक और प्रशासनिक पृष्ठभूमि
नम्रता सिंह के पिता नारायण सिंह राज्य के प्रभावशाली नौकरशाह रहे हैं। वे छत्तीसगढ़ में एडिशनल चीफ सेक्रेटरी (ACS) और माध्यमिक शिक्षा मंडल के चेयरमैन रहे। रिटायरमेंट के बाद उन्हें बिजली विनियामक आयोग का चेयरमैन भी बनाया गया। उनकी आदिवासी पहचान भले ही वैध रही हो, लेकिन नम्रता सिंह का छत्तीसगढ़ से ST प्रमाण पत्र बनवाना प्रश्नचिह्न के घेरे में आ गया है।
राज्य स्तर पर चिंताजनक आंकड़े
2000 से 2020 के बीच छत्तीसगढ़ में 758 फर्जी ST प्रमाण पत्र के मामले उजागर हो चुके हैं, जिनमें 267 प्रमाण पत्र रद्द किए जा चुके हैं। ऐसे में मोहला-मानपुर का यह ताज़ा मामला एक और संभावित फर्जीवाड़े की ओर इशारा करता है।
यह मामला न केवल एक व्यक्तिगत प्रमाण पत्र विवाद है, बल्कि यह छत्तीसगढ़ की राजनीतिक संरचना, आरक्षण प्रणाली और प्रशासनिक जवाबदेही पर भी गहरा असर डालता है। अगर जांच में आरोप सही पाए जाते हैं, तो यह राज्य में फर्जी जाति प्रमाण पत्र से चुनाव लड़ने का एक और हाई-प्रोफाइल उदाहरण बन सकता है।
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