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MP News: जबलपुर में उस समय हलचल मच गई जब हनुमानताल वार्ड की वर्तमान पार्षद पूनम कविता गोंद्रे उनके पद से हटाने का आदेश दिया गया। बताया जा रहा ये आदेश न्यायालय कमिश्नर जबलपुर संभाग ने दिया है। कमिश्नर ने पार्षद पूनम को पद से हटाने और आगामी पांच वर्षों तक किसी भी निकाय चुनाव में भाग लेने पर प्रतिबंध लगाने का आदेश पारित किया गया। यह निर्णय तब आया जब यह साबित हुआ कि उन्होंने पार्षद पद के लिए जाली जाति प्रमाण पत्र प्रस्तुत कर ओबीसी महिला के लिए आरक्षित वार्ड से चुनाव लड़ा था। यह मामला लंबे समय से जांच में था और अंततः अब निष्कर्ष तक पहुंच गया है।
जाली प्रमाण पत्र से लड़ा था आरक्षित सीट पर चुनाव
प्रकरण की शुरुआत एक गंभीर शिकायत से हुई थी। इसमें दावा किया गया कि कविता रैकवार ने जबलपुर नगर निगम के वार्ड क्रमांक 24 हनुमानताल से OBC महिला के लिए आरक्षित सीट पर चुनाव लड़ने के लिए गलत जानकारी के आधार पर जाति प्रमाण पत्र बनवाया। शिकायत के अनुसार, वह वास्तव में ओबीसी वर्ग से संबंधित नहीं थीं, लेकिन लाभ उठाने के लिए उन्होंने झूठे दस्तावेज तैयार कराए। शिकायत को गंभीरता से लेते हुए यह मामला सीधे मध्यप्रदेश शासन की उच्च स्तरीय जाति परीक्षण समिति भोपाल को भेजा गया। वहां की गहन जांच के बाद समिति ने दिनांक 6 जून 2024 को पार्षद द्वारा प्रस्तुत जाति प्रमाण पत्र को निरस्त कर दिया और उनके विरुद्ध आगे की कार्रवाई के निर्देश दिए।
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हाइकोर्ट के निर्देशों के अनुरूप दोबारा हुई जांच
इस प्रकरण की गंभीरता को देखते हुए मामला मध्य प्रदेश हाईकोर्ट जबलपुर की निगरानी में भी आया। न्यायालय ने यह सुनिश्चित करने के लिए कि सभी पक्षों को उचित सुनवाई मिले, निर्देशित किया कि पार्षद को अपना पक्ष रखने का अंतिम अवसर दिया जाए। इसके अनुपालन में, दिनांक 13 फरवरी 2025 को उच्च स्तरीय समिति ने दोबारा बैठक कर सभी तथ्यों और दस्तावेजों की समीक्षा की। समिति ने पुनः अपने पहले निर्णय को वैध और उचित ठहराते हुए स्पष्ट कर दिया कि कविता रैकवार के नाम से जारी पिछड़ा वर्ग प्रमाण पत्र जाली है और इसे निरस्त किया जाना विधिसम्मत है। इस प्रकार दो बार की सुनवाई और तथ्यों की जांच में यह प्रमाणित हो गया कि उन्होंने आरक्षित सीट पर अवैध रूप से चुनाव लड़ा।
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कानूनी कार्यवाही और अनुपस्थिति में आदेश पारित
कलेक्टर एवं जिला निर्वाचन अधिकारी जबलपुर द्वारा प्रस्तुत प्रतिवेदन और प्रमाणों के आधार पर, न्यायालय कमिश्नर ने कविता रैकवार को कारण बताओ नोटिस जारी किया। उन्हें अपना पक्ष रखने का अवसर दिया। यह नोटिस दिनांक 26-27 मार्च 2025 को भेजा गया, लेकिन जब मामले की सुनवाई 29 अप्रैल 2025 को हुई, तब न तो श्रीमती रैकवार और न ही उनके अधिवक्ता उपस्थित हुए। उनके द्वारा यह तर्क दिया गया था कि उन्होंने उच्च स्तरीय समिति के निर्णय के विरुद्ध उच्च न्यायालय में एक रिट याचिका दायर की है, अतः कार्यवाही स्थगित की जाए। लेकिन न्यायालय ने स्पष्ट किया कि चूंकि कोर्ट द्वारा कोई स्थगन आदेश पारित नहीं किया गया है, अतः यह याचिका कार्यवाही को नहीं रोक सकती। अनुपस्थिति को गंभीर मानते हुए, न्यायालय ने एकतरफा आदेश पारित किया।
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पद से हुई अलग, पांच वर्षों तक चुनाव में रोक
नगर पालिक अधिनियम 1956 की धारा 19(अ-1) और धारा 19(ज) के तहत यह स्पष्ट प्रावधान है कि यदि कोई जनप्रतिनिधि झूठे दस्तावेजों के आधार पर निर्वाचित होता है या उसका प्रमाण पत्र निरस्त कर दिया जाता है, तो उसे न केवल पद से हटाया जा सकता है बल्कि भविष्य में चुनाव लड़ने पर भी रोक लगाई जा सकती है। न्यायालय ने इसी आधार पर निर्णय लेते हुए कहा कि कविता रैकवार अब उस वर्ग से नहीं आतीं, जिसके लिए यह सीट आरक्षित थी। अतः उनका पार्षद के रूप में बने रहना न तो विधिसम्मत है और न ही जनहित में। न्यायालय ने उन्हें तत्काल प्रभाव से पद से पृथक किया और आगामी पाँच वर्षों तक नगर निगम चुनावों में भाग लेने से अयोग्य घोषित कर दिया। साथ ही, वार्ड क्रमांक 24 हनुमानताल की सीट को रिक्त घोषित करते हुए नगर निगम को अगली प्रक्रिया शुरू करने के निर्देश दिए गए।
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फर्जी दस्तावेजों की सच्चाई हुई उजागर
यह निर्णय न केवल एक पार्षद के विरुद्ध कार्यवाही है, बल्कि पूरे राजनीतिक तंत्र के लिए एक संदेश है। यह मामला यह दिखता है कि यदि कोई जनप्रतिनिधि गलत दस्तावेजों के सहारे जनसेवा की आड़ में पद प्राप्त करता है, तो कानून उसे बख्शता नहीं है। यह न्यायिक निर्णय उन लोगों के लिए चेतावनी है जो आरक्षण व्यवस्था का दुरुपयोग कर समाज के साथ धोखा करते हैं। साथ ही, यह उन ईमानदार प्रतिनिधियों के लिए प्रेरणा है जो नैतिकता और सच्चाई के बल पर राजनीति में सेवा करना चाहते हैं।